जगन्नाथ यात्रा से काल भैरव तक : भारत में कितने देवताओं के नाम पर निकलती है रथ यात्रा !
भारत में देव यात्राओं का सांस्कृतिक-सामाजिक महत्व
केशव माहेश्वरी
भारत एक ऐसा देश है जहां धर्म और परंपराएं केवल आस्था नहीं, बल्कि जीवनशैली हैं। यहां देवताओं को केवल पूजने तक ही सीमित नहीं रखा गया, बल्कि उन्हें जनजीवन का हिस्सा मानकर उनके लिए यात्राएं निकाली जाती हैं, उत्सवों की तरह। ये देव यात्राएं न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन यात्राओं के पीछे गहरी ऐतिहासिक जड़ें हैं, जो भारत की विविधता में एकता को दर्शाती हैं। यह सवाल आज इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि वर्तमान में जगन्नाथ पुरी से भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जा रही है । ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठता है कि भारत में कितने देवता है जिनकी रथ यात्रा निकाली जाती है ।
1. जगन्नाथ रथ यात्रा (पुरी, ओडिशा)
तारीख: आषाढ़ शुक्ल द्वितीया
पुरी की रथयात्रा शायद भारत की सबसे प्रसिद्ध देवयात्रा है। भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा साल में एक बार अपने मंदिर से बाहर आते हैं और विशाल रथों में बैठकर गुंडिचा मंदिर की ओर निकलते हैं। यह यात्रा भक्तों के लिए केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से अत्यंत भावपूर्ण अनुभव होती है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु रथ खींचते हैं और यह माना जाता है कि रथ की रस्सी छूने मात्र से मोक्ष मिल सकता है।
2. पंढरपुर वारी यात्रा (महाराष्ट्र)
मुख्य देवता: विट्ठल (भगवान विष्णु का अवतार)
यह यात्रा विठोबा या विट्ठल के भक्त वर्करी संप्रदाय द्वारा हर साल आषाढ़ी एकादशी पर पंढरपुर (सोलापुर, महाराष्ट्र) पहुंचने के लिए निकाली जाती है। भक्त पैदल चलते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं, और ‘दिंडी’ नामक टोली बनाकर समूह में आगे बढ़ते हैं। यह यात्रा भक्ति आंदोलन की सजीव परंपरा को दर्शाती है और भक्तों के समर्पण का अद्भुत उदाहरण है।
3. काल भैरव यात्रा (उत्तर भारत)
स्थान: उज्जैन, वाराणसी, आदि
काल भैरव को शिव के रौद्र रूपों में से एक माना जाता है। कुछ स्थानों पर इनकी यात्रा एक रहस्यमय और तांत्रिक माहौल में होती है। विशेष रूप से उज्जैन में काल भैरव मंदिर से निकाली जाने वाली यात्रा में भक्त शराब की बोतलें चढ़ाते हैं जो सीधे भगवान को समर्पित की जाती हैं। यह यात्रा उस मानसिकता को दर्शाती है जो भगवान को मानव की हर भावना के साथ जोड़कर देखती है – भय, प्रेम, शक्ति और संरक्षण।
4. रथ यात्रा – दारुकावन से द्वारका तक
स्थान: गुजरात
भगवान कृष्ण की रथ यात्रा द्वारका और अन्य जगहों पर भी मनाई जाती है। यह यात्रा भक्तों के लिए कृष्ण के जीवन और शिक्षाओं को दोहराने का माध्यम बनती है। इसमें विशेष रूप से श्रीनाथजी, श्रीराम और अन्य रूपों की झांकियां भी शामिल होती हैं।
5. देव दीपावली यात्रा (वाराणसी)
वाराणसी में देवताओं की दीपावली के रूप में गंगा घाटों पर दीप प्रज्ज्वलन और देव विग्रहों की यात्राएं होती हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यह आयोजन होता है जिसमें माना जाता है कि स्वयं देवता धरती पर आते हैं गंगा स्नान के लिए। यह यात्रा और आयोजन भारत की देव संस्कृति में जल, प्रकृति और ज्योति के समन्वय को दर्शाता है।
6. पालकी यात्रा (महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत)
संतों और देवी-देवताओं की पालकी यात्रा ग्रामीण भारत की एक जीवंत परंपरा है। इसमें देव विग्रहों को या संतों की समाधियों की प्रतिकृति को सुसज्जित पालकी में रखकर गांव-गांव घुमाया जाता है। यह यात्रा सामाजिक मेलजोल, भक्ति और लोक-कलाओं का अद्भुत संगम बनती है।
7. अम्मन यात्रा (दक्षिण भारत)
दक्षिण भारत में देवी अम्मन की यात्रा बहुत भव्यता से मनाई जाती है। इसमें देवी को गांव की रक्षा के लिए बाहर निकाला जाता है और गांव के हर कोने पर पूजा की जाती है। यह यात्रा महिलाओं के सशक्तिकरण और मातृशक्ति के सम्मान का प्रतीक मानी जाती है।
धार्मिक यात्राएं: केवल आस्था नहीं, लोक-संस्कृति की धरोहर
भारत में देव यात्राएं केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि गांव-शहरों की सामाजिक-सांस्कृतिक इकाइयों को जोड़ने वाला एक धागा हैं। इन यात्राओं में गीत, नृत्य, लोक-कथाएं, रीति-रिवाज और उत्सव सब कुछ समाहित होता है। बच्चों से बुजुर्ग तक, महिलाएं, किसान, व्यापारी – हर वर्ग इन यात्राओं में सहभागी बनता है।
भारत की विविध देव यात्राएं उसकी सांस्कृतिक गहराई और धार्मिक आत्मा का प्रतीक हैं। चाहे वह उड़ीसा की विशाल रथ यात्रा हो, महाराष्ट्र की भक्तिमयी वारी, या दक्षिण भारत की मातृशक्ति पूजन यात्रा – ये सभी यात्राएं हमारी परंपरा, विरासत और लोक मानस का हिस्सा हैं। समय के साथ ये यात्राएं आधुनिकता से भी जुड़ गई हैं, लेकिन उनका मूल स्वर आज भी वही है – भक्ति, समर्पण और सामाजिक एकता का पर्व।
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