खरी खरी : कौन करेगा मोदी से सवाल – प्रेस तो मर चुकी है !
किससे करें मोदी प्रेस कांफ्रेंस – मीडिया तो गुलाम है और गुलामों की कोई भाषा नहीं होती
नरेन्द्र मोदी के 11 साल की सबसे बड़ी तीन उपलब्धियां – – (1) बीजेपी का कांग्रेसीकरण । (2) राहुल गांधी का राजनीतिक परिपक्वीकरण । (3) नरेन्द्र मोदी का लगभग हर मंच से पलायनीकरण।
दुनिया भर में अलग-अलग तरीके से प्रेस का दमन हो रहा है अमेरिका में भी प्रेस ढलान पर है फिर भी वहां पर पत्रकारिता का जज्बा कई मायनों में साहसिक है, खबरें भी लिखी जा रही है और सवाल भी पूछे जा रहे हैं लेकिन भारत का प्रेस तो तकरीबन-तकरीबन मर ही गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प प्रेस को भला-बुरा कहने में संकोच नहीं करते मगर प्रेस से खुलकर सवाल-जवाब भी करते हैं। 5 मई को ट्रम्प अपने विमान में पत्रकारों से रूबरू थे। वाल स्ट्रीट जनरल के पत्रकार ने चीन को लेकर सवाल पूछा तो ट्रम्प भड़क गए इसके बाद भी पत्रकार ने सवाल पूछा और ट्रम्प ने उसका जवाब भी दिया। आगे बढ़ने से पहले राष्ट्रपति ट्रम्प और पत्रकार के बीच हुई गुफ्तगू पर एक नजर डालना प्रासंगिक होगा, तो कब्र में दफन हो चुके भारतीय प्रेस की हकीकत समझने में आसानी होगी। Trump – Who you with. Reporter – Wall Street Journal. Trump – That’s right, well you you people treat us so badly wall street jouranal was truly gone to hell-go ahead. A rotten newspaper you near what I said it’s a rotten newspaper. Reporter – Are there any updates under. Trump – I Wouldn’t tell the wall Street journal because they’d be wasting my time. There are talks but I don’t want to talk to the wall street journal. But look wall Street journal is China oriented and they’re really bad for this country.
डोनाल्ड ट्रम्प ने 20 जनवरी 2025 को अमेरिका में दूसरे टर्म के राष्ट्रपति की शपथ लेने के बाद से 5 महीने के भीतर ही एक सैकड़ा से ज्यादा प्रेस कांफ्रेंस कर चुके हैं अपने 100 दिन के कार्यकाल में ही ट्रम्प ने किसी न किसी रूप में प्रेस से 129 बार संवाद बनाया है। इसमें 5 प्रेस कांफ्रेंस वो हैं जो दूसरे देश के राष्ट्राध्यक्ष के साथ साझा की गई है। इसमें ट्रम्प से ओवल आफिस, हवाई जहाज में पूछे गए सवाल जवाब भी शामिल हैं। अमेरिका में भी प्रेस के दमन और पतन की चर्चाएं आम होने लगी हैं फिर भी प्रेस कांफ्रेंस और पत्रकारों से मुलाक़ात में सवाल जवाब का सिलसिला जारी है। न्यूयॉर्क पोस्ट ने नेशनल जनरल संस्था द्वारा जारी आंकड़ो के आधार पर लिखा है कि ट्रम्प ने पहले महीने में ही 1009 सवालों का सामना किया है। Trump has answered more than 1000 press questions in first month of second team – 7 times more than Biden in same period. Prior President including Job Biden’s first month total of 141 question. Farmar president Barack Obama look 161 inquires over the first 31 days of his first term in 2009. The president has largely met with the press during Oval office events billed as executive order signing which serve as near daily news conferences. पत्रकारों द्वारा ट्रम्प से पूछे जाने वाले सवालों में से कुछ तो उन्हें खुश करने वाले होते हैं तो कुछ उन्हें चिढ़ाने वाले और ट्रम्प सभी का जबाब देते हैं। जबकि ट्रम्प के कार्यकाल में भी मीडिया पर घोषित और अघोषित तरीके से हमला होने की बातें भी सामने आती हैं। ट्रम्प और दुनिया के सबसे बड़े कारोबारी तथा ट्रम्प सरकार में अहम दायित्व सम्हालने वाले एलन मस्क के बीच चल रही तनातनी को लेकर भी पत्रकार राष्ट्रपति ट्रम्प से सीधा सवाल कर रहे हैं। कतर द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति को तोहफे में दिए गए विमान को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं। 12 मई को जब ट्रम्प अपने स्वास्थ्य सचिव के साथ प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे तो ABC की पत्रकार ने ट्रम्प से सवाल किया “क्या कतर का 3400 करोड़ का लक्जरी विमान आपके लिए एक प्रायवेट तोहफा है ? सवाल सुनकर ट्रम्प भड़क गये फिर भी जबाब दिया और अपनी बात रखी। राष्ट्रपति के क्रोधित होने के बावजूद भी पत्रकार सवाल करना बंद नहीं करते हैं।
In latest media crackdown, white house limits newswire access to Trump (Reuters April 16 2025) अप्रैल में ही व्हाइट हाउस ने राइटर्स और ब्लूमबर्ग को प्रेस समूह में स्थाई जगह नहीं दिये जाने का आदेश जारी किया है। Wire services including Reuters and Bloomberg News will no longer hold permanent slot in the small pool of reporters who cover president Donald Trump. (April 15 2025) जिस पर राइटर्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि ट्रम्प प्रशासन इस बात पर अपना नियंत्रण बढ़ाना चाहता है कि कौन ट्रम्प से क्या प्रश्न पूछ रहा है। The pool typically consists of around 10 outlets that follow the president wherever he goes, statements or answers question or trips at home or abroad. इस फैसले के ठीक एक हफ्ते पहले कोर्ट ने ट्रम्प प्रशासन को फटकारते हुए कहा था कि “आप एसोसिएट प्रेस को सिर्फ इसलिए कवरेज से बाहर नहीं कर सकते क्योंकि वो गल्फ आफ मैक्सिको को गल्फ आफ अमेरिका बोलने से इंकार करते हैं। Judge lifts Trump White House restrictions on AP while law suit proceeds (April 9 2025 Reuters) A US Judge on Tuesday ordered President Donald Trump’s White House to lift access restrictions imposed on the Associated Press over the news agency’s decision to continue to refer to the Gulf of Mexico in its coverage. US District Judge Trevor McFadden, who was appointed by Trump during his first term, ruled the White House must allow AP journalists access to the Oval office, Airforce One and events held at the White House while the AP’s lawsuit moves forward. ट्रम्प ने गल्फ आफ मैक्सिको का नाम गल्फ आफ अमेरिका रखते हुए इसी नाम का उपयोग करने का आदेश जारी किया था। एसोसिएट प्रेस ने ऐसा करने से मना कर दिया तो ट्रम्प प्रशासन ने प्रतिबंध लगा दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि फर्स्ट अमेंडमेंट के तहत अगर सरकार कुछ पत्रकारों को ऐक्सिस देती है तो बाकी पत्रकारों से वह ऐक्सिस इसलिए नहीं छीन सकती क्योंकि वे सरकार से अलग राय रखते हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति ने कम प्रेस कांफ्रेंस की तो वहां का प्रेस इसे लिखने से नहीं चूका। Macron to hold rare Press Conference in Prime time – France President Emmanuel Mrcron will answer journalist’s question on Tuesday evening. His reshuffled government his next policy priorities, and June’s European elections will be on the agenda (Le Monde jan 16 2024) Macron has held few wide-ranging news conference at the Elysee place and none in the evening, a timing meant to reach the broadest audience possible Tuesday’s event will be broadcast live on six national television channels.
अब बात करते हैं कनाडा में 15-17 जून को होने जा रहे G7 समिट के आउटरीच मीटिंग में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मोदी को कार्यक्रम के 7 दिन पहले बुलाये जाने को लेकर हो रही चर्चाओं पर। कनाडियन पत्रकार अपने प्रधानमंत्री से मोदी को बुलाये जाने को लेकर लगातार सवाल कर रहे हैं जिस पर वहां के पीएम मीडिया को जबाब दे रहे हैं खुद को सेफ रखते हुए। कनाडा के अखबार टोरोंटो स्टार ने सरकारी सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के आधार पर लिखा है कि पीएम ने G7 की बैठक में न्यौतने के पहले भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने कुछ शर्तें रखी थी जिस पर सोच विचार के लिए मोदी ने समय मांगा था (रिपोर्ट में शर्तों का खुलकर जिक्र नहीं है)। मोदी को न्यौतने के लिए एक शर्त यह भी थी कि कानूनी कार्रवाई पर काम हो। अब चूंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को न्यौता आ चुका है और उन्होंने उसे स्वीकार कर लिया है तो क्या यह माना जाय कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कनाडियन प्रधानमंत्री द्वारा रखी गई शर्तें मान ली हैं।. Mark Carney prepares for G7 summit littered with potential landmines (Toronto Star) Ottawa – – The charleroix curse looms over prime minister mrak carney as he gets ready to host leaders of the so-called Group of seven major western economics. Carney’s decision to invite India’s Prime Minister Narendra Modi to the G7 amid on ongoing RCMP investigation in to Modi’s government’s alleged role in the assassination of a canada citizen has stirred sharp criticism at home with the NDR demanding it be withdrawn. The Wire – Canada placed Law Enforcement conditions Before Modi for G7 summit invite : Report Prime Minister Narendra Modi’s invitation to the upcoming G7 outreach meeting in canada next week comes after a significant understanding with canadian prime minister Mark Carney, including a commitment to law enforcement cooperation, as per reports in the canadian media. This more is seen as a precondition for modi’s participation in the day-long meeting, which follows the G7 summit amid ongoing tensions over the Hardeep Singh Nijjar killing. A Federal Liberal source told the Toronto Star that carney had placed “conditions” on the invitation extended to the Indian prime minister, and that Modi asked for time to decide on whether to accept the conditions, but the source did not know the details of their conversation. On Friday carney, forcing domestic criticism for inviting modi so soon after the RCMP accused Indian agents of involvement in Nijjar murder revealed that the invitation followed “Important” bilateral progress. “We have now agreed, importantly to continued law enforcement dialogue, so there’s been some progress on that which recognises issues of accountability”. Carney said emphasising that this was a factor in extending the invitation to modi. A source told the The Toronto Star it was among “conditions” around the invitation to modi. Modi however, did not include the law enforcement dialogue in his Public. Statement about the Telephonic call with carney.
अब आते हैं भारत की सरकार और भारत का मीडिया। भारत में 2014 के पहले सरकार की आंखों में आंखें डालकर या यूं कहें कि सरकार के गिरेबान में हाथ डाल कर सवाल पूछने वाला मीडिया था जो 2014 के बाद मर गया है इसका सबसे बड़ा सबूत है भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अपने 4033 दिन, 132 महीने, 11 साल में एक भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं करना। सवाल-जबाव उससे किया जाता है जो जिंदा होता है, मुरदों से कोई सवाल – जवाब करता है क्या ? सवाल पूछने का माद्दा उनके पास होता है जो स्वतंत्र होते हैं, गुलामों की क्या औकात जो अपने मालिक से सवाल पूछ सकें उनका काम तो नजर नीची, कमर झुकी, घुटनों के बल चलकर अर्दली बजा लाना होता है। भारतीय मीडिया की इस नंगी सच्चाई के चलते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर अपने 11 साल के कार्यकाल में एक भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं करने का लगाये जाने वाला आरोप बेमानी लगता है। ऐसा नहीं है नरेन्द्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री प्रेस कांफ्रेंस करने की कोशिश नहीं की। उन्होंने एक आध पत्रकार को बुलाकर उसके सवालों को परखने की कोशिश की कि क्या वे अपनी रीढ़ सीधी रखकर आंखों में आंखें डालकर प्रधानमंत्री से सवाल कर सकते हैं, अगर वो कर सकते हैं तो फिर ओपन प्रेस कांफ्रेंस बुलाई जाय। मगर मीडिया घरानों की गुलामियत से भरे पत्रकारों ने पीएम मोदी का दिल ही तोड़ दिया यह पूछ कर कि आप आम कैसे खाते हैं काट कर या चूस कर, आप अपनी सेहत के लिए कोई टानिक वगैरह लेते हैं क्या ? भारतीय मीडिया की इतनी औकात नहीं रह गई है कि वह प्रधानमंत्री द्वारा 11 साल में एक भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं करने की निंदा कर सके। वह तो बस पालतू श्वानों की माफिक मालिक के हर कहे को बिना बुद्धि विवेक प्रसारित करता रहता है। उसका एक ही ऐम है मालिक द्वारा फेंकी जाने वाली हड्डी कम न होने पाये। हाल ही में हुए पहलगाम की घटना और उसके बाद के घटनाक्रम पर जिस तरह से स्ट्रीम मीडिया ने झूठी खबरें प्रसारित की आज दुनिया भर में भारत की बदनामी हो रही है।
भारतीय स्ट्रीम मीडिया आज भी इतना साहस नहीं जुटा पाया है कि वह पीएम मोदी से पूछ सके कि पुलवामा हत्याकांड की जांच क्यों नहीं कराई गई ? हमारी विदेश नीति इतनी कमजोर क्यों हो गई है ? भारत की कूटनीति फेल क्यों हो रही है ? ढिंढोरा तो विश्व की चौथी इकोनॉमी होने का पीटा जा रहा है लेकिन प्रति व्यक्ति आय चार अंकों तक भी नहीं पहुंच पाई है आखिर क्यों ? बेरोजगारी, मंहगाई इतनी भयावह क्यों हो रही है ? देश का अन्नदाता किसान परेशान क्यों है ? एससी एसटी ओबीसी महिलाओं के खिलाफ अपराध आखिर क्यों बढ़ रहे हैं ? नौनिहालों से लेकर उम्रदराज महिलाओं तक की आबरू सुरक्षित नहीं है आखिर क्यों ? राष्ट्रवाद के नाम पर धर्म और जाति विशेष के लोगों पर अत्याचार क्यों किया जा रहा है ? पहलगाम में आतंकवादी सीमा पार कर कैसे आ गये ? इत्मिनान के साथ 26 लोगों को मौत की नींद सुलाकर टहलते हुए चले भी गए और आज तक एक भी हत्यारा पकड़ा नहीं गया, वो कहां हैं, उन्हें जमीन निगल गई या आसमान खा गया ? पाकिस्तान से चल रही झड़प को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के कहने पर रोक दिया गया जैसा डोनाल्ड ट्रम्प लगातार एक महीने में हर मंच पर दर्जन भर से ज्यादा बार कह चुके हैं तो इसकी हकीकत क्या हैं ? भारत का प्रधानमंत्री आखिर चुप क्यों है ? सच है स्वीकार करे गलत है तो प्रतिकार करे। जैसा कि कनाडा के अखबार लिख रहे हैं कि कनाडा ने G7 की बैठक में आपको शर्तों के साथ बुलाया है और आप जा रहे तो क्या ये माना जाय कि आपने कनाडा की शर्तों की स्वीकर कर लिया है ? क्या कनाडा की शर्तों पर G7 के आउटरीच मीटिंग में भाग लेना आपकी नजरों में भारत का अपमान नहीं है ? क्या मीडिया में इतना साहस है कि वह पीएम मोदी से अडानी-अंबानी को लेकर एक भी सवाल पूछ सके। कौन पूछेगा ये सवाल कि टैक्सपेयर के पैसों से तकरीबन तीन चौथाई दुनिया घूमने के बाद एक भी देश भारत के साथ क्यों नहीं खड़ा है ? भारत के परंपरागत मित्र देश भी भारत का साथ छोडकर दुश्मन देश के पाले में क्यों खड़े हो रहे हैं ?
हाल ही में बैंगलुरु में घटित घटना के दौरान न जाने कैसे मीडिया कब्र से बाहर आकर शोर मचाने लगा, शायद उस प्रदेश में विपक्षी दल की सरकार थी। मीडिया के शोर-शराबे का असर भी सकारात्मक ही हुआ। राज्य सरकार को हरकत में आना पड़ा। पुलिस कमिश्नर को सस्पेंड कर दिया गया, क्रिकेट एसोशिएसन के पदाधिकारियों को गिरफ्तार किया गया। सरकार ने मुआवजा राशि 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये कर दी। Bengaluru stampede : CM suspend police commissioner, orders arrest of representative of RCB and others. Karnataka hikes compensation for Bengaluru stampede victims kin from Rs 10 lakh to 25 lakh for kin of deceased. मगर यह मीडिया तब कब्र से बाहर क्यों नहीं आता जब मुंबई में रेल यात्रियों की मौत हो जाती है। जब कुंभ मेले में मची भगदड़ में आधा सैकडा से ज्यादा श्रध्दालुओं की जान चली जाती है। नई दिल्ली रेल्वे स्टेशन पर मची भगदड़ में दो दर्जन से ज्यादा यात्री कालकलवित हो जाते हैं। मीडिया को स्टेशन और हास्पिटल में रिपोर्ट कवरेज करने से रोक दिया जाता है। ट्यूटर पर घटना को उजागर करते वीडियोज को डिलीट करने के आदेश दिये जाते हैं। किसानों पर गोलियां चलाई जाती है। जब महिला पहलवान यौन उत्पीड़न के खिलाफ धरना-प्रदर्शन करती हैं। नोटबंदी के दौरान लगी लंबी कतारें, कोविड के दौरान हजारों मील पैदल चलते लोग, दवाईयों के अभाव में दम तोडते लोग, अंतिम क्रिया-कर्म के लिए तरसते परिजन। Ways in which News of the stampedes has been made to vanish in Double time (Wire 22 Feb 2025) Remove videos of station stampede : Rlys notice to X (Hindustan Times 21Feb 2025) Railways ministry orders X to remove 285 links of casualty videos from the New Delhi stampede, citing ethical norms and potential law issues. The Railway ministry has directed X (formerly Twitter) to remove 285 social media links containing videos of casualties from the February 15 New Delhi Railway station stampede marking one of its first major content enforcement action since gaining direct takedown powers in December. Even media personnel were denied access, with strict orders in place to restrict movement with in the hospital permises (The Hindu) so basically the media is banned from entering in side the LNJP hospital where the injured have been taken, what is the government trying to hide ?
भारतीय मीडिया, भारतीय गवर्नमेंट और उत्तर प्रदेश सरकार को तो पूरी तरह से दिगंबर कर दिया है बीबीसी (हिन्दी) ने और बचीकुची कसर पूरी कर दी है हाईकोर्ट इलाहाबाद ने। 29 जनवरी 2025 मौनी अमावस्या के दिन कुंभ के दौरान मची भगदड़ में मारे गए लोगों की संख्या और कितनी जगह भगदड़ हुई को सरकार ने छुपाया और मीडिया भी सरकार के साथ गुलामों की तरह खड़ा भर नहीं रहा उसने तो सरकार का भोंपू बनकर यहां तक कहा कि अफवाहों पर ध्यान नहीं दें। भारतीय मीडिया ने न तो सच्चाई जानने की कोशिश की न ही सच्चाई की तह तक जाने की। बीबीसी ने कुंभ क्षेत्र का दौरा तो किया ही भारत के उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, असम और पश्चिम बंगाल राज्यों के 50 से ज्यादा जिलों में जाकर उन पीडित परिवारों से भी मिला जिनने अपने लोगों को हमेशा-हमेश के लिए खो दिया है। बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कुंभ क्षेत्र के चार स्थानों पर भगदड़ हुई थी जहां पर लोगों के मारे जाने के सबूत मिले हैं। बीबीसी के अनुसार 82 लोगों की मौत हुई है जबकि यूपी सरकार ने केवल 37 लोगों की मौत होना बताया था। योगी सरकार ने मृतक के परिजनों को 25-25 लाख रुपये मुआवजा देने की बात कही है। बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट को मोटे पर तीन केटेगरी में बांटा है। पहली केटीगिरी में उन मौतों को शामिल किया गया है जिनके परिजनों को 25-25 लाख रुपये मुआवजा दिया गया है। दूसरी केटेगरी में 5-5 रुपये मिलने वाले मृतक परिजन शामिल है। तीसरी केटेगरी में वे मृतक परिजन शामिल किए गए हैं जिन्हें कोई भी आर्थिक सहायता नहीं दी गई है। बीबीसी ने केवल उन मृतकों को ही अपनी संख्या में शामिल किया है जिन्होंने पुख्ता सबूत दिये हैं।
कुंभ के दौरान हुई भगदड़ में मारे गए लोगों को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सौमित्र पाल सिंह और संदीप जैन की खंडपीठ ने बिहार की महिला की मौत पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि राज्य सरकार केवल नीति बनाने तक ही सीमित नहीं रह सकती। उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि पीडितों को समय पर उसका लाभ मिले। सरकार को खुद आगे आकर मुआवजा योजनाओं का लाभ पीडितों तक पहुंचाना चाहिए न कि लोगों को भटकना पडे। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार, प्रयागराज के सीएमओ, मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज, स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल, महिला अस्पताल, टीवी सप्पू और अन्य चिकित्सा संस्थानों को पक्षकार बनाने का निर्देश देते हुए सरकार को कहा है कि वह 18 जुलाई तक कुंभ मेले के दौरान भर्ती तथा मृतकों का तिथिवार ब्यौरा हलफनामे के साथ पेश करे। बिहार के भगुवा निवासी उदय प्रताप सिंह ने याचिका दायर कर कोर्ट को बताया है कि उसे अभी तक मुआवजा राशि नहीं दी गई है। काफी खोजबीन के बाद 5 फरवरी को मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज के शवगृह से उसकी पत्नी का शव सौंपा गया लेकिन शव से जुड़ी पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मृत्यु प्रमाणपत्र या मेडिकल विवरण कुछ भी नहीं दिया गया है। कोर्ट ने बिना पोस्टमार्टम रिपोर्ट के शव सौंपे जाने को गंभीर लापरवाही माना है। कोर्ट का कहना है कि यह दर्शाता है कि मेला प्रशासन और चिकित्सा तंत्र के बीच समन्वय की भारी कमी थी।
मोदी सरकार के 11 साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को छोड़ कर उनके वजीरों और बीजेपी के पदाधिकारियों द्वारा प्रेस कांफ्रेंस कर उपलब्धियों का बखान किया जा रहा है तो विपक्ष के द्वारा मोदी की नाकामियों की फेहरिस्त बताई जा रही है। मोटे तौर पर देखा जाय तो नरेन्द्र मोदी के 11 साल की सबसे बड़ी उपलब्धि है कांग्रेस मुक्त बनाने का राग अलापते-अलापते पार्टी विथ डिफरेंस की पहचान और सोच को दफन कर बीजेपी को ही कांग्रेस युक्त कर देना । राहुल गांधी को पप्पू कहते-कहते उसे राजनीतिक रूप से परिपक्व बना देना। राहुल की परिपक्वता के सामने नरेन्द्र मोदी का लगभग हर मंच से पलायन करना।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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