आखिर पत्रकार आखिरी विकल्प के रूप में ही क्यों चुनते हैं एयर इंडिया ?
अहमदाबाद हादसे को किसी ‘संयोग’ या ‘मानव त्रुटि’ कहकर टालना, एक गंभीर संस्थागत विफलता को छुपाने की कोशिश से ज्यादा कुछ नहीं होगा !
नई दिल्ली
हाल ही में अहमदाबाद में हुए बोइंग 787 ड्रीमलाइनर क्रैश ने एक बार फिर एयर इंडिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह दुर्घटना भले ही अप्रत्याशित लगी हो, लेकिन एविएशन क्षेत्र को कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकारों के लिए यह चौंकाने वाली नहीं है। वर्षों से एयर इंडिया को लेकर उठते सवाल और तकनीकी खामियों की खबरें इसका संकेत देती रही हैं।
प्रसिद्ध एविएशन पत्रकार प्रदीप सुरिन ने साझा किया कि पिछले 15 वर्षों में उन्होंने एयर इंडिया को हमेशा “लास्ट ऑप्शन” के तौर पर देखा है। सुरिन के अनुसार, एयर इंडिया में ड्रीमलाइनर शामिल होने के दो साल बाद ही इसकी उच्च मेंटेनेंस लागत और संसाधनों की कमी उजागर होने लगी थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कंपनी के पास स्पेयर पार्ट्स तक खरीदने के लिए पैसे नहीं थे और सालों तक पुराने, रिपेयर किए गए पुर्जों के सहारे विमान उड़ाए जाते रहे।
यह कोई अकेली घटना नहीं है। पूर्व में भी यात्राओं के दौरान तकनीकी समस्याएं सामने आती रही हैं, जिन्हें “तकनीकी कारण” बताकर उड़ानें रद्द कर दी जाती थीं। लेकिन हकीकत यह थी कि कभी टायर घिसे हुए होते थे, तो कभी घटिया गुणवत्ता वाले कलपुर्जे विमान को उड़ने से रोकते थे। सुरिन ने स्वीकारा कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से एयर इंडिया की फ्लाइट पकड़ने से पहले टायरों की हालत तक जांची है।
2013 की एक याद में सुरिन बताते हैं कि उन्होंने दिल्ली से लंदन की यात्रा के दौरान ड्रीमलाइनर में इंजन की कंपन और बेहद कड़ी लैंडिंग का अनुभव किया था — मानो किसी थर्ड हैंड एयरक्राफ्ट में सफर हो रहा हो।
अब अहम सवाल है — आखिर अहमदाबाद की यह दुर्घटना क्यों हुई और ज़िम्मेदार कौन है?
विश्लेषकों के मुताबिक, एयर इंडिया को टाटा समूह को सौंपने का निर्णय राजनीतिक और भावनात्मक दोनों स्तरों पर हुआ। सरकार ने घाटे में चल रही एयरलाइन को भारी रियायतों के साथ टाटा के हवाले किया। टाटा समूह ने नए विमानों का ऑर्डर जरूर दिया है, लेकिन डिलीवरी में अभी दो से तीन साल का समय लग सकता है। तब तक कंपनी को पुराने बेड़े के भरोसे ही काम चलाना है।
इसी दौरान एयर इंडिया ने छवि सुधारने के लिए लोगो, यूनिफॉर्म और सीट कवर तो बदल दिए, लेकिन विमान के तकनीकी हालातों में कोई बड़ी संरचनात्मक सुधार नहीं हो पाया।
एविएशन विशेषज्ञों का मानना है कि अहमदाबाद की दुर्घटना के बाद जांच को सतही स्तर पर निपटा दिया जाएगा। यदि यह साबित हो गया कि ड्रीमलाइनर में तकनीकी खामी थी, तो एयर इंडिया को अपने पूरे ड्रीमलाइनर फ्लीट को ग्राउंड करना पड़ सकता है — जिससे एयरलाइन की आर्थिक स्थिति और बिगड़ सकती है।
अक्सर इन मामलों में विदेशी जांच एजेंसियों जैसे ICAO और FAA की रिपोर्टें सार्वजनिक नहीं होतीं, जिससे पारदर्शिता की उम्मीद धुंधली पड़ जाती है। सरकार की ओर से एक औपचारिक जांच आयोग बनेगा, जिसकी रिपोर्ट आने में सालों लगेंगे — और तब तक यह मामला जनस्मृति से गायब हो चुका होगा।
अंत में एक ज़रूरी टिप्पणी:
- बर्ड हिट से बोइंग 787 जैसा विमान क्रैश नहीं करता।
- टेकऑफ के समय दोनों इंजन चालू रहते हैं — किसी एक के बंद होने की स्थिति में भी विमान उड़ान भर सकता है।
इसलिए अहमदाबाद हादसे को किसी ‘संयोग’ या ‘मानव त्रुटि’ कहकर टालना, एक गंभीर संस्थागत विफलता को छुपाने की कोशिश से ज्यादा कुछ नहीं होगा। एयर इंडिया को लेकर पत्रकारों की आशंकाएं आज फिर सच साबित होती दिख रही हैं।
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