भारतीय राजनीति में मर्यादाहीन आचरण और भाषाई अभद्रता चरम पर
भारतीय राजनीति का इतिहास विचारों में मतभिन्नता, वैचारिक बहस और लोकतांत्रिक मूल्यों से समृद्ध रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में राजनीतिक संवाद में भाषाई अभद्रता एक गंभीर समस्या बनकर उभरी है। नेताओं के बीच नीतियों और विकास पर चर्चा की जगह व्यक्तिगत हमले, अपशब्द, और जातिगत-लैंगिक अपमान बढ़ते जा रहे हैं। यह न केवल राजनीतिक संस्कृति को दूषित कर रहा है, बल्कि सामाजिक एकता को भी कमजोर कर रहा है। हाल ही में बिहार में वोटर अधिकार यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिवंगत मां के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है।
भाषाई अभद्रता से तात्पर्य उन भाषणों और टिप्पणियों से है जो अपशब्दों, व्यक्तिगत हमलों, जातिगत-धार्मिक अपमानों, और लैंगिक टिप्पणियों से भरे होते हैं। यह भारतीय राजनीति में कोई नई बात नहीं है, लेकिन सोशल मीडिया और चौबीस घंटे न्यूज चैनलों के युग में यह चरम पर पहुंच गई है। पहले जहां नेताओं के बीच नीतिगत बहसें हुआ करती थीं, वहीं अब व्यक्तिगत हमले और अपशब्द सामान्य हो गए हैं।
बिहार के दरभंगा में इंडिया गठबंधन की वोटर अधिकार यात्रा के दौरान मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी दिवंगत मां हीराबेन मोदी, के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी की गई। एक वायरल वीडियो में अज्ञात व्यक्तियों द्वारा हिंदी में अपशब्दों का इस्तेमाल करते सुना गया। इस मंच पर राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, और तेजस्वी यादव के पोस्टर थे, हालांकि ये नेता उस समय मंच पर मौजूद नहीं थे।
इस घटना ने भारतीय जनता पार्टी को आक्रामक रुख अपनाने का मौका दिया। बीजेपी ने इसे लोकतंत्र पर धब्बा और महिला विरोधी मानसिकता का उदाहरण बताते हुए कड़ी निंदा की। बीजेपी ने पटना के कोतवाली पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी दर्ज की और राहुल गांधी से माफी की मांग की। बीजेपी प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा, राहुल गांधी, आप जिस तरह की भाषा और अपशब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं या मंच से करवा रहे हैं, वह असहनीय है। आपको इसके लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी ने भी बिहार राज्य जीविका निधि साख सहकारी संघ के उद्घाटन के दौरान इस घटना पर भावुक प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, मां हमारा संसार है, मां हमारा स्वाभिमान है। मेरी मां का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था, फिर उन्हें क्यों गाली दी गई? यह न केवल मेरी मां का अपमान है, बल्कि देश की हर मां, बहन और बेटी का अपमान है। उन्होंने यह भी कहा कि वह इस अपमान को माफ कर सकते हैं, लेकिन बिहार की जनता ऐसा नहीं करेगी।
कांग्रेस ने इस टिप्पणी से खुद को अलग कर लिया और कहा कि यह एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा की गई थी, जिसका पार्टी से कोई संबंध नहीं है। स्थानीय युवा कांग्रेस नेता मोहम्मद नौशाद ने माफी मांगी और कहा कि ऐसी घटना नहीं होनी चाहिए थी। हालांकि, बीजेपी ने इसे विपक्ष की संस्कृति विरोधी और महिला विरोधी मानसिकता का हिस्सा बताया। यह घटना अकेली नहीं है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही भाषाई अभद्रता के दोषी रहे हैं।
आजकल सोशल मीडिया ने नेताओं को वायरल होने की होड़ में अपशब्दों का सहारा लेने के लिए प्रेरित किया है। ट्वीट्स और वायरल वीडियो तुरंत ध्यान खींचते हैं, जिससे नेताओं का ध्यान नीतिगत मुद्दों से हटकर व्यक्तिगत हमलों पर चला जाता है। सत्ता और विपक्ष के बीच गहरा ध्रुवीकरण है। विपक्ष को घुसपैठिए या देशद्रोही और सत्ता को तानाशाह जैसे शब्दों से नवाजा जाता है, जो वैमनस्य को बढ़ाता है। न्यूज चैनल और डिबेट शो भाषाई अभद्रता को बढ़ावा देते हैं।
भाषाई अभद्रता के प्रभाव गहरे और दीर्घकालिक हैं। अपशब्द और व्यक्तिगत हमले समाज में जातिगत, धार्मिक और लैंगिक तनाव को बढ़ाते हैं। बिहार की घटना में, मां के खिलाफ टिप्पणी को हर मां का अपमान बताकर बीजेपी ने इसे सामाजिक मुद्दा बना दिया। राजनीतिक संवाद का स्तर गिरने से जनता का विश्वास लोकतांत्रिक संस्थानों पर कम होता है। लोग नेताओं को आदर्श के रूप में देखना बंद कर देते हैं। अधिकांश अपशब्द लैंगिक या जातिगत होते हैं, जिससे महिलाएं और अल्पसंख्यक समुदाय विशेष रूप से प्रभावित होते हैं।
अपशब्दों और अपमानजनक टिप्पणियों के लिए कड़े कानून बनाए जाने चाहिए। बिहार में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया, जो एक सकारात्मक कदम है। न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को ऐसी सामग्री को बढ़ावा देने से रोकना चाहिए। एक स्वतंत्र निगरानी समिति बनाई जा सकती है। नेताओं को अपनी भाषा और व्यवहार पर नियंत्रण रखना चाहिए। जैसा कि पत्रकार रजत शर्मा ने अपने ट्वीट में कहा, लफ्जों का इस्तेमाल शालीनता से अपनी बात कहने के लिए करना चाहिए, न कि गाली देने के लिए। चुनाव आयोग को ऐसी घटनाओं पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए, जैसे कि प्रचार पर प्रतिबंध या उम्मीदवारी रद्द करना। जनता को शिक्षित करने की जरूरत है कि वे ऐसे नेताओं का समर्थन न करें जो अपशब्दों का सहारा लेते हैं।
बिहार में प्रधानमंत्री की मां के खिलाफ टिप्पणी और अन्य हाल की घटनाएं भारतीय राजनीति में भाषाई अभद्रता की गंभीरता को दर्शाती हैं। यह केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संकट है। अगर इसे रोका नहीं गया, तो यह लोकतंत्र की नींव को कमजोर कर सकता है। नेताओं, मीडिया और जनता को मिलकर इस प्रवृत्ति को रोकना होगा, ताकि राजनीति फिर से सेवा और विचारों का मंच बन सके। बिहार की जनता से प्रधानमंत्री की अपील, इस अपमान को मैं माफ कर सकता हूं, लेकिन बिहार की धरती नहीं करेगी, इस बात का संकेत है कि यह मुद्दा अब केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़ गया है। *(विनायक फीचर्स)*
संदीप सृजन-विनायक फीचर्स
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