अब विवाह विश्वास नहीं , वारदात बनता जा रहा है ?
मेरठ से शिलॉन्ग तक, सौरभ से राजा रघुवंशी तक: कब रुकेगा यह सिलसिला?
क्या अब प्रेम विश्वास नहीं, बल्कि वारदात की भूमिका बन चुका है?
रीतेश माहेश्वरी
भारत की सामाजिक संरचना में प्रेम और विवाह को पवित्र बंधन माना जाता रहा है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में एक खतरनाक ट्रेंड उभरकर सामने आया है—जहां इसी पवित्र रिश्ते का इस्तेमाल धोखे, लालच और हत्या के ज़रिए किया जा रहा है।
सौरभ हत्याकांड हो या राजा रघुवंशी की हत्या, कहानी लगभग एक जैसी है—शुरुआत प्रेम से और अंत मौत से।
राजा रघुवंशी, इंदौर के एक युवक, जिनकी शादी 11 मई को हुई और महज़ 23 दिन बाद उनकी लाश एक खाई से बरामद हुई। यह कोई सामान्य हादसा नहीं था, बल्कि एक सुनियोजित हत्या थी—जिसकी सूत्रधार उनकी नई नवेली पत्नी सोनम निकली।
लेकिन सवाल सिर्फ एक घटना का नहीं है, सवाल उस लगातार बढ़ते ट्रेंड का है, जिसमें प्रेम के नाम पर विश्वास तोड़ा जा रहा है।
क्या यह बदलते समाज की चेतावनी है?
आज भारत में एक चिंताजनक परिवर्तन देखने को मिल रहा है—जहां महिलाएं भी अपराध के बेहद शातिर और योजनाबद्ध रूपों में शामिल हो रही हैं। यह न केवल सामाजिक व्यवस्था को चुनौती देता है, बल्कि हमारी सोच और मूल्यों पर भी सवाल खड़ा करता है।
- क्या अब प्रेम छल की वेशभूषा पहनकर आता है?
जब शादी जैसे संस्कार का उपयोग किसी की हत्या की साजिश रचने के लिए किया जाए, तो यह सवाल स्वाभाविक है। - क्या रिश्ते इतने खोखले हो चले हैं?
जब एक पत्नी ही अपने पति के खिलाफ सुपारी किलिंग करवा सकती है, तब रिश्तों की गहराई नहीं, उनकी खोखलाहट ही सामने आती है। - क्या सुनसान जगह अब भी सुरक्षित नहीं?
हनीमून, जो कभी प्रेम और विश्वास की शुरुआत माना जाता था, अब अपराध का अवसर बनता जा रहा है। - क्या प्रेम की परिभाषा अब सुपारी से जुड़ गई है?
जब प्यार के नाम पर जान ली जाती है, तो प्रेम नहीं, बाजारू सौदेबाजी का चेहरा सामने आता है। - क्या अब विवाह विश्वास नहीं, वारदात बनता जा रहा है?
जब शादी को ही हत्या का मंच बना दिया जाए, तो यह रिश्तों की हत्या है, सिर्फ किसी व्यक्ति की नहीं।
अपराधी मानसिकता का बदलता चेहरा
यह सोचने वाली बात है कि क्यों और कैसे कुछ महिलाएं इतनी क्रिमिनल माइंड हो रही हैं कि वे अपने जीवनसाथी को मौत के घाट उतारने की योजना बना लेती हैं? कहीं यह लालच, स्वतंत्रता की गलत व्याख्या, या समाज में व्याप्त तनावों का नतीजा तो नहीं?
यह वक्त है आत्मनिरीक्षण का, क्योंकि
अगर प्रेम में हिंसा शामिल हो गई है, तो समाज के सबसे कोमल भाव की हत्या हो रही है।
मेरठ से शिलॉन्ग तक और सौरभ से राजा रघुवंशी तक के मामलों में एक पैटर्न नजर आता है—विश्वास का टूटना, प्रेम का खून में बदल जाना, और रिश्तों का इस्तेमाल अपराध के औजार के रूप में किया जाना।
कब रुकेगा ये सिलसिला?
इसका जवाब सिर्फ कानून नहीं, समाज को भी देना होगा।
वरना अगला शिकार कौन होगा—यह बस वक्त की बात रह जाएगी।
अब वक्त है कि रिश्तों में भरोसा लौटे… इससे पहले कि हर शादी एक संभावित साजिश बन जाए।
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