भारतीय राजनीति और वंशवाद : हर पांचवें जनप्रतिनिधि का किसी राजनीतिक परिवार से सीधा नाता
वंशवाद को नहीं योग्यता को मिले प्राथमिकता !
केशव भुराड़िया
भारतीय लोकतंत्र में वंशवाद (Nepotism) की जकड़न अब और स्पष्ट रूप से सामने आई है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और नेशनल इलेक्शन वॉच (NEW) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, देश के हर पांचवें सांसद या विधायक का संबंध किसी न किसी राजनीतिक परिवार से है।
कुल 5,204 मौजूदा सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों के विश्लेषण में पाया गया कि 1,107 यानी करीब 21 प्रतिशत नेता सीधे तौर पर वंशवादी राजनीति से जुड़े हैं। यह संख्या भारतीय राजनीति में परिवार आधारित नेतृत्व की गहराई और स्वीकार्यता दोनों को दर्शाती है।
रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब कांग्रेस नेता शशि थरूर ने वंशवाद को लोकतंत्र के लिए “गंभीर खतरा” बताया है। उन्होंने कहा कि भारत को अब “वंश नहीं, बल्कि योग्यता” को प्राथमिकता देनी चाहिए। थरूर के मुताबिक, जब सत्ता योग्यता और जनसंवाद की जगह विरासत से तय होती है, तो लोकतंत्र कमजोर होता है।
राष्ट्रीय स्तर पर वंशवाद का पैटर्न
लोकसभा में वंशवाद का प्रतिशत सबसे अधिक 31% पाया गया — यानी 543 सांसदों में से 167 किसी राजनीतिक परिवार से आते हैं। वहीं, राज्यों की विधानसभाओं में यह आंकड़ा 20%, राज्यसभा में 21% और विधान परिषदों में 22% तक दर्ज किया गया।
राज्यों में कौन सबसे आगे?
वंशवाद के मामले में आंध्र प्रदेश सबसे ऊपर है, जहां 34% जनप्रतिनिधि पारिवारिक राजनीतिक पृष्ठभूमि से आते हैं। इसके बाद महाराष्ट्र (32%), कर्नाटक (29%), बिहार (27%) और उत्तर प्रदेश (23%) का स्थान आता है। इसके विपरीत, पूर्वोत्तर राज्यों में वंशवाद की प्रवृत्ति बहुत कम है — असम में यह मात्र 9% पाई गई।
पार्टियों में कैसी तस्वीर?
राष्ट्रीय दलों में वंशवाद का औसत लगभग 20% है।
- कांग्रेस इस मामले में सबसे आगे है — उसके 32% प्रतिनिधि वंशवादी हैं।
- भाजपा में यह दर 18%,
- CPI(M) में 8% है।
क्षेत्रीय दलों में यह प्रवृत्ति और मजबूत है —
- एनसीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस में यह दर 42%,
- वाईएसआर कांग्रेस में 38%,
- टीडीपी में 36%,
जबकि टीएमसी में 10% और एआईएडीएमके में केवल 4% सदस्य पारिवारिक पृष्ठभूमि वाले हैं।
राजनीति में महिलाओं पर वंशवाद की दोहरी छाप
रिपोर्ट का सबसे अहम पहलू यह है कि महिलाओं में वंशवाद की दर पुरुषों से ढाई गुना अधिक है।
कुल 539 महिला जनप्रतिनिधियों में से 251 (47%) का राजनीतिक परिवारों से जुड़ाव है, जबकि पुरुषों में यह दर 18% है। महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में तो 69% महिला नेता राजनीतिक परिवारों से आती हैं।
क्यों टिकता है वंशवाद?
विश्लेषकों के मुताबिक, राजनीतिक परिवारों को चुनावी संसाधन, जनसंपर्क नेटवर्क और पहचान का लाभ मिलता है। कई दलों में टिकट वितरण भी परिवार आधारित प्रभाव से तय होता है। वहीं, मतदाता भी अक्सर पारिवारिक नामों पर भरोसा जताते हैं, जिससे यह प्रवृत्ति और मजबूत होती जाती है।
रिपोर्ट यह साफ संकेत देती है कि भारतीय राजनीति में वंशवाद अब अपवाद नहीं, बल्कि संस्थागत परंपरा बन चुका है — जहां लोकतंत्र और विरासत के बीच की रेखा धीरे-धीरे धुंधली होती जा रही है।




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