पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का नाम महाराजा अग्रसेन के नाम पर रखने की दिल्ली मुख्यमंत्री की मांग !
कौन थे महाराजा अग्रसेन, जिनके नाम पर हो रही है पुरानी दिल्ली स्टेशन का नाम बदलने की चर्चा?
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का नाम बदलने की मांग
नई दिल्ली केशव माहेश्वरी
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने हाल ही में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को पत्र लिखकर पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर महाराजा अग्रसेन रेलवे स्टेशन रखने की मांग की है। जैसे ही यह पत्र सार्वजनिक हुआ, यह राजनीतिक बहस का विषय बन गया। जहां विपक्ष ने इसे “नाम की राजनीति” बताया, वहीं सत्तारूढ़ दल ने इस कदम को सांस्कृतिक सम्मान की दिशा में जरूरी बताया है। अब सबकी निगाहें केंद्र सरकार के फैसले पर टिकी हैं।
इस मांग को व्यापारिक वर्ग को साधने की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। पुरानी दिल्ली क्षेत्र लंबे समय से व्यापारिक गतिविधियों का गढ़ रहा है, और महाराजा अग्रसेन अग्रवाल समाज के पूजनीय पुरुष माने जाते हैं। ऐसे में यह पहल राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
कौन थे महाराजा अग्रसेन?
भारतीय इतिहास में महाराजा अग्रसेन एक आदर्श, प्रजावत्सल और न्यायप्रिय शासक के रूप में माने जाते हैं। वे अग्रवाल समाज के आदि पुरुष थे और भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना में आज भी गहरे रचे-बसे हैं। माना जाता है कि वे भगवान राम के वंशज और सूर्यवंशी थे। उनका जन्म आज से करीब 5 हजार वर्ष पूर्व हुआ था और उन्होंने अग्रोहा (वर्तमान हरियाणा के हिसार के निकट) को अपनी राजधानी बनाया।
शासन व्यवस्था और विचारधारा
महाराजा अग्रसेन का शासन अहिंसा, समानता और सहयोग के सिद्धांतों पर आधारित था। उनका यह दृष्टिकोण उस दौर के अन्य राजाओं से बिल्कुल अलग था।
वे युद्ध के बजाय शांति और समाजवाद को महत्व देते थे।
जाति और धर्म के भेदभाव से ऊपर उठकर सर्वजन हिताय की भावना से शासन करते थे।
जब भी कोई नया व्यक्ति व्यापार करने के इरादे से अग्रोहा आता, तो नगर के प्रत्येक घर से एक ईंट और एक रुपया उसे दिया जाता, जिससे वह अपने व्यवसाय की शुरुआत कर सके।
यह एक तरह का प्राचीन सामाजिक सुरक्षा मॉडल था, जिसे आज की भाषा में ‘इन्क्लूसिव ग्रोथ’ कहा जा सकता है।
व्यापार को बढ़ावा और आर्थिक दृष्टिकोण
महाराजा अग्रसेन ने उद्यमिता, मेहनत और नैतिकता को जीवन की सफलता की कुंजी माना। उनका मानना था कि व्यापार न सिर्फ समृद्धि का मार्ग है, बल्कि सामाजिक समरसता और परस्पर सहयोग का भी आधार है। यही कारण है कि अग्रवाल समाज आज भी देश के प्रमुख व्यापारिक समुदायों में गिना जाता है।
धार्मिक दृष्टिकोण और आध्यात्मिक सोच
प्रारंभ में महाराजा अग्रसेन शैव मार्ग पर चल रहे थे, लेकिन बाद में महर्षि गर्ग की प्रेरणा से उन्होंने वैष्णव परंपरा को अपनाया। वे यज्ञों में बलि प्रथा के विरोधी थे और अहिंसा के सिद्धांतों को जीवन में उतारने वाले पहले राजाओं में से एक माने जाते हैं। उन्होंने न सिर्फ धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया, बल्कि समाज में धर्म के नाम पर होने वाले भेदभाव को भी समाप्त किया।
आज भी जिंदा हैं स्मृतियां
देशभर में महाराजा अग्रसेन के नाम पर स्कूल, कॉलेज, धर्मशालाएं मौजूद हैं। दिल्ली में अग्रसेन की बावली एक ऐतिहासिक स्थल के रूप में जाना जाता है। हरियाणा के अग्रोहा धाम में बना उनका मंदिर आज भी लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।
महाराजा अग्रसेन केवल एक राजा नहीं, बल्कि समाजवादी सोच, आर्थिक उदारवाद और धार्मिक सहिष्णुता के प्रतीक हैं। उनके नाम पर रेलवे स्टेशन का नाम रखे जाने की मांग केवल प्रतीकात्मक बदलाव नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों को सम्मान देने की दिशा में एक कदम माना जा सकता है। अब देखना यह है कि केंद्र सरकार इस पर क्या फैसला लेती है ।
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