संपादकीय : कृष्ण की सीख और राजनीति का आईना
जन्माष्टमी पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने नेताओं को भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाओं से प्रेरणा लेने का आह्वान किया। धर्म की रक्षा, निष्काम कर्म, कूटनीति, सशक्त नेतृत्व और लोककल्याण जैसे सिद्धांतों को उन्होंने आधुनिक राजनीति का आधार बताया। थरूर की यह बात सही है कि सत्ता का असली मकसद व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा नहीं, बल्कि जनता की भलाई और समाज का संतुलन होना चाहिए।
महाभारत में कृष्ण ने न तो स्वयं हथियार उठाया और न ही व्यक्तिगत गौरव की खोज की। वे मार्गदर्शक बने, सारथी बने और अपने रणनीतिक कौशल से धर्म की रक्षा की। यह उदाहरण आज के नेताओं के लिए आईना है। राजनीति में वही नेता सफल होता है, जो अपने सहयोगियों को सशक्त करे, विपक्ष की ताकत और कमजोरियों को समझे और निजी लाभ से ऊपर उठकर समाज के व्यापक हित के लिए निर्णय ले।
थरूर की यह सीख उस समय और भी प्रासंगिक हो जाती है जब देश में राजनीति अक्सर नारेबाज़ी, ध्रुवीकरण और सत्ता की भूख तक सीमित होकर रह गई है। अहंकार और सत्ता का दुरुपयोग, जैसा कि इतिहास में दुर्योधन जैसे चरित्रों के पतन से दिखता है, आज भी नेताओं के लिए चेतावनी है।
हालांकि, दिग्विजय सिंह का सवाल भी महत्वपूर्ण है—क्या सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग वास्तव में इन आदर्शों को आत्मसात करेंगे? यही राजनीति का असली प्रश्न है। उपदेश और सोशल मीडिया पोस्ट करना आसान है, परंतु समाज को सही दिशा देने के लिए त्याग, साहस और विनम्रता की आवश्यकता होती है।
कृष्ण का संदेश यही है कि शक्ति का उपयोग दबाव और भय के लिए नहीं, बल्कि धर्म, न्याय और लोककल्याण के लिए होना चाहिए। अगर भारतीय राजनीति इस मार्ग पर चले तो सचमुच समाज में नई ऊर्जा का संचार होगा।

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