खरी-अखरी: चक्रव्यूह पहली बार पूरा गोल घूमने को तैयार
गुजरात को हिन्दुत्व की प्रयोगशाला बनाने के लिए आरएसएस ने बकायदा बीजेपी के लिए मंच तैयार किया उसी हिन्दुत्व के आसरे बीजेपी हिन्दूवादी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आई। आगे चलकर हिन्दुत्व की प्रयोगशाला को गुजरात से उत्तरप्रदेश में शिप्ट कर दिया गया। यूपी की प्रयोगशाला में किया गया राजनीतिक प्रयोग चाहे वह बनारस का “मां गंगा ने बुलाया है” या फिर अयोध्या के “राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा” में आरएसएस और बीजेपी का मिलन और पीएम नरेन्द्र मोदी, सरसंघचालक मोहन भागवत की गलबहियों के बीच सीएम योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी ने जो समां बांधा था तब इस बात का अह्सास किसी को नहीं था कि राजनीति की धूरी बदल रही है और जब राजनीति की धूरी बदलती है तो फिर बड़े – बड़े राजनीतिक दलों की बुनियाद हिलने लगती है और उस बुनियाद पर खड़ा नेता कितना भी कद्दावर क्यों न हो उसकी जड़ें डगमगाने लगती है और यह मौजूदा वक्त की एक सबसे बड़ी हकीकत है।
जिस राजनीतिक धूरी में बीजेपी जनवरी 2024 में सवार थी मई आते – आते वही धूरी बदल गई। चुनाव परिणाम ने यूपी के मंच से ऐलान कर दिया कि देश की राजनीति को अब समझना होगा कि उसे एसी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक के सवालों को लेकर चलना होगा। वैसे तो यूपी की राजनीति में अल्पसंख्यक को लेकर 80 – 20 का खेल खेला जाता है। इसके बावजूद जबसे कांग्रेस ने एससी, एसटी, ओबीसी का सवाल खड़ा किया है खासतौर पर राहुल गांधी ने खुलेतौर पर कहा कि दरअसल हमसे गलती हो गई जो हमने इन पर उस तरह से ध्यान नहीं दिया जैसा नेहरू और इंदिरा काल में दिया गया था। कांग्रेस को अब बदलती हुई राजनीतिक धुरी के हिसाब से ढलना होगा।
मगर कांग्रेस से बड़ा सवाल तो बीजेपी के सामने है। सवाल तो बीजेपी के साथ ही संघ परिवार की उस सोच का है जिसके सबसे प्रिय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं। शायद यह सवाल दिल्ली और लखनऊ के बीच उस राजनीतिक टकराव का भी है जिसमें दिल्ली ने हमेशा चाहा कि देश के भीतर कोई बड़ा नेता इतना कद्दावर न हो सके और किसी की छवि इतनी बड़ी न हो जाए कि उसकी परछाई जमीन पर दिखाई देने लग जाए। कल तक जो मीडिया कुंभ की तैयारियों को लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ का गुणगान करने से थक नहीं रहा था वह एक झटके में पल्ला झाड़ कर कुंभ के भीतर हुए भयावह सच की तस्वीरें दिखा कर कहने लगा कि कितना मिसमैनेजमेंट हुआ है। दिल्ली की सत्ता का स्तुति गान करने वाला मीडिया भी वही बोली बोलने लगा जो कुंभ में संत समाज राजनीतिक बोली बोल रहा है। संतों की इस राजनीतिक बोली के समानांतर संतों के बीच से ही दूसरी राजनीतिक बोली बोलने के लिए लखनऊ सक्रिय हो गई। जिसने बता दिया कि राजनीति से बड़ा कोई धर्म होता नहीं है।
जिस हिन्दुत्व के प्रयोगशाला की पालकी में सवार होकर बीजेपी यूपी में उडान भर रही थी मई 2024 में हुए चुनाव में यूपी जनता उसे खारिज कर चुकी है। अयोध्या आंदोलन के दौर में भी 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद बीजेपी जिस जीत को हासिल करना चाहती थी वह न तो विधानसभा में मिली न ही लोकसभा चुनाव में। इसीलिए 1996 में सिर्फ 13 दिनों में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई थी। अब देश की बदलती हुई राजनीतिक धुरी हिन्दुत्व से बदलकर संविधान और संविधान के आसरे हासिये पर सिमटे तबके की भागीदारी का सवाल उठाने लगी है। कुंभ के भीतर हुई भगदड़ को लेकर संतों का टकराव, मीडिया के भीतर उठते सवाल, मीडिया जो दिखा रहा है वह खुलेतौर पर बतला रहा है कि भगदड़ एक नहीं दो जगह हुई है। झूंसी में हुई भगदड़ और मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज ले जाये गये मरीजों की रिपोर्ट को कवर करने गए मीडिया के साथ सीएम योगी आदित्यनाथ की नौकरशाही और सुरक्षाकर्मियों ने जिस तरह का अमानवीय व्यवहार किया है उसको लेकर टीवी 9 के रिपोर्टर को यहां तक कहना पड़ा कि “क्या ये पाकिस्तान है”।
सत्तानुकूल या कहें सत्ता स्पांसर्ड मीडिया जब अंधत्व साध ले और स्वतंत्र मीडिया सत्ता के बीच, हिन्दूवादी संगठन के नेताओं के बीच के आपसी टकराव और हिन्दूवादी कार्यक्रम को लेकर अगर सवाल पूछने लगे जहां पर सवाल आस्था, सनातनी का हो तो क्या वाकई विपक्ष की पूरी राजनीतिक धूरी अधूरी सी हो जायेगी। जहां एक भगवाधारी राजनीतिक संत से दूसरा धार्मिक भगवाधारी संत इस्तीफा देने को कहता है तो तीसरा धार्मिक भगवाधारी संत पहले राजनीतिक भगवाधारी का बचाव करते हुए इस्तीफा देने को कहने वाले भगवाधारी संत को कुंठाग्रस्त बताते हुए ओछी बात कहना बताता है। जब मीडिया सत्ता के रंग में सराबोर रहेगा तो संत समाज खुद को राजनीति से अछूता कैसे रख सकता है। उसकी जुवां पर भक्ति और आस्था से हटकर जो बोल नेताओं को लेकर हैं उससे साफ पता चलता है कि बीते 10 सालों के भीतर संत समाज भी राजनीतिक तौर पर अपना आंकलन करने लगे हैं क्योंकि उनकी अपनी राजनीतिक पहुंच और राजनीतिक महत्व ही उनके कद को बढ़ता है।
यही कारण है कि इस दौर में संवैधानिक और सामाजिक आचरण ने सत्ता के सामने घुटने टेक दिये हैं। दिन के उजाले जिस हकीकत को छुपाने के लिए टीवी 9 के रिपोर्टर को बलात रोका गया झूंसी में हुई भगदड़ के उस भयावह सच को रात के अंधेरे में ललन टाप के रिपोर्टर ने कैमरे में कैद कर दिखा दिया। वह रिपोर्ट और वे तस्वीरें किसी भी सीएम की कुर्सी को डिगाने के लिए काफी है। राजनीतिक धूरी जब बदलने लगती है तो वह राजनीति की पुरानी धाराओं को बदलना चाहती है। इसी कड़ी में दिल्ली मीडिया के जरिए सवाल उठवा रही है कि क्या 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए योगी आदित्यनाथ फिट होंगे ?
बीजेपी के भीतर का संकट यह है कि जिस राजनीति को अटल बिहारी वाजपेयी काल तक साधा गया था वह मोदी-शाह काल में ध्वस्त हो गया। बीजेपी के बीच से उठने वाली आवाजें चुनावी जीत – हार के नक्कारे में विचारधारा, हिन्दुत्व, आस्था, सनातन आदि तूती की आवाज़ की तरह दफन हो जाती है। मगर आरएसएस योगी आदित्यनाथ के कांधे बंदूक रख कर चुनौती देता रहता है यह बात दीगर है कि वह शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया सहित कई कद्दावर नेताओं को मोदी शाह के कोप से नहीं बचा पाया यहां तक कि अपने सबसे दुलारे नितिन गडकरी को जब संसदीय बोर्ड से हटाया गया तब भी आरएसएस कुछ नहीं कर पाया। बीजेपी के भीतर का एक तबका सिर्फ हिन्दुत्व के भरोसे है तो दूसरा तबका हिन्दुत्व को केवल राजनीतिक हथियार मानकर चलता है।
आरएसएस की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक धारायें बीजेपी को प्रभावित कर रही हैं। बीजेपी की सत्ता को बनाये रखने की जिम्मेदारी मोद – शाह जोड़ी पर है। शायद इसीलिए ये चक्रव्यूह पहली बार पूरा गोल चक्कर घूमने को तैयार है क्योंकि देश के भीतर की राजनीतिक धूरी उन दलित पिछड़े तबके की दिशा में देखने को मजबूर हो चली है जो स्थाई समाधान चाहती है तो यह एक पालिटिकल चेंज है।
56 इंची वाला डायलॉग भी जुमला निकला
अमेरिकी ट्रम्प सरकार द्वारा कमाने गये भारतीय नागरिकों (पुरुष, महिला, बच्चे शामिल है) को देशवासियों को शर्मशार करने वाली तस्वीरों के साथ भारत भेजा है उससे भी ज्यादा शर्मनाक बयान देश के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सदन में देकर देशवासियों के जले पर नमक छिड़कने का काम किया है। ट्रम्प सरकार के द्वारा हाथों में हथकड़ी, पैरों में बेडी डाल कर आतंकियों की भांति भेजे गये प्रवासी भारतियों को अमेरिकी सैन्य मालवाहक विमान (सी – 17) में जानवरों की माफिक भर कर भेजना 56 इंची सीने वाले को अपने मुंह पर तमाचा मारे जाने तथा भारत का अपमान करने का अह्सास कराये या ना कराये परन्तु 144 करोड़ देशवासियों को अह्सास करा दिया है कि अमरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने उनके मुंह पर तमाचा मारा है, भारत का अपमान किया है।
मीडिया में जो तस्वीरें वायरल हो रही हैं वे किसी भी असल राष्ट्र भक्त भारतीय को विचलित करने वाली हैं। जिस दिन प्रवासी भारतीयों को लेकर अमरिकी विमान अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरा उस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रयागराज में चल रहे कुंभ में डुबकी लगा कर अपने पापों को विसर्जित करते हुए राम तेरी गंगा मैली कर रहे थे जिससे आने वाले समय में अगले कुंभ के लिए पाप अर्जित कर सकें। ऐसा नहीं है कि 144 करोड़ की जनसंख्या, विश्व की तीसरी अर्थ व्यवस्था वाले देश के मुखिया को उनके ही दोस्त अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प (जैसा पीएम मोदी खुद कहते हैं) ने ही उनको उनकी औकात बताई है बल्कि कोलंबिया, जिसकी आबादी मात्र 5 करोड़ 21 लाख है तथा वैश्विक स्तर पर अर्थ व्यवस्था 43वें नम्बर पर है, के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो ने भी वैश्विक तानाशाह बनने चले डोनाल्ड ट्रम्प को उसकी औकात कैसे बताई जाती है का आईना भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी दिखाया है। पेट्रो ने ट्रम्प को दो टूक कहा था कि वे अपने देश की जमीं पर सैन्य विमान सी-17 उतरने नहीं देंगे और अपनी शर्तों पर बकायदा पैसेंजर प्लेन भेज कर अपने नागरिकों को ससम्मान वापस बुलाया और जब हवाई जहाज कोलंबिया की धरती पर उतरा तो राष्ट्रपति पेट्रो ने प्लेन के भीतर जाकर रिसीव किया तथा कहा कि आप आजाद हैं, अपनी मातृभूमि पर हैं, निराश न हों। भरोसा दिलाया कि देश में इज्जत की जिंदगी जीने के लिए सरकार हर संभव मदद करेगी। इसे कहते हैं राष्ट्रभक्ति और देशवासियों से स्नेह।
इसके पहले भी मोदी मित्र ट्रम्प ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में मोदी को ना बुलाकर खुलेतौर पर संकेत तो दे ही दिया है कि ट्रम्प की नजर में मोदी की क्या हैसियत है। सी-17 में लाये गए प्रवासी भारतीयों ने अपने साथ हुए अमानवीय कृत्यों का बयान करते हुए मीडिया को बताया कि उनने 40 घंटे का सफर कितनी मुसीबतों से पूरा किया है। उन्हें वाशरूम जाने के लिए भी मिन्नतें करनी पड़ी है। वाशरूम जाने और खाना खाने के लिए भी हथकड़ी और बेडी नहीं खोली गईं। और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर राज्यसभा में अमेरिकी सरकार के द्वारा भारतीयों के साथ किये गये अमानवीय कृत्यों की निंदा करने के बजाय कह रहे हैं कि हथकड़ी लगाकर लाना कोई नई बात नहीं है।
सवाल है कि क्या (टेलिफ़ोन पर युक्रेनी युद्ध रुकवा देने वाले पापा) भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोलंबिया राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो जैसा जिगर नहीं रखते कि वे ट्रम्प सरकार को चेताते हुए भारतीयों को भारतीय विमान भेज कर ससम्मान वापस ले आते। इतिहास गवाह है कि जिस मरहूम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बाथरूम में झांक कर पीएम मोदी उन्हें मौनी और कमजोर प्रधानमंत्री कहने से नहीं थकते उस पीएम ने पहली बार (भूतो न भविश्यति) 2013 में दिव्यानी प्रकरण में पूरे अमरीकी प्रशासन को घुटनाटेक कराते हुए माफी मंगवाई थी। मोदी सरकार का यह डिप्लोमेटिक फेलुअर है। एस जयशंकर ने भारतीय विदेश नीति का सत्यानाश करके रख दिया है वे एक पल के लिए भी मंत्रीमंडल में रखने लायक नहीं है।
वैसे तो भारतीय अस्मिता को दुनिया भर में शर्मशार करवाने वाले नरेन्द्र मोदी खुद प्रधानमंत्री की कुर्सी में बैठने के काबिल नहीं है मगर देश का दुर्भाग्य है कि देशहित, कूटनीतिक हित, राजनीतिक हित सहित तमाम हितों को अपने हित के आगे बौना बनाने वाला व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री है। लाये गये लोगो में सबसे ज्यादा हरियाणा के लोग हैं और हरियाणा प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष विचलित होने के बजाय ओछी मानसिकता का इजहार करते हुए बधाई दे रहे हैं। विपक्ष भी चूड़ी पहने बैठा है। हरियाणा की जनता भी देश के दूसरे हिस्सों की जनता की भांति अपना आत्मसम्मान खो चुकी है। कल को दूसरे देश भी प्रवासी भारतीयों के साथ ऐसा व्यवहार (यूज एंड थ्रो) कर सकते हैं।
सरकार की अकर्मण्यता के चलते देश में रोजगार पैदा नहीं होने से भारतीयों का पलायन करना नियति सा बन गया है। आजादी के बाद से ही भारत किसी भी देश का पिछलग्गू बनकर नहीं रहा। उसने अपने सम्प्रभू राष्ट्र की गरिमा, तमीज, तहजीब और दायरे को बनाये रखा। मगर मोदी काल में दुनिया भर में भारत की जो मिट्टी पलीत हुई है उसकी भरपाई संभव नहीं है। देशवासियों के मन में सवाल है कि देश को अपमानित करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दरवाजे पीएम नरेन्द्र मोदी जायेंगे या नहीं? अगर वे देशवासियों की भावनाओं को रौंद कर अमेरिका चले भी गए तो ट्रम्प से नजर मिलाकर किस मुंह से बात कर पायेंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नरेन्द्र मोदी अपनी महत्वाकांक्षा पूर्ति के लिए अमेरिका जरूर जायेंगे क्योंकि अभी तक तो यही देखने में आया है कि नरेन्द्र मोदी खुद को देश और देशीय अस्मिता से ऊपर रखते चले आ रहे हैं। कुंभ की भगदड़ में हुई मौतों के बाद भी आखिर नरेन्द्र मोदी गंगा मैली करने पहुंच ही गये। डागी मीडिया भी मोदी – ट्रम्प को कवर करने अमेरिका जायेगा और अपनी आदतानुसार मोदी – मोदी का भोंपू बजायेगा। सच यह है कि दुनिया मोदी के 56 इंची सीने, फर्जी राष्ट्रवाद, विश्व गुरु की हकीकत समझ चुकी है मोदी और मोदी के फालोवर्स जो धर्म की अफीम चाट कर अपना आत्मसम्मान खो चुके हैं वे स्वीकार करें या ना करें। देशवासियों की सोच है कि पीएम नरेन्द्र मोदी को अपना अमेरिका दौरा स्थगित करना चाहिए तथा जब तक अमेरिका माफी नहीं मांगता तब तक विरोध किया जाना चाहिए। मगर यह होगा इसमें संशय है क्योंकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। इसके पहले भी चीन ने गलवान घाटी में घुसपैठ कर भारतीय सैनिकों की हत्या की थी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कह रहे थे कोई नहीं घुसा – कोई नहीं मरा। पीएम कितना जागेंगे ना जागेंगे! देशवासियों को तो जागना ही चाहिए। वरना नरेन्द्र मोदी तो ये कहते ही रहेंगे कि ये तो हमारी तीसरी ही टर्म है, आने वाले की वर्षों तक हम ही जमे रहेंगे। भले ही जनता ने 400 पार की पतंग काट कर 240 पर समेट दिया है। इसी को कहते हैं रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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