चोल राजवंश की अनुपम कृति तंजावुर का वृहदेश्वर मंदिर*
तमिलनाडु के जनपद तंजावुर यानी तंजौर में चोल राजवंश की अनुपम कृति के रुप में भगवान शंकर का मंदिर है। वहाँ के सभी मंदिरों में यह मंदिर सबसे विशाल है। अतः इसे वृहदेश्वर भी कहते हैं। चोल राजा राजराजेश्वर मुदलियार द्वारा इसका निर्माण कराया गया था इसलिए इसे राज राजेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। यह भारत में भगवान शंकर के सर्वाधिक विशाल मंदिरों में से एक है। वृहदेश्वर मंदिर को सन् 1987 में यूनेस्को द्वारा विश्व-विरासत सूची में सम्मिलित किया गया।
इसके गर्भगृह में विराजमान ‘शिवलिंगम’ 3.66 मीटर ऊँचा है। राजराजेश्वर मुदयार ने मंदिर का नामकरण इसकी विशालता के अनुरूप ही वृहदेश्वर किया था। मंदिर का प्रांगण आयताकार (240 मीटर लम्बा और 120 मीटर चौड़ा) है। मंदिर का शिखर 60.96 मीटर ऊंचा है। इसके निर्माण के लिए उस समय 50 किलोमीटर दूर से पत्थर लाए गये थे।
वृहदेश्वर मंदिर दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस मंदिर का गर्भगृह, विमानम और गोपुरम अत्यधिक विस्तृत और सुंदर हैं। गर्भगृह में भगवान शिव की विशाल मूर्ति है, जो लिंग रूप में है। गोपुरम में विभिन्न देवी देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। विशाल प्रदक्षिणा पथ भी है।
वृहदेश्वर मंदिर अपने विशाल आकार के लिए तो प्रसिद्ध है ही मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर भी सुंदर नक्काशी की गयी है, जो चोल वंश की कला का अद्वितीय उदाहरण है। यह मंदिर चोल वंश के इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अतिरिक्त पाँच और मंदिर हैं- चण्डिकेश्वर अम्मन, सुब्रमण्यम, गणेश और कार्तिकेश्वर। मंदिर का विशाल गोपुरम भी मुख्य मंदिर निर्माण के समय ही बना था। मंदिर की दीवारों पर विभिन्न देवी-देवताओं की कलात्मक मूर्तियाँ निर्मित की गई हैं। यहाँ गणेश, श्रीदेवी, भूदेवी, विष्णु, अर्धनारीश्वर चन्द्रशेखर आदि देव रूपों के दर्शन होते हैं। मुख्य मंदिर के सामने नंदी की विशाल प्रतिमा एक चबूतरे पर बनी है। मंदिर में नृत्यरत कई सुन्दर प्रतिमाएं भी दर्शनीय हैं।
वृहदेश्वर मंदिर का निर्माण कार्य सन् 1003 ई. में राजा चोल के शासनकाल में प्रारम्भ हुआ, जो सन् 1010 ई. में पूर्ण हुआ।
इस मंदिर में दर्शन के लिए महात्मा गांधी भी पहुंचे थे। मंदिर परिसर में महात्मा गांधी के सन् 1939 ई. में आशीर्वाद स्वरूप लिखे गए पत्र की प्रति लगाई गई है, जिसमें उल्लेख है कि चोल राजा ने अपने शासन-क्षेत्र के 90 मंदिरों को सभी जातियों के प्रवेश और पूजा-अर्चना के लिए खोल दिया है,इसमें वृहदेश्वर मंदिर भी शामिल है। सितम्बर 2010 में मंदिर की एक सहस्त्राब्दि (एक हजार वर्ष) होने पर अभिनन्दनीय आयोजन हुआ था। तिरुचिरापल्ली से तंजावुर (तंजौर) 50 कि.मी. एवं चेन्नई (मद्रास) से 350 कि.मी. दूर है।
अंजनी सक्सेना-विभूति फीचर्स
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!