खरी खरी : कहीं पीएम मोदी का लाल किले से भाषण अंतिम तो नहीं !
लाल किले की प्राचीर से RSS का नाम लेने पर होने लगी चर्चा
सच स्वीकारा है तो नजीर बनिये दीजिए इस्तीफा
प्रधानमंत्री कार्यालय जो काम अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में नहीं कर सका उसे उसने नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में करके दिखा दिया है और अपने उद्बोधन में जिस संस्था का नाम अटल बिहारी वाजपेयी अपने प्रधानमंत्री रहते नहीं ले सके उस संस्था का नाम प्रधानमंत्री नरेन्द्र ने आजादी की 78 वीं वर्षगांठ पर देश को संबोधित करते हुए लाल किले की प्राचीर से लेकर न केवल आजादी के जश्न को दागदार किया बल्कि आजादी के सेनानियों की शहादत को भी शर्मसार कर दिया। देश को आजाद कराने के लिए जिन भारतवासियों ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम कर अपने ही हाथों अपने गले में पहन लिया और वंदेमातरम कहते हुए शहीद हो गए निश्चित रूप से उनकी मृत आत्माओं को असीम वेदना सहनी पड़ी होगी जब उन्होंने पीएम मोदी के मुंह से एक ऐसी संस्था का नाम सुना होगा जिसके बारे में आजादी के पन्ने कोरे हैं। इतना ही नहीं मोदी सरकार के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने तो सारी सीमाओं को लांघते हुए एक ऐसा विज्ञापन प्रकाशित कर दिया जिसने देश के सिर को गर्दन के भीतर ही घुसेड़ कर रख दिया। प्रधानमंत्री का 103 मिनट का ऊबाऊ भाषण तैयार करने वाले पीएमओ कार्यालय ने प्रधानमंत्री के हाथों में वे सारे दस्तावेज पकड़ा दिये जिसका जिक्र प्रधानमंत्री बीते 100 दिनों से अलग अलग मौकों पर करते रहे हैं। बीते 100 दिनों के भीतर प्रधानमंत्री ने देश भर में की गई तकरीबन 7 रैलियों में, 4 बार सेनाओं के बीच में जाकर और बंद कमरों में होने वाली लगभग दो दर्जन बैठकों में जिस बात को कहा है वहीं बाते एक बार फिर से समेट कर प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से 103 मिनट में देश के सामने रखीं हैं।
प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों को बलिदान कर देने वाले भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद का नाम नहीं लिया, प्रधानमंत्री को न तो महात्मा गांधी की याद आई न ही उस दौर के किसी नेता की उन्हें याद आई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की जिसका आजादी के इतिहास में शायद ही कहीं संघर्ष करते हुए जिक्र होगा और अगर होगा भी तो फिरंगियों की मुखबिरी करते हुए या माफीनामा लिखते हुए। दस्तावेज तो यही कहते हैं कि उस दौर में आरएसएस सावरकर की राह पर चल रही थी और सावरकर भी मोहम्मद अली जिन्ना की तरह टू नेशन थ्योरी के पक्षधर थे यानी एक मुसलमानों का देश चाहता था तो दूसरा हिन्दुओं का जबकि महात्मा गांधी और उस दौर के दूसरे सभी बड़े नेता टू नेशन थ्योरी के खिलाफ थे उनकी सोच हिन्दू – मुस्लिम से हटकर हिन्दुस्तान की थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में आरएसएस का जिक्र करके जहां आजादी के शहीदों के परिवारों की दुखती रग पर नमक छिड़क दिया है तो दूसरी तरफ़ इस सवाल को भी जन्म दे दिया है कि क्या वे संघ का नाम लेकर संघ से मर्सी अपील कर रहे हैं 17 सितम्बर के आगे के लिए या फिर ये मोदी का लालकिले की प्राचीर से बतौर प्रधानमंत्री अंतिम और विदाई भाषण है?
प्रधानमंत्री कार्यालय के भाषण लिखितकर्ता ने पूरे भाषण को ही हंसी का पात्र बना डाला है, लगता है उसने किसी खुन्नस का बदला लिया तभी तो उसने प्रधानमंत्री से झूठ पर झूठ कहलवा दिया है ! आरएसएस में स्वयंसेवकों के रूप में युवाओं की कतार, राजनीतिक पार्टियों की रैलियों में युवाओं की कतार, रोजगार के लिए संघर्ष करते युवाओं की कतार जिनमें खासकर 19 से 29 साल आयु वर्ग के युवाओं की भरमार खुलकर नजर आती है। प्रधानमंत्री ने लालकिले पर खड़े होकर जिन बातों का जिक्र किया है वो हैरान करने वाली हैं मसलन विकसित भारत, आत्म निर्भर भारत, वोकल फार लोकल, आदि इनकी चर्चा प्रधानमंत्री तकरीबन 112 बार कर चुके हैं लेकिन उनकी किसी भी बात को देश गंभीरता से नहीं ले रहा है, आखिर क्यों ? प्रधानमंत्री की अमेरिका से हो रही बातचीत चीन तक पहुंच जाती है। देश की जिस इकोनॉमी को फोकस करते हुए प्रधानमंत्री विकसित भारत का सपना परोसने से नहीं चूकते। जिस 4 ट्रिलियन डालर वाली इकोनॉमी को लेकर सरकार छाती फुलाये घूमती है उसकी हकीकत यह है कि अगर इसमें से देश के अंबानी – अडानी, टाप पर बैठे कार्पोरेटस और इंडस्ट्रियलिस्ट की पूंजी को निकाल दिया जाय तो भारत की प्रतिव्यक्ति आय दुनिया के सबसे गरीब देशों की कतार में खड़ी हो जाती है। प्रधानमंत्री देश के किसानों, मछुआरों और पशुपालकों पर दरियादिली दिखाने वाली बातें इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि अगर किसान, मछुआरे, पशुपालक रूठ गया तो बीजेपी को मिलने वाला 23 करोड़ वोट सिर्फ और सिर्फ 3 करोड़ पर सिमट जायेगा। जबकि यह भी देश का डरावना सच है कि किसानों की हालत यह है कि उन्हें फर्टिलाइजर्स खाद के लिए तीन दिनों तक दिन रात खड़ा रहना पड़ता है तब भी खाद नहीं मिल पाती है। कल्पना कीजिए अगर चीन फर्टिलाइजर पर रोक लगा दे तो भारत के किसानों के हालात कैसे होंगे? यानी भारत अपने बूते किसानों को फर्टिलाइजर खाद तक मुहैया कराने की स्थिति में नहीं है।
प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से अपने भाषण में जो बातें कही हैं उससे तो ऐसा ही लगता है कि भारत को विकसित होने की जरूरत ही नहीं है वह तो आलरेडी विकसित हो चुका है। तीन करोड़ लखपती दीदी, भरपूर आय के साथ जीने वाले 9 करोड़ किसान, 3.5 करोड़ युवाओं की व्यवस्था प्रधानमंत्री ने कर ही दी है, 3 करोड़ से ज्यादा बुजुर्गो और दिव्ययांगों को मुद्रा योजना के साथ जोडते हुए तकरीबन 60 करोड़ लोगों को प्रधानमंत्री सबकुछ दे चुके हैं। जो बचते हैं उनमें से 18 साल से कम उम्र के बच्चों को माइनस कर दिया जाय तो हथेली में समा जाने लायक चंद करोड़ लोग ही तो बचते हैं। मगर हकीकत इसके उलट है। एक ओर उत्पादन के क्षेत्र में भारत सबसे नीचे के पायदान पर खड़ा होता है, मैन्यूफैक्चरिंग में उसका अपना विकास रेट निगेटिव में है इसके बाद भी भारत का कार्पोरेट दुनिया में सबसे रईसों की कतार में खड़ा हो गया है, वर्ल्ड बैंक तथा एमआईएफ ने लाखों लोगों को गरीबी रेखा से निकाल दिया है फिर भी प्रधानमंत्री बीते 10 सालों से लेकर अभी भी आत्मनिर्भरता का जिक्र कर रहे हैं। हकीकत भी यही है कि प्रधानमंत्री ने बीते 10 सालों में केवल और केवल सपने ही परोसे हैं। इसीलिए आज भी भारत को अपने ही भीतर भूख के खिलाफ, गरीबी के खिलाफ, बेरोजगारी के खिलाफ लड़ाई लड़नी पड़ रही है। इस बात को लेकर प्रधानमंत्री के माथे पर भी शिकन दिखाई दे रही है। एक ओर अमेरिका रूठा हुआ है तो दूसरी ओर चीन से गलबहियाँ होने लगी है, रशिया से भी कई क्षेत्रों में निकटता दिख रही है। रशिया के राष्ट्रपति पुतिन निकट भविष्य में भारत आने वाले हैं। चीन के विदेश मंत्री भी भारत आयेंगे। भारत के प्रधानमंत्री इसी महीने के अंत में चीन जाने वाले हैं। विदेश मंत्री भी हफ्ते भर बाद रशिया जायेंगे। नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर चीन और रशिया घूम कर लौट आये हैं। रक्षा मंत्री भी तमाम जगह की तफरी कर चुके हैं।
देश के कार्पोरेट की पूंजी वेस्टर्न कंट्रीज और अमेरिका के रास्ते ही गुजरती है। बीते 7 वर्षों में एक्सपोर्ट घटकर कार्पोरेट और बड़े इंडस्ट्रलीज के हिस्से में आकर खड़ा हो गया है। यहां तक कि दुनिया के बाजार में बेचे जाने वाला बासमती चावल भी कार्पोरेट के जरिए बेचा जा रहा है। मतलब दुनिया में टेरिफ वार का असर जनता पर नहीं कार्पोरेट पर पड़ रहा है। चूंकि सरकार को पता है कि कार्पोरेट के लिए मुनाफा कितना जरूरी है तो उसके लिए नये रास्ते बनाने पड़ेंगे। लालकिले से प्रधानमंत्री कहिन कि “भारत के किसान, भारत के मछुआरे, भारत के पशुपालक उनसे जुड़ी किसी भी अहितकारी नीति के आगे मोदी दीवार बनके खड़ा है”। दरअसल इस सबके पीछे कार्पोरेट का जो मुनाफा संकट में है वह खड़ा है तभी तो प्रधानमंत्री भारत की नीति से हटकर चाइना के साथ यह कहते हुए खड़े हो रहे हैं कि यह हमारी जरूरत है और हमारी जरूरत उस कार्पोरेटस को मुनाफा देने के लिए है जो सिर्फ और सिर्फ 15 लाख रोजगार दे पाता है और इसमें टाप हंड्रेड कार्पोरेटस शामिल हैं। जितना पैसा देश के 99 फीसदी लोगों के पास है उससे ज्यादा पैसा देश के 200 बड़े कार्पोरेटस के पास है। सरकार ने पब्लिक सेक्टर और जिम्मेदारी लेने से मुंह मोड़ लिया है। जिसका असर यह हुआ है कि रोजगार गायब हो गया है और प्रधानमंत्री लालकिले पर खड़े होकर प्रचार कर रहे हैं एमएसएमई का, स्टार्टअप का, स्किल इंडिया का।
पार्लियामेंट में पेश की जाने वाली मंत्री और संसदीय समितियों की रिपोर्ट्स को खंगाला जाय तो पैरों तले जमीन खिसकने लगती है तभी लगता है कि प्रधानमंत्री का भाषण कौन तैयार करता है ? क्या उन्हें पता नहीं है कि लाखों स्टार्टअप क्यों बंद हो गये हैं ? क्या उन्हें पता नहीं है कि बैंक लोन देने से कतराने लगे हैं ? क्या उन्हें पता नहीं है कि देश के भीतर करोड़ों की तादाद में एमएसएमई बंद हो गये हैं ? आज का दौर टेरिफ वार और इकोनॉमिकली वार का है। जिसका जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि “आज की परिस्थितियों में आर्थिक स्वार्थ दिनों-दिन बढ़ रहा है तब समय की मांग है कि हम उन संकटों का हिम्मत के साथ मुकाबला करें” । इस हकीकत को भी समझना जरूरी है कि भारत एग्रीकल्चर के जरिए ही देश को खिला भी रहा है और कमा भी रहा है। शायद इसीलिए मोदी सरकार ने तीन काले कृषि कानून लाकर सब कुछ कार्पोरेटस के हाथों सौंप देने की चाल चली थी। बरसात और सूखे से बर्बाद होती फसलों का जिम्मा लेने से सरकारें हमेशा भागती रहती हैं। बर्बाद फसलों की जिम्मेदारी बीमा कंपनियों को सौंप दी जाती है। हाल में ही वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि बीमा क्षेत्र में शतप्रतिशत भागीदारी विदेशी कंपनियों के लिए खोली जा रही है। फसल बीमा की हकीकत यह है कि किसान के हाथ में 22 परसेंट पैसा आता है और बीमा कंपनी 78 फीसदी पैसा कमाती है।
प्रधानमंत्री अपने भाषण में आपरेशन सिंदूर का भी जिक्र करने से नहीं चूके। उन्होंने पाकिस्तान का भी खुलकर जिक्र किया। भारत डिफेंस के क्षेत्र में भी कमाल करने वाला है यह कहते हुए उम्मीद और आस जगाने की कोशिश की, मगर उन्होंने इस सच को देश से नहीं बताया कि डिफेंस के क्षेत्र में अंबानी और अडानी के अलावा सवा सैकड़ा से ज्यादा प्राइवेट सेक्टर की घुसपैठ हो चुकी है और कमाई भी दूसरे क्षेत्रों की तुलना में लगभग 72 परसेंट से ज्यादा हो गयी है। आपरेशन सिंदूर का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री इस हकीकत को बयान करते हुए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह के साथ ही खुद को भी कटघरे में खड़ा करने से नहीं चूके “मेरे प्यारे देशवासियों मैं आज देश के सामने एक चिंता – एक चुनौती के संबंध में आगाह करना चाहता हूं। षड्यंत्र के तहत, सोची-समझी साजिश के तहत देश की डेमोग्राफी को बदला जा रहा है। एक नये संकट के बीज बोये जा रहे हैं। घुसपैठिए मेरे देश की बहन-बेटियों को निशाना बना रहे हैं। ये घुसपैठिए भोले-भाले आदिवासियों को भ्रमित करके उनकी जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं। ये देश सहन नहीं करेगा। मोदी ये भूल गए कि बीते 11 सालों से वे ही देश के प्रधानमंत्री हैं और उनके ही कार्यकाल में देश में पुलवामा और पहलगाम जैसी असहनीय घटनाएं घटी हैं। जबकि सेना, बीएसएफ, पैरामिलिट्री फोर्स, पुलिस सब कुछ तो उनके ही अधीन है। तो फिर घुसपैठ रोकने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है मगर आपने और आपकी सरकार ने कभी भी कोई जवाबदेही ली ही नहीं है। अगर ली होती तो ना आप प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होते ना आपके मंत्री राजनाथ सिंह और अमित शाह। अभी भी समय है जब आपने लालकिले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए यह स्वीकार कर ही लिया है कि देश के भीतर घुसपैठिए आ रहे हैं यानी आप और आपकी सरकार घुसपैठियों को रोकने में सक्षम नहीं है तो भाषणबाजी छोड़कर जबावदेही लेते हुए आप तत्काल प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा क्यों नहीं दे देते हैं ? अगर इतना साहस नहीं है तो क्या इतना साहस है कि राजनाथ सिंह और अमित शाह का इस्तीफा ले सकेंगे या बर्खास्त कर सकेंगे ? आपके भाषण के इस हिस्से को सुनकर आपके द्वारा 2024 के लोकसभा चुनाव में दिये गये भाषणों के वे अंश देश के जहन में तरोताजा होकर आ गये “मंगलसूत्र छीन लेंगे, भैंस खोलकर ले जायेंगे, सम्पत्ति छीनकर ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों में बांट देंगे”। मजेदार बात यह है कि जब प्रधानमंत्री घुसपैठ का जिक्र कर रहे थे तब गृहमंत्री अमित शाह ताली बजा रहे थे।
अब आप अमेरिका के साथ डिफेंस डील नहीं कर रहे हैं क्योंकि आपने रास्ता बदल लिया है। अब आप रशिया के ऊपर निर्भर हैं। चीन के ऊपर आप निर्भर होने जा रहे हैं। इस दौर में ईरान के साथ भी आपकी निकटता सामने आने लगी है। इजराइल को लेकर आपने खामोशी बरत ली है। फिलिस्तीन की आवाज आपके जहन से निकलने लगी है। शायद अब आपको समझ में आने लगा होगा कि पारंपारिक परिस्थितियों में गुटनिरपेक्ष का मतलब होता क्या है ? क्यों नेहरू ने भारत को गुटनिरपेक्ष खड़ा कर कहा था कि हम किसी गुट में नहीं रहेंगे। लेकिन आपने तो नेहरू से ऐसी नफरत निबाही कि गुटनिरपेक्ष के मायने ही बदलकर रख दिये। आपने तो अपनी जरूरत का हवाला देकर पाला बदलना ही शुरू कर दिया कुछ इस तरह से जैसी साड़ियां बदली जाती हैं। यही कारण है कि आपकी ये राष्ट्रीय नीति अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को रास नहीं आई और शायद किसी को भी रास नहीं आयेगी।
क्या प्रधानमंत्री दो करोड़ लखपति दीदी की कतार देश में खड़ी कर पायेंगे तथा चुनाव आयोग की तर्ज पर (बिहार में जिन 65 लाख वोटरों के नाम काटे गये हैं) 2 करोड़ लखपति दीदी के नाम बेवसाइट पर डालेंगे ? क्या मोदी सरकार प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत जिन 40 करोड़ लोगों को 28 लाख करोड़ रुपये दिये गये हैं उनकी पूरी सूची बेवसाइट डालेगी ? मोदी सरकार ने घोषणा की थी कि 2022 में किसानों की आय दुगनी हो जायेगी तो क्या मोदी सरकार उन किसानों पूरी सूची बेवसाइट पर अपलोड करेगी जिनकी आय 2022 से लेकर 15 अगस्त 2025 तक दुगनी हो गई है ? इसके साथ ही क्या यह भी बतायेंगे कि 2016-17 की तुलना में 2024-25 में खेती के सामानों की कीमत में कितना इजाफा हुआ है ? प्रधानमंत्री जिस वोकल फार लोकल का स्वर अलापते हुए कहते हैं कि छोटी आंख वाले गणेश जी मत लेना तो क्या पीएमओ को जानकारी है कि 15 अगस्त 2025 के दिन कितनी संख्या में चीन में निर्मित तिरंगा झंड़े बिके हैं ? देश में जब महात्मा गांधी ने इंग्लैंड में बने कपड़ों के बहिष्कार का आव्हान किया था तब से लेकर अब तक खादी की महत्ता है ? देश में जो कपास किसान हैं उनको लेकर क्या काम किया गया है ? कपास किसानों की हालत क्या है ? खादी कपड़े की दशा और दिशा क्या है ? कहीं अमेरिकी टेरिफ के असर से तमिलनाडु और नार्थ-ईस्ट में बनने वाले कपड़े बनना बंद तो नहीं हो गये ? सूरत के डायमंड इंडस्ट्री की हालत कहीं सबसे बुरी तो नहीं हो गयी है ? प्रधानमंत्री का भाषण जिसने भी तैयार किया है (7 रेसकोर्स जिसे अब 7 लोक कल्याण मार्ग कहा जाता है) क्या उसे पता है कि जिन 6 बड़ी इमारतों को प्रधानमंत्री के घर में तब्दील किया गया है, देश तो छोड़ दीजिए, 100 किलोमीटर के दायरे में जिसमें हरियाणा, उत्तर प्रदेश का इलाका आता है उसकी परिस्थितियां कैसी है ? दिल्ली से गाजियाबाद-मेरठ, फरीदाबाद से नूंह तक किन परिस्थितियों में पहुंचा जाता है ? क्या वो सिर्फ और सिर्फ गुरुग्राम को देखते हैं जहां पर एक लंबी कतार में दुकानें बंद पड़ी हैं ?
मुश्किल तो इस बात की है कि प्रधानमंत्री को उनके निवास से गंतव्य तक पहुंचाने वाला जहाज भी एक लंबी सुरंग से होकर गुजरता है। तो फिर प्रधानमंत्री कैसे देख पायेंगे कि बाहर लोगों के क्या और कैसे हालात हैं ? प्रधानमंत्री इतना तो कर ही सकते हैं – बैंकों से लिस्ट मंगाकर उनको एकबार परख लें कि बैंकों ने कितनों को मुद्रा योजना के तहत लोन दिया है, कितने किसानों को कर्ज दिया है और कितनी बसूली की है। बैंकों ने कितने कार्पोरेटस को कितना – कितना लोन दिया है और सरकार ने उसके एवज में कितना रिटर्न आफ कर दिया है। कुछ मंगाकर देखेंगे भी या फिर यूं ही लच्छेदार भाषण ही देते रहेंगे ? यह अलग मसला है कि इस दौर में चुनाव आयोग कटघरे में खड़ा है जिसका जिक्र आपने लालकिले की प्राचीर से देशवासियों से नहीं किया है। देशवासियों के मन में परसेप्शन बड़ा हो चला है। बीते 11 सालों में घड़ी की सुई को उल्टा घुमाते हुए देश को उन्हीं परिस्थितियों में लाकर खड़ा कर दिया गया है जो 78 साल पहले थीं लेकिन इन सबसे हटकर प्रधानमंत्री लालकिले की प्राचीर से भाषण देने में व्यस्त हैं। यही सोच महात्मा गांधी के भीतर भी थी इसलिए आजादी के दिन वो पार्लियामेंट हाउस नहीं पहुंचे थे। नेहरू जब लालकिले की प्राचीर से भाषण दे रहे थे तब महात्मा गांधी बंगाल के नोआखाली में एक अंधेरे कमरे में बैठे हुए थे वहां पहुंचे राजगोपालाचार्य ने बापू से कहा था “रोशनी कर दूं” तो बापू ने कहा “नहीं, अभी अंधेरा कहीं ज्यादा घना है”। 78 साल बीत चुके हैं मगर कोई नहीं जानता कि वे कहां खड़े हैं और देश कहां खड़ा है ?
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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