अमेरिका का टैरिफ दबाव नहीं सहेगा भारत !
‘टैरिफ मैन’ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर 25% टैरिफ की घोषणा के बाद इसे 7 दिन के लिए टाल दिया है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार ये 1 अगस्त 2025 से लागू होना था, जो अब 7 अगस्त 2025 से लागू होगा। पाठकों को बताता चलूं कि ट्रम्प ने हाल ही में यानी कि 31 जुलाई 2025 को ही भारत पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की थी तथा अभी तक अमेरिका भारत पर 10% बेसलाइन टैरिफ लगा रहा था। हैरानी की बात है कि अमेरिका ने यहां तक कहा है कि वो भारत के रूस से हथियार और तेल खरीदने पर जुर्माना भी लगाएगा, लेकिन भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने इसके प्रतिउत्तर में यह बात कही है कि वह ट्रंप की टैरिफ की इस घोषणा के प्रभावों को देखते हुए और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी जरूरी व आवश्यक कदम उठाएंगे। पाठकों को बताता चलूं कि ट्रंप का भारत पर यह टैरिफ स्टील, एल्यूमीनियम, ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और ज्वेलरी जैसे क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है। बहरहाल,यहां पाठकों को यह भी बताता चलूं कि ट्रम्प ने 92 देशों पर नए टैरिफ की एक सूची जारी की है। इसमें भारत पर 25% और पाकिस्तान पर 19% टैरिफ लगाया गया है। हालांकि, अमेरिकी देश कनाडा पर 1 अगस्त 2025 से ही 35% टैरिफ लागू हो गया है। गौरतलब है कि दक्षिण एशिया में सबसे कम टैरिफ पाकिस्तान पर लगा है। गौरतलब है कि अमेरिका ने पहले पाकिस्तान पर 29% टैरिफ लगा रखा था। वहीं, दुनियाभर में सबसे ज्यादा 41% टैरिफ सीरिया,लाओस और म्यांमार पर 40 प्रतिशत, स्विट्जरलैंड पर 39 प्रतिशत, तथा इराक़ और सर्बिया पर 35 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है।जानकारी के अनुसार इस लिस्ट में चीन का नाम शामिल नहीं है। गौरतलब है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने 2 अप्रैल 2025 को दुनियाभर के देशों पर टैरिफ लगाने की घोषणा की थी, लेकिन 7 दिन बाद ही इसे 90 दिनों के लिए टाल दिया था और कुछ दिनों बाद ट्रम्प ने 31 जुलाई तक का समय दिया था। इसके बाद ट्रम्प सरकार ने 90 दिनों में 90 सौदे कराने का टारगेट रखा था।यह बात अलग है कि अमेरिका का अब तक सिर्फ 7 देशों से समझौता हो पाया है। यहां पर यदि हम एशियाई देशों की बात करें तो इनमें क्रमशः चीन पर 30 प्रतिशत, भारत और कजाकिस्तान पर 25 प्रतिशत, वियतनाम पर 20 प्रतिशत, थाइलैंड और आस्ट्रेलिया पर 19 प्रतिशत तथा इराक,तुर्किए, जापान तथा दक्षिण कोरिया पर 15 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है। यूरोपीय देशों में यूरोपीय यूनियन, स्विट्जरलैंड और नार्वे पर 15 प्रतिशत तथा ब्रिटेन पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है। बहुत बड़ी बात है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिकी देशों कनाडा, ब्राजील,गयाना, मेक्सिको, कोलंबिया और अर्जेंटीना तक को भी नहीं बख्शा है।
अफ्रीकी देशों की यदि हम यहां पर बात करें तो इनमें लीबिया, साउथ अफ्रीका, और अल्जीरिया पर 30 प्रतिशत तथा मेडागास्कर पर 15 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है। बहरहाल, यहां प्रश्न यह उठता है कि आखिर अमेरिका ने भारत पर इतना बड़ा टैरिफ क्यों लगाया है ? तो इसकी अनेक वजहें हैं। पहला तो यह कि अमेरिका यह चाहता है कि भारत उसके डेयरी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें। लेकिन जैसा कि अमेरिका के डेयरी उत्पादों में जानवरों की हड्डियों से बने एंजाइम का इस्तेमाल होता है। इसलिए भारत को धार्मिक-सामाजिक वजहों से इसे लेकर आपत्ति है।दूसरी बड़ी वजह भारत की ट्रम्प की टैरिफ पॉलिसी पर असहमति है।भारत अमेरिका द्वारा लगाए जाने वाले रेसिप्रोकल टैरिफ पर असहमत है।भारत स्टील, एल्यूमीनियम, और ऑटो पार्ट्स पर पहले से लागू अमेरिकी टैरिफ में भी छूट दिए जाने की मांग कर रहा है। इतना ही नहीं,भारत यह चाहता है कि उसके कपड़ा, गहने, चमड़ा और प्लास्टिक इंडस्ट्री को अमेरिकी मार्केट में ज्यादा से ज्यादा स्थान मिले।एक अन्य कारण यह भी है कि भारत अपने आर्थिक हितों को लेकर काफी सजग और सतर्क है।इधर, ट्रंप के भारत पर भारी टैरिफ के बीच हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डोनाल्ड ट्रम्प को संदेश देते हुए यह बात कही है कि वे ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देंगे।
दरअसल, उन्होंने (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने) साफतौर पर यह कहा है कि-‘ वे वही चीजें खरीदेंगे जिनमें किसी भी भारतीय का पसीना बहा हो।’ कहना ग़लत नहीं होगा कि प्रधानमंत्री जी ने ‘वोकल फॉर लोकल मंत्र'(स्वदेशी अपनाओ की बात)को अपनाने की बात कहकर एक प्रकार से अमेरिका को तगड़ा संदेश दे दिया है कि अब भारत किसी भी हाल और परिस्थितियों में अमेरिका के दबाव में आने वाला नहीं है और वह अपनी आर्थिक व व्यापारिक नीतियों के लेकर बहुत ही सतर्क व सजग है। कहना ग़लत नहीं होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह बयान ट्रंप के भारतीय सामान पर 25% टैक्स लगाने के जवाब के तौर पर देखा जा रहा है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘वोकल फॉर लोकल मंत्र’ की बात शनिवार 2 अगस्त 2025 को उस समय कही जब वे वाराणसी के बनौली गांव में एक जनसभा को संबोधित कर रह रहे थे। उन्होंने कहा कि-‘आज दुनिया की अर्थव्यवस्था कई आशंकाओं से गुजर रही है।अस्थिरता का माहौल है। दुनिया के सभी देश अपने-अपने हितों पर ध्यान केंद्रित कर रहे है। भारत दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। अब भारत को भी अपने आर्थिक हितों को लेकर सजग रहना होगा। किसान, हमारे लघु उद्योग और रोजगार हमारे लिए सर्वोपरि है। सरकार इस दिशा में हर प्रयास कर रही है।’ इस दौरान उन्होंने आमजन से यह आह्वान किया कि अब त्योहार आएंगे, दिवाली आएगी, ऐसे में हम स्वदेशी ही खरीदे।
उन्होंने कहा कि भारत में ही शादी करें, ‘स्वदेशी का भाव’ भारत का भविष्य तय करेगा और यह हम देशवासियों की महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि होगी।अपने 53 मिनट के भाषण के अंतिम छह मिनट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘भारत की अर्थव्यवस्था और स्वदेशी’ का जिक्र किया तथा इस दौरान उन्होंने 22,00 करोड़ रुपए की 52 योजनाएं भी लॉन्च की। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि चीन पर ऊंचे टैरिफ के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 1 अगस्त से भारत पर जो 25 फीसदी आयात शुल्क लगाने के साथ ही रूस से सैन्य उपकरण और कच्चा तेल खरीदने पर भी जुर्माना लगाने की बात कही है, यह ट्रंप की सरासर मनमानी ही कही जा सकती है। दरअसल, ट्रंप की भारत के प्रति यह शिकायत रही है कि भारत ग्लोबल ट्रेड में अत्यंत कठोर नीतियों का पालन करता है। निश्चित ही इसका व्यापक असर दोनों देशों के संबंधों पर पड़ेगा।कटु सत्य तो यह है कि अमेरिका आर्थिक-सामरिक रूप से भारत के साथ नहीं बल्कि पाकिस्तान के साथ खड़ा है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है। ऐसे में अब भारतीय कंपनियों को सोच-समझकर तथा बहुत संभलकर अपने लिए नये बाजार खोजने होंगे और आगे बढ़ना होगा। हालांकि, यह भी एक कड़वा सच है कि अपने ट्रेड वॉर(टैरिफ वार) में अब ट्रंप पूरी तरह से विफल नजर आ रहे हैं और भारत के कड़े रुख से झल्लाकर डोनाल्ड ट्रंप जहां एक ओर बेतुके बयान दे रहे हैं वहीं दूसरी ओर वे हड़बड़ाहट में फैसले ले रहे हैं।
कहना ग़लत नहीं होगा कि देखा जाए तो यह एक प्रकार से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आर्थिक, राजनैतिक और कूटनीतिक स्तर पर विफलता ही कही जा सकती है।इस क्रम में 02 अगस्त 2025 शनिवार को ही राष्ट्रपति ट्रंप ने यह दावा किया कि उन्होंने भारत की ओर से रूसी तेल आयात रोकने की खबरें सुनी हैं और इसे एक अच्छा कदम बताया है। वास्तव में सच तो यह है कि हकीकत इससे बिल्कुल परे हैं। पाठकों को बताता चलूं कि भारत की सरकारी और गैर-सरकारी तेल रिफाइनरी कंपनियों ने न तो रूसी सस्ता तेल खरीदना ही बंद किया है और न ही इस तरह का कोई विचार ही जाहिर किया है।दरअसल, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक समाचार एजेंसी के हवाले से यह बात कही है कि-‘ उन्होंने भारत द्वारा रूसी तेल खरीदना बंद करने की बात सुनी है। मैं समझता हूं कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा। मुझे नहीं पता कि यह सही है या नहीं। यह एक अच्छा कदम है। हम देखेंगे कि आगे क्या होता है।’ गौरतलब है कि ट्रंप के बयान के कुछ ही समय बाद दिल्ली में सरकारी सूत्रों ने उनके इन दावों(रूस से तेल न खरीदने के दावों) को खारिज कर दिया तथा इस बात की पुष्टि की कि भारत का ऊर्जा आयात बाजार की ताकतों और राष्ट्रीय हित से प्रेरित है। पाठकों को बताता चलूं कि सरकार ने इससे पहले भी शुक्रवार को भी स्थिति स्पष्ट कर दी थी कि देश की ऊर्जा खरीद बाजार की ताकतों और राष्ट्रीय हितों से प्रेरित है और उन्हें भारतीय तेल कंपनियों द्वारा रूसी आयात रोकने की कोई रिपोर्ट नहीं मिली है।
बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि हड़बड़ाहट में किए फैसले में ट्रंप ने श्रम सांख्यिकी ब्यूरो(रोजगार के आंकड़े जारी करने वाली संस्था) की प्रमुख एरिका मैकएंटार्फर(अमेरिका की श्रम शास्त्री)को बर्खास्त करने के निर्देश दिए हैं। दरअसल, इस एजेंसी ने अपनी एक रिपोर्ट में यह कहा था कि बेरोजगारी दर बढ़ गई है।इसके बाद ट्रंप ने यह कहा कि राजनीतिक कारणों से ऐसी रिपोर्ट दी जा रही है। उल्लेखनीय है कि एरिका को बाइडन काल में नियुक्त किया गया था। वास्तव में, डोनाल्ड ट्रंप ट्रेड डील में भारत के कड़े रुख, टैरिफ नीति के अनुकूल परिणाम नहीं आने और रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त करवाने में विफलता से हैरान हैं। भारत सरकार ने वस्तु विशेष पर टैरिफ तय करने पर अपना जोर रखा, जो ट्रंप को पसंद नहीं आया। इतना ही नहीं, भारत कृषि व डेयरी उत्पाद के लिए भी भारतीय बाजार खोलने पर राजी नहीं हुआ और भारत ने अमेरिका से एफ-35 लड़ाकू विमान खरीदने में भी अपनी रुचि नहीं दिखाई। और तो और भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ रुकवाने के ट्रंप सरकार के दावे को भी सिरे से खारिज कर दिया। आश्चर्यजनक है कि पहले पुतिन को दोस्त बताने वाले ट्रंप अब उनकी ही कड़ी आलोचना कर रहे हैं। पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव के बयान के बाद ट्रंप ने दो न्यूक्लियर पनडुब्बियों को ‘उचित जगह’ पर तैनात होने का भी आदेश दिया।रूस हमेशा हमेशा से भारत का एक मित्र राष्ट्र रहा है और भारत के रूस के साथ संबंध बहुत अच्छे रहे हैं। अमेरिका के टैरिफ दबाव के बीच भी भारत अपने मित्र राष्ट्र रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा, भले ही अमेरिका कितने ही कड़े प्रतिबंध भारत पर क्यों न लगाए।
सुनील कुमार महला,
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार,
उत्तराखंड।
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