खरी खरी : ट्रंप के ट्रेड वार में उलझे मोदी जी , मुश्किल में है जान !!!!!!
अगर इस डील का असर आम लोगों पर पड़ेगा तो क्या देश की आंतरिक अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुए बिना रह पायेगी ?
भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शायद ही कभी कल्पना की होगी कि जिस अमेरिका से खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की दोस्ती की खातिर उन्होंने भारत के पारंपरिक मित्र देशों को दरकिनार कर दिया वही अमेरिका भारत को व्यापार युद्ध में उलझा देगा। आज के पहले कभी भी व्यापार युद्ध भारत की अन्तरराष्ट्रीय विदेश नीति और कूटनीति का हिस्सा नहीं रहा है। यह पहली बार है कि भारत की अन्तरराष्ट्रीय विदेश नीति और कूटनीति उस ट्रेडवार के चक्रव्यूह में फंसती चली जा रही है जो किसी भी युद्ध से ज्यादा भयानक या कहें मुश्किल भरा होता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प भारत के साथ जिस तरह की बिग डील करने की बातें कह रहे हैं उसने भारत को सांप और छछूंदर की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। जैसे – जैसे ट्रेड डील की तारीख 8-9 जुलाई 2025 नजदीक आती जा रही है भारत के सामने इस संकट को खड़ा कर दिया है ट्रेड डील के जरिए अमेरिका भारत से जिन क्षेत्रों में घुसने की मांग कर रहा है तो क्या मौजूदा सत्ता देशीय हितों की अनदेखी कर उसे पूरा कर देगी तथा अमेरिका के साथ भारतीय बाजार की जो जरूरत है अगर अमेरिका उस पर सहमत नहीं होता है तो फिर क्या होगा? यह परिस्थितिकी भारतीय कूटनीति की परीक्षा का चुनौती भरा दौर है जिसका सामना इसके पहले किसी भी दौर में किसी भी प्रधानमंत्री के सामने शायद आया ही नहीं है। भारत के रूस, ईराक, ईरान, चीन, मिडिल ईस्ट के तमाम देशों से व्यापारिक समझौते हुए हैं मगर ऐसी परिस्थिति कभी आई नहीं है जैसी आज के दौर में दरवाजे पर दस्तक दे रही है। सिविलाइजेशन के दौर में दो देशों के बीच निकटता रही है। 1991में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने अन्तरराष्ट्रीय तौर पर भारत को दुनिया के सामने एक बाजार के तौर पर पेश किया तो चीन का कच्चा माल और सस्ते सामान भारत के भीतर घुसता चला गया। मगर अमेरिका के द्वारा जिस तरह से व्यापारिक युद्ध की परिस्थितियों को पैदा किया जा रहा है वह इतनी भयावह और मुश्किल भरी है कि देश किस तरीके से अपने बाजार, उत्पाद, किसान, लेबर को बचायें। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने ट्रेडवार के जरिए यह भी संकेत दे दिया है कि जो अन्तरराष्ट्रीय कूटनीति सामरिक युद्ध के जरिए की जाती थी अब वह ट्रेडवार के जरिए भी की जा सकती है।
भारत एक बड़ी डील की बात करते – करते मिनी डील की बात करने लगा है आखिर क्यों ? साउथ एशिया में सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली देश के तौर पर माने जाने वाले भारत के साथ ही अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ निकटता बनानी शुरू कर दी आखिर क्यों ? मोदी के आने के बाद जो भारत कभी रशिया के करीब रहा वह अमेरिका के करीब जिस तर्ज पर चलता चला गया उसमें भारत ने कभी अमेरिका के साथ ट्रेडवार की कल्पना नहीं की होगी कि अमेरिका ऐसा दबाव भी बनायेगा कि यदि भारत ने रशिया से कुछ भी खरीद-फरोख्त की तो वह अमेरिका के टैरिफ के दायरे में सबसे ऊपर होगा। अब भारत को हथियार भी रशिया की जगह अमेरिका से खरीदना होगा। कच्चा तेल भी रशिया की जगह अमेरिका से खरीदना होगा अगर भारत ऐसा नहीं करेगा तो 500 फीसदी टेरिफ के दायरे में आयेगा। जबकि आज की स्थिति में भारत जो 80 फीसदी कच्चा तेल खरीदता है उसका 42 फीसदी हिस्सा रशिया से ही खरीदता है। जिसे अमेरिका इस बिना पर रोकना चाहता है कि रशिया भारत और चीन से मिलने वाले पैसे का उपयोग यूक्रेन के खिलाफ अमेरिका और यूरोप, नाटो देशों द्वारा लगाये गये प्रतिबंध के बावजूद युद्ध में कर रहा है। यानी भारत और चीन से मिलने वाली रकम ही रशिया की युद्ध पूंजी है।
वैसे भारत की अमेरिका से करीबी मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल के दौरान 2011 में होने लगी थी मगर उस समय भारत की इकोनॉमी को लेकर एक चैक एंड बैलेंस बनाकर रखा गया था। मगर 2014 के बाद से भारत की इकोनॉमी अमेरिका परस्त होती चली गई तो क्या बीते 11 सालों में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय इकोनॉमी की चाबी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के हाथों सौंप दी है ! भारत की इकोनॉमी पर अमेरिका बारीक नजर रख रहा है। भारत वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ से कितनी आर्थिक मदद ले रहा है तो क्या अमेरिका बार्गेनिंग को हथियार बना रहा है जैसे उसने वियतनाम के साथ समझौता करके किया। आने वाले समय में चीन और वियतनाम के बीच होने वाले व्यापारिक लेनदेन पर मुश्किलों का दौर शुरू होगा। यदि कूटनीति और सामरिक नीति सब ट्रेडवार से जुड़ चुकी है तो इसका असर भारत में भी पडेगा। जिसकी एक झलक तेल के रूप में नजर आई है। इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि किस तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प किस तरीके से पाकिस्तान को तरजीह दे रहे हैं। पाकिस्तान सेना प्रमुख असीम मुनीर को किस तरह से ट्रम्प ने पलकों पर बैठाकर वाशिंग्टन के व्हाइट हाउस में लंच कराया जिसे दुनियाभर ने देखा भी है। अमेरिका और पाकिस्तान का शीर्षस्थ डिफेंस स्टाफ आपस में बैठकर सामरिक मुद्दे पर बातचीत करता है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि क्वार्ड की बैठक में भारत द्वारा टेररिज्म का मुद्दा तो उठाया जाता है लेकिन पाकिस्तान का नाम लेने से परहेज किया जाता है, सीमा पार कहा जाता है। आस्ट्रेलिया, जापान, अमेरिका यहां तक कि भारत भी नाम लेने से परहेज करते हैं। पहलगाम का नाम तक नहीं लिया जाता है। क्या चंद दिन बाद होने वाली ब्रिक्स की बैठक में पाकिस्तान, चीन, आतंकवाद का नाम लिया जायेगा या फिर सब कुछ हवा हवाई होगा।
अमेरिकी कांग्रेस में रिपब्लिकन सीनेटर द्वारा 84 सांसदों से समर्थित एक विधेयक लाया गया है जिस पर जुलाई के बाद मोहर लगाई जायेगी। उस बिल में यह लिखा हुआ है कि अगर कोई देश रशिया से कुछ भी खरीदता है और यूक्रेन की मदद नहीं करता है तो अमेरिका उस देश से आने वाले सामान पर 500 फीसदी टेरिफ लगा सकता है। और भारत तथा चीन पुतिन का 70 फीसदी तेल खरीदते हैं तथा अमेरिका के अनुसार भारत और चीन से आने वाला पैसा रशिया की युद्ध मशीन को चालू रखता है। अमेरिका, यूरोप, नाटो देशों द्वारा जब रशिया पर प्रतिबंध लगाया गया था उसके पहले भारत रशिया से अपनी जरूरत का सिर्फ 2 फीसदी तेल लेता था। मगर उसके बाद यह आंकडा 40 और 42 फीसदी तक पहुंच गया है। हालांकि अमेरिकी चेतावनी के बाद भारत ने अमेरिका से भी कच्चा तेल लेना शुरू कर दिया है। रशिया ने भी कहा है कि उससे 47 – 38 फीसदी तेल चीन और भारत खरीदते हैं तथा इनसे अन्तरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में कम कीमत बसूली जाती है। ट्रेड डील फाइनल साईन होने की डेडलाइन खत्म होने में बमुश्किल 3-4 दिन बचे हैं और भारत का प्रतिनिधि मंडल अमेरिका में डेरा डाले हुए है। सवाल यह है कि अगर डील फाइनल साईन नहीं हो पाई तो क्या भारत 26 फीसदी टेरिफ के दायरे में आ जायेगा ? भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर रिपब्लिकन सीनेटर द्वारा लाये गये 500 फीसदी टेरिफ वाले बिल पर कहते हैं कि अमेरिकी कांग्रेस में होने वाला कोई भी डवलपमेंट हमारे हितों को प्रभावित करने वाला होगा इसलिए हम रिपब्लिकन सीनेटर के सम्पर्क में हैं उन्हें भारत की सुरक्षा और हितों से अवगत करा दिया गया है। इसलिए जब हम उस पुल पर पहुंचेंगे तो हमें उसे पार करना होगा अगर हम उस पुल पर पहुंचेंगे तो यानी प्रतिबंध लगेगा तो यानी चीजें लागू हो जायेंगी तो और इन सबसे पहले डील फाइनल होने के आसार हैं।
सवाल यह है कि आखिर अमेरिका भारत से चाहता क्या है ? अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जिस तरह से भारत के साथ बिग डील होने की बात कहते हैं उससे तो यही संकेत मिलता है कि अमेरिका पूरी तरह से भारत के भीतर घुसना चाहता है। भारत के भीतर पूरी तरह से घुसने का मतलब तो यही है कि वह भारत की इकोनॉमी जो कि पूरे तरीके से ह्यूमन रिसोर्स और एग्रीकल्चर पर आश्रित है उसमें घुसना चाहता है। अगर ऐसा होता है तो भारत के बाजार की पूरी कड़ी खेत से लेकर दुकान तक एक झटके में चरमरा जायेगी। खास बात यह है कि डील को लेकर दुनिया घूम रहे भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अभी तक कोई बात नहीं की है सिवाय सीजफायर कराते समय को छोड़ कर ! आखिरी सवाल यह है कि अगर इस डील का असर आम लोगों पर पड़ेगा तो क्या देश की आंतरिक अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुए बिना रह पायेगी ?
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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