खरी-अखरी : महफिल लूटनी है तो राजनीतिक हथियार के तौर पर काम करने वाले मिडिल क्लास के गुस्से को थामना होगा
2019 में आंध्र की गुलाबी मंगलगिरी साड़ी पहन कर बजट पेश करने का जो सिलसिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने शुरू किया वह 2025 में बिहार की मधुबनी साड़ी पहन कर बजट पेश करने तक जारी है। इसके पहले तमिलनाडु की सिल्क (2020), तेलंगाना की पोचम पल्ली (2021), ओडिशा की बोमकाई (2022), कर्नाटक की इलकल (2023), बंगाल की कांथा (फरवरी 2024) एवं एक बार फिर आंध्र की मंगलगिरी (जुलाई 2024) पहन कर बजट पेश किया गया था। जिसको निर्मला के साड़ी शास्र का अर्थशास्त्र के साथ किया गया काकटेल कह सकते हैं।
1 फरवरी 2025 को पेश किए गए बजट में विकसित भारत के सपने के साथ ना तो 5 – 10 ट्रिलियन की इकोनॉमी का जिक्र है ना ही देश के बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को कैसे आगे बढ़या जायेगा ना ही देश के डूबे हुए मैनीफैक्चरिंग सैक्टर को उबारने का जिक्र है। इसी तरह ना ही कोर सैक्टर की नैरेविटी को कैसे पाजिटिवी में तब्दील किया जायेगा और ना ही आम आदमी को मंहगाई और बेरोजगारी से कैसे निजात दिलाई जायेगी इसका जिक्र है। जिक्र है तो इस बात का कि 12 लाख रुपया सालाना कमाने वाले तकरीबन 6.50 करोड़ टैक्स पेयर्स को एक पैसा भी इनकम टैक्स नहीं देना होगा। जिससे उठे शोर में लगातार गोते खा रही अर्थ व्यवस्था कुछ समय के लिए एक ही झटके में दफन हो गई। इसे कहते हैं महफिल लूटना और महफिल कैसे लूटी जाती है तथा अतीत के दाग धब्बों को कैसे छुपाया जाता ये नरेन्द्र मोदी अच्छी तरह से जानते हैं।
देश में इनकम टैक्स देने वाले लगभग 8 करोड़ 62 लाख टैक्स पेयर्स में से तकरीबन 6 करोड़ 50 लाख टैक्स पेयर्स को न्यूनतम 60 हजार और अधिकतम 1 लाख रुपये की रियायत मिलेगी। बीमा क्षेत्र में विदेशी बीमा कम्पनियों के आने वाले रास्ते पर लगी हुई बैरिकेडिंग पूरी तरह हटा दी गई है। भले ही देशी बीमा कम्पनियों को मुश्किलों का सामना करना पडे। अन्तरराष्ट्रीय तौर पर बीमा कम्पनियों की कमाई का नेटवर्क 22 से 25 फीसदी बढ़ता है परन्तु जब उनकी घुसपैठ गरीब और विकासशील देशों में होती है तो नेटवर्क की रफ्तार 55 से 75 फीसदी तक बढ़ जाती है। वित्त मंत्री निर्मला जी द्वारा पेश किए गए बजट में शिक्षा के क्षेत्र में पिछले साल के 1 लाख 25 हजार 638 करोड़ को कम करते हुए 1 लाख 14 हजार 54 करोड़ कर दिया गया है। पिछली बार सोशल वेलफेयर जहां 56 हजार 501 करोड़ का प्रावधान था उसे भी घटा कर 46 हजार 483 करोड़ किया गया है। एग्रीकल्चर बजट भी 1 लाख 51 हजार 851 करोड़ की जगह 1 लाख 40 हजार 859 करोड़, ग्रामीण विकास का बजट 2 लाख 65 हजार 808 करोड़ के स्थान पर 1 लाख 90 हजार 75 करोड़ और शहरी विकास का बजट 82 हजार 577 करोड़ से घटाकर 63 हजार 670 करोड़ कर दिया गया है। हेल्थ सैक्टर भी अछूता नहीं है उसमें भी कटौती करते हुए 89 हजार 287 करोड़ को 88 हजार 32 करोड़ किया गया है। नार्थ ईस्ट का पिछला बजटीय प्रावधान भी 5 हजार 9 सौ करोड़ की जगह इस बार 4 हजार 6 करोड़ पर अटक गया है।
हेल्थ, एज्युकेशन, सोशल वेलफेयर, एग्रीकल्चर, ग्रामीण – शहरी डवलपमेंट, नार्थ ईस्ट के विकास के दायरे में पूरा देश आता है जिसके भीतर बिहार ही नहीं सारे प्रदेश आते हैं और उसमें एक मिडिल क्लास, एक नौकरी पेशा तबका भी रहता है वह भी आता है । देश के भीतर नौकरी कैसे ईजाद की जायेंगी इस पर वित्त मंत्री ने बजट भाषण में पूरी तरह से खामोशी बरती है। सालभर में 12 लाख तथा नौकरीपेशा को सालभर में 12 लाख 75 हजार कमाई करने वालों को जो टैक्स बनता है उस टैक्स की भरपाई रियायत के तौर पर सरकार करेगी मगर 12 लाख या 12 लाख 75 हजार रुपये से ज्यादा कमाई करने वालों को स्लैब के हिसाब से पूरा टैक्स देना होगा। मतलब उन्हें 12 लाख या 12 लाख 75 हजार पर बनने वाले टैक्स की रियायत नहीं मिलेगी।
बीते दस साल में करोड़पतियों की संख्या भी बढी है। 2014 में जहां 40 हजार करोड़पति थे वहीं आज उनकी संख्या 1 करोड़ 80 लाख बढकर 2 करोड़ 20 लाख हो गई है । इसके विपरीत छोटी कमाई करने वालों की संख्या में भारी कमी आई है। 2014 में जहां उनकी संख्या 1 करोड़ 60 लाख थी वहीं आज उनकी तादाद 46 लाख रह गई है। इसका कारण है नौकरियों का गायब हो जाना। अच्छी बात यह है कि सीनियर सिटीजन को बैंक से मिलने वाले ब्याज 50000 से अधिक पर टैक्स काटा जाता था उसकी सीमा बढाकर 1 लाख कर दी गई है। सरकार किसानों को बीज, खाद में सब्सिड, क्रेडिट कार्ड देने की बात तो करती है लेकिन न्यूनतम प्राइज देने की मांग पर खामोशी बरतती है। भले ही किसान आंदोलन करें, आत्महत्या करें सरकार की बला से। सरकार फसल बीमा भी कराने को कहती है लेकिन फसल बीमा से जुड़ी हुई बीमा कम्पनियों की हकीकत यह है कि उनके मुनाफे में तो 52 फीसदी की बढोत्तरी हुई है मगर किसानों को जो भरपाई की जानी चाहिए वह ऊंट के मुंह में जीरे जैसी है। सरकार हर बार की तरह इस बार भी कह रही है कि लगभग 1 करोड़ 70 लाख किसानों को फायदा होगा, 1 करोड़ कामगारों को फायदा होगा, 22 लाख रोजगार लेदर और फुटवीयर क्षेत्र में मिल जायेगा। अब सरकार कह रही तो मान लिया जाय ठीक उसी तरह से जैसे पीएम चुनावी रैलियों में छाती ठोंककर कहते रहते हैं भले ही बाद में उसका नतीजा बाबा जी का ठुल्लू निकले।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने आने वाले समय में बिहार में होने वाले चुनाव के मद्देनजर बिहार को बहुत कुछ लोकलुभावन देने की घोषणा की है जिसको सत्ताधारी दल (जेडीयू) के नेता संजय झा कह रहे हैं कि बिहार में ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट, मखाना बोर्ड, कोसी नहर, फुड प्रोसेसिंग, आईआईटी पटना के एक्सटेंशन की घोषणा सुखद है। उसका बड़ा कारण यह है कि बिहार में बीजेपी की बैसाखी के सहारे नितीश कुमार सीएम की कुर्सी पर बैठें हैं तो दिल्ली में नरेन्द्र मोदी जनतादल यूनाइटेड (जेडीयू) की बैसाखी का सहारा लिये हुए पीएम की कुर्सी पर बैठे हैं। दिल्ली सरकार ने जिन बातों का जिक्र किया है तो आज की तारीख में उसके लिए लगभग 70 – 80 हजार करोड़ देना होगा। बिहार का सच यह भी है कि बिहार में 50 फीसदी गरीबी है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 36 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। बेरोजगारी की दर देशभर में सबसे ज्यादा है।
इतिहास के उन पन्नों को भी पलट लिया जाय कि 9 बरस पहले भी बिहार में मुख्यमंत्री नितीश कुमार ही थे और देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही थे। तब आरा की रैली में पीएम नरेन्द्र मोदी ने बिहार की जनता से रूबरू होते हुए कहा था कि बिहार के भाईयों बहनों मैं आज बिहार की धरती से बिहार के लिए पैकेज की घोषणा कर रहा हूं – करूं, करूं – 50 हजार करोड़ करूं या ज्यादा, 60, 70, 75, 80, 90 हजार करोड़ करूं या ज्यादा। मेरे भाईयों बहनों मैं आज वादा करता हूं दिल्ली सरकार 1 लाख 25 हजार करोड़ का पैकेज घोषित करती है। मगर हकीकत में पीएम की घोषणा दूसरी घोषणाओं की तरह जुमला साबित हुई। अगर बिहार को 1लाख 25 हजार करोड़ 9 बरस पहले मिल गये होते तो ये सारे काम हो चुके होते। सच तो यह है कि बजट की उम्र तो 48 घंटे ही होती है फिर वह इवेंट में तब्दील हो जाती है। पीएम नरेन्द्र मोदी चुनाव के दौरान जो ऐलान करते हैं वे वोट बैंक टटोलते हैं। पीएम मोदी ने बीते 5 बरस में जो ऐलान महाराष्ट्र, हरियाणा, तेलंगाना, कर्नाटक आदि में किये हैं उन सबको जोड़ दिया जाए तो वह आंकड़ा 7 लाख 80 हजार करोड़ का होता है।
फिर भी खुश होना चाहिए क्योंकि एलसीडी, एलईडी, मोबाईल, मोबाईल बैटरी, ई कार सस्ती हो जायेंगी। कैंसर की 36 दवायें टैक्स फ्री कर दी गई हैं, 6 जीवन रक्षक दवाएं फ्री कर दी गई हैं। 57 दवाओं को निशुल्क कर दिया गया है। कस्टम के 6 टैरिफ हटा दिए गए हैं। शायद यही एक ऐसा स्ट्रोक है जो बताता है कि किसी भी राजनीतिक परिस्थितियों के बीच बजट ऐसा होना चाहिए जब आंकड़े ना बताने पडें और महफिल लूट ली जाय। पुराने बजट में विकसित भारत का जिक्र था लेकिन आंकड़े गायब थे इस बजट में भी आंकड़े गायब हैं चाहे डिफेंस, रेलवे, इंफ्रास्ट्रक्चर का बजट हो सबमें आंकड़े गायब हैं । क्यों क्योंकि सच यही है कि देश में टैक्स और टैक्स के साथ जुड़ा हुआ तबका (मिडिल क्लास) पूरी सत्ता को चलाता है और पूरी सत्ता के लिए सबसे बेहतरीन हथियार के तौर पर काम करता है।
अश्वनी बडगैया, अधिवक्ता एवं स्वतंत्र पत्रकार
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