CBSE 12वीं बोर्ड परीक्षा भी साल में दो बार होंगी !!!!!
CBSE और NEP को लेकर उठते सवालों का विश्लेषण
देश की सबसे बड़ी स्कूल शिक्षा बोर्ड – केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) – द्वारा हाल ही में किए गए एक बड़े फैसले के बाद शिक्षा क्षेत्र में कई सवाल उठने लगे हैं। बोर्ड ने घोषणा की है कि वर्ष 2026 से कक्षा 10वीं की बोर्ड परीक्षा साल में दो बार कराई जाएगी। यह निर्णय नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के दिशा-निर्देशों के तहत लिया गया है।
अब सवाल यह है कि क्या 12वीं बोर्ड परीक्षाएं भी इसी तर्ज पर साल में दो बार आयोजित की जाएंगी? इस लेख में हम इस प्रश्न की तह तक जाएंगे, विशेषज्ञों की राय जानेंगे और NEP के उस पहलू को समझेंगे, जिसमें परीक्षा प्रणाली को नया आकार देने की बात कही गई है।
रीतेश माहेश्वरी
10वीं बोर्ड के फैसले की पृष्ठभूमिवीं बोर्ड के फैसले की पृष्ठभूमि
CBSE ने 10वीं बोर्ड परीक्षा को “टर्मिनल-आधारित मूल्यांकन” से हटाकर एक लचीली, दो बार होने वाली परीक्षा प्रणाली की ओर मोड़ा है। पहली परीक्षा अनिवार्य होगी और दूसरी परीक्षा वैकल्पिक होगी, जिसमें वही छात्र भाग लेंगे जिन्होंने पहली परीक्षा दी होगी। इसका उद्देश्य छात्रों पर दबाव कम करना और उन्हें अपनी क्षमताओं को प्रदर्शित करने के लिए एक और मौका देना है।
12वीं बोर्ड परीक्षा: क्या होगा दो बार आयोजन?
NEP 2020 क्या कहती है?
नई शिक्षा नीति 2020 के पैरा 4.37 में कहा गया है:
“बोर्ड परीक्षाएं विषय-वस्तु की समझ, अवधारणात्मक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक सोच को प्राथमिकता देने के लिए पुनर्निर्मित की जाएंगी। छात्रों को एक विषय में दो अवसर मिलेंगे ताकि वे बेहतर प्रदर्शन कर सकें।”
यह साफ संकेत है कि भविष्य में 12वीं कक्षा में भी साल में दो बार परीक्षा का विकल्प देने की योजना बन सकती है। हालांकि, 12वीं बोर्ड को लेकर अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन 10वीं में इस व्यवस्था को लागू करना एक तरह का ट्रायल रन माना जा रहा है।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
दिल्ली स्थित विद्या बाल भवन सीनियर सेकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल और CBSE से जुड़े कई पैनलों के सदस्य डॉ. सतबीर शर्मा के अनुसार:
“यह बदलाव 12वीं में लागू करने से पहले बोर्ड 10वीं के मॉडल से व्यावहारिकता परख रहा है। 12वीं की परीक्षा दो बार कराने से परिणाम घोषित करने की समयसीमा, विश्वविद्यालयों में दाखिले की प्रक्रिया और अंतरराष्ट्रीय शिक्षा कैलेंडर पर असर पड़ सकता है।”
चुनौतियाँ जो सामने आ सकती हैं:
- रिजल्ट में देरी: 12वीं के परिणाम में देरी से छात्रों का दाखिला अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में प्रभावित हो सकता है।
- प्रवेश परीक्षा तालमेल: JEE, NEET जैसी परीक्षाओं की समय-सीमा को दो बार होने वाली 12वीं परीक्षा से तालमेल बैठाना आसान नहीं होगा।
- प्रशासनिक दबाव: प्रश्नपत्र निर्माण, मूल्यांकन और स्कूल स्तरीय व्यवस्थाएं दुगनी हो जाएंगी।
क्या कहता है डेटा और अनुभव?
CBSE पहले भी कोविड-19 के समय दो टर्म परीक्षा का प्रयोग कर चुका है। उस दौरान “Term-1” और “Term-2” परीक्षाएं ली गई थीं, जिससे छात्रों को कम दबाव में आकलन का अवसर मिला। यह प्रणाली हालांकि स्थायी नहीं बनी, लेकिन उससे CBSE को यह अंदाजा मिला कि परीक्षा प्रणाली में लचीलापन कैसे काम करता है।
क्या अन्य बोर्ड भी अपनाएंगे यह मॉडल?
CBSE के इस मॉडल के प्रभाव से राज्य शिक्षा बोर्डों पर भी असर पड़ेगा। अभी तक किसी अन्य बोर्ड ने दो बार परीक्षा आयोजित करने की पहल नहीं की है, लेकिन अगर CBSE 12वीं में भी यह मॉडल सफलतापूर्वक लागू करता है, तो संभावना है कि अन्य बोर्ड भी इस प्रणाली को अपनाएं।
बदलाव संभव लेकिन सावधानी जरूरी
CBSE की 10वीं बोर्ड परीक्षा को साल में दो बार कराने का फैसला छात्र-केंद्रित शिक्षा प्रणाली की दिशा में एक साहसिक कदम है। लेकिन 12वीं बोर्ड परीक्षा को दो बार कराना एक बड़ी चुनौती है, जिसमें केवल अकादमिक ही नहीं, प्रशासनिक और वैश्विक स्वीकार्यता जैसे पहलुओं पर भी विचार करना होगा।
जब तक एक सुव्यवस्थित प्रणाली नहीं बनती और विश्वविद्यालयों के दाखिला कैलेंडर को इससे तालमेल नहीं बैठाया जाता, तब तक 12वीं में यह व्यवस्था लागू करना जोखिमपूर्ण हो सकता है। लेकिन यदि CBSE इस दिशा में ठोस आधार तैयार कर पाता है, तो भारत की मूल्यांकन प्रणाली को विश्वस्तरीय मानकों के करीब पहुंचाने में यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है।
शिक्षा में बदलाव धीरे-धीरे होता है, लेकिन सही दिशा में उठाया गया एक कदम लाखों छात्रों के भविष्य को नई राह दे सकता है।
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