महागठबंधन के नेताओं को सता रहा हॉर्स ट्रेडिंग का डर पर दूसरी तरफ बिहार चुनाव में NOTA बन सकता है “किंगमेकर”, रिकॉर्ड वोटिंग के बीच सियासी दलों की बढ़ी चिंता
बिहार विधानसभा चुनाव के दोनों चरणों में रिकॉर्डतोड़ 66.9% वोटिंग के बाद अब सबकी नजरें 14 नवंबर को होने वाली मतगणना पर हैं। इस बार राज्य में मतदान का जोश इतना अधिक रहा कि 40 साल में पहली बार मतदान प्रतिशत 65% से पार गया। लेकिन इसी उत्साह के बीच एक और दिलचस्प पहलू चर्चा में है — NOTA यानी “None of the Above” विकल्प, जो इस बार कई सीटों पर खेल बिगाड़ सकता है।
साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लागू किए गए NOTA विकल्प का बिहार में हमेशा खास असर रहा है। 2015 के विधानसभा चुनाव में इसे 2.5% वोट, जबकि 2020 में 1.7% वोट मिले थे। 2024 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा फिर बढ़कर 2.1% तक पहुंच गया। अब 2025 के विधानसभा चुनाव में भारी मतदान के बीच राजनीतिक दलों को डर है कि असंतुष्ट मतदाता कहीं फिर से बड़ी संख्या में NOTA का बटन न दबा दें।
2020 में कई सीटों पर बदला था खेल
पिछले विधानसभा चुनाव में 243 सीटों में से 30 सीटें ऐसी थीं, जहां हार-जीत का अंतर NOTA में पड़े वोटों से भी कम था। गोपालगंज की भोरे सीट पर जेडीयू को सिर्फ 462 वोटों से जीत मिली, जबकि 8,010 वोट NOTA के खाते में गए। इसी तरह मटिहानी, चकाई, झाझा, रानीगंज जैसी सीटों पर भी हजारों वोट NOTA में गिरे और नतीजे उलट सकते थे।
2020 में 23 सीटों पर हार-जीत का अंतर 2,000 वोटों से भी कम रहा, जिनमें 11 सीटों पर यह अंतर 1,000 वोटों से नीचे था। सबसे रोमांचक मुकाबला नालंदा की हिल्सा सीट पर हुआ, जहां जीत का अंतर केवल 12 वोटों का था, जबकि यहां 1,022 वोट NOTA के नाम रहे।
क्यों बढ़ रहा है NOTA का प्रभाव
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में युवाओं और नए मतदाताओं का बड़ा वर्ग पारंपरिक राजनीति से निराश है। ऐसे में वे विरोध या असंतोष जताने के लिए NOTA का प्रयोग कर रहे हैं। यह वोट किसी दल के खाते में नहीं जाते, लेकिन करीबी मुकाबले में यह किसी उम्मीदवार की जीत या हार तय कर सकते हैं।
राजनीतिक दलों में मची हलचल
रिकॉर्ड मतदान के बावजूद सभी प्रमुख दल—एनडीए, महागठबंधन और वामपंथी दलों—के रणनीतिकार NOTA के असर को लेकर सतर्क हैं। यदि इस बार भी NOTA का प्रतिशत 2% से ऊपर रहा, तो कई सीटों पर समीकरण बदल सकते हैं।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 2015 से लेकर अब तक बिहार में NOTA का औसत वोट शेयर राष्ट्रीय औसत से अधिक रहा है। यह संकेत है कि मतदाता अब न केवल मतदान कर रहे हैं, बल्कि असंतोष भी खुलकर दर्ज कर रहे हैं।
14 नवंबर को नतीजे साफ करेंगे कि बिहार में सरकार किसकी बनेगी, लेकिन इतना तय है कि NOTA इस बार सिर्फ “विकल्प” नहीं, बल्कि “निर्णायक फैक्टर” साबित हो सकता है।
नतीजों से पहले महागठबंधन ने बनाया ‘सेफ्टी प्लान’, विधायकों के शिफ्ट होने की तैयारी
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों से पहले महागठबंधन खेमे में हलचल तेज हो गई है। 14 नवंबर को परिणाम आने से पहले गठबंधन दलों को विधायकों की खरीद-फरोख्त की आशंका सता रही है। सूत्रों के अनुसार, इस संभावित “हॉर्स ट्रेडिंग” से बचने के लिए महागठबंधन ने अपने विधायकों को सुरक्षित रखने की योजना तैयार कर ली है।
जानकारी के मुताबिक, अगर नतीजों के बाद जोड़-तोड़ की स्थिति बनती है, तो गठबंधन अपने विधायकों को उन राज्यों में भेज सकता है जहां इंडिया ब्लॉक की सरकारें हैं। आरजेडी ने अपने विधायकों को जीत के बाद तुरंत पटना बुलाने और उन्हें सुरक्षित ठिकाने पर रखने का निर्देश जारी किया है। वहीं छोटे दलों में टूट की आशंका को देखते हुए वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी अपने विधायकों को विशेष विमान से बंगाल भेजने की तैयारी में हैं, जहां ममता बनर्जी की सरकार है।
कांग्रेस ने भी अपने स्तर पर रणनीति तैयार कर ली है। पार्टी ने विधानसभावार पर्यवेक्षकों को निर्देश दिया है कि वे जीतने वाले विधायकों को तुरंत पटना पहुंचाएं और बाद में उन्हें कर्नाटक या तेलंगाना जैसे कांग्रेस शासित राज्यों में शिफ्ट किया जाए। इसके साथ ही, गठबंधन के संभावित सहयोगी निर्दलीय उम्मीदवारों को भी इस सुरक्षा दायरे में शामिल किया जाएगा।एग्जिट पोल में महागठबंधन की हार के तीन कारण, पोल बनाने वाले ने खुद किया खुलासा
एग्जिट पोल में महागठबंधन की हार के तीन कारण, पोल बनाने वाले ने खुद किया खुलासा
बिहार विधानसभा चुनाव के दो चरणों के मतदान के बाद आए आईएएनएस-मैटराइज एग्जिट पोल में एनडीए को बढ़त मिलती दिख रही है। पोल के डायरेक्टर मनोज कुमार सिंह ने खुद तीन बड़े कारण बताए हैं, जिनकी वजह से महागठबंधन पिछड़ गया।
पहला कारण — जन सुराज ने वोट काटे: सिंह के अनुसार, जन सुराज पार्टी ने खासकर महागठबंधन के वोट बैंक को नुकसान पहुंचाया, जिससे एनडीए को अप्रत्यक्ष फायदा मिला।
दूसरा कारण — राहुल गांधी के मुद्दे का असर नहीं: उन्होंने कहा कि राहुल गांधी के SIR मुद्दे को लेकर जिस राजनीतिक लाभ की उम्मीद थी, वह एग्जिट पोल में नजर नहीं आया।
तीसरा कारण — महागठबंधन में आपसी मतभेद: सिंह ने बताया कि गठबंधन के अंदर समन्वय की कमी और नेतृत्व की कमजोर उपस्थिति भी उनके प्रदर्शन को प्रभावित कर गई।
उन्होंने कहा कि महिला मतदाताओं का झुकाव नीतीश कुमार की ओर रहा, जिससे एनडीए की सरकार बनना तय दिखाई दे रही है। हालांकि, अंतिम नतीजे 14 नवंबर को आएंगे।





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