डेटाबेस से डाउनटाइम तक: क्लाउडफ्लेयर की चूक और उसका व्यापक असर
मंगलवार, 18 नवंबर 2025 को शाम करीब 5:20 बजे से क्लाउडफ्लेयर नेटवर्क में तकनीकी गड़बड़ी आ गई।इस तकनीकी गड़बड़ी ने दुनिया भर की ऑनलाइन सेवाओं को यकायक रोक दिया। चैटजीपीटी, ट्विटर (एक्स प्लेटफार्म),कैनवा, डिस्कोर्ड और कई बड़े प्लैटफॉर्म इस तकनीकी गड़बड़ी के कारण एक साथ डाउन हो गए, जिससे यूजर्स को काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा। इस घटना ने वैश्विक डिजिटल इकोसिस्टम में संभावित कमजोरियों को उजागर किया और यह स्पष्ट किया कि इंटरनेट अवसंरचना में तकनीकी त्रुटियों का भी व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। बहरहाल, उल्लेखनीय है कि जैसे ही क्लाउडफ्लेयर में दिक्कत आयी, वही उसे ट्रैक करने वाले प्लैटफॉर्म डाउनडिटेक्टर ने भी काम करना बंद कर दिया।यह साफ दिखाता है कि समस्या सिर्फ एक साइट की नहीं, बल्कि इंटरनेट इन्फ्रा-लेयर पर थी। यहां पाठकों को बताता चलूं कि इंटरनेट इंफ्रा-लेयर इंटरनेट की वह आधारशिला है, जिस पर पूरा डिजिटल संसार टिका हुआ है। क्लाउडफ्लेयर आउटेज से वैश्विक क्रिप्टो ट्रेडिंग बाधित हुआ और डेटाबेस त्रुटि से 20% इंटरनेट ठप हो गया। दूसरे शब्दों में कहें तो क्लाउडफ्लेयर कंपनी, जो कुल इंटरनेट ट्रैफ़िक का लगभग 20% संभालती है, लगभग तीन घंटे तक अपने मुख्य सिस्टम में पूरी तरह से रुकावट का सामना करती रही। उपलब्ध जानकारी के अनुसार समस्या 11:05 यूटीसी(कार्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम) या अंतरराष्ट्रीय मानक समय(भारतीय समय शाम 4.35 बजे) पर डेटाबेस में बदलाव के साथ शुरू हुई। क्लाउडफ्लेयर अपने क्लिकहाउस डेटाबेस सिस्टम की सुरक्षा में सुधार कर रहा था, तभी कुछ गड़बड़ हो गई। डेटाबेस ने क्लाउडफ्लेयर के बॉट सुरक्षा सिस्टम द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कॉन्फ़िगरेशन फ़ाइल में डुप्लिकेट प्रविष्टियाँ बनाना शुरू कर दिया। यह फ़ाइल अपने सामान्य आकार से बढ़कर दोगुने से भी ज़्यादा हो गई, जिससे इंटरनेट ट्रैफ़िक को प्रोसेस करने वाला सॉफ़्टवेयर ठप हो गया। जब क्लाउडफ्लेयर के सर्वर ने इस बड़े आकार की फ़ाइल को लोड करने की कोशिश की, तो वे क्रैश हो गए। फ़ाइल में 200 से ज़्यादा फ़ीचर थे, जो सिस्टम की 200 की अंतर्निहित सीमा से ज़्यादा थे (सामान्य उपयोग में लगभग 60 फ़ीचर होते थे)। यह विफलता कंपनी के पूरे वैश्विक नेटवर्क में फैल गई, जिससे लाखों वेबसाइटें प्रभावित हुईं जो सुरक्षा, गति और विश्वसनीयता के लिए क्लाउडफ्लेयर पर निर्भर हैं। हालांकि,वैश्विक इंटरनेट आउटेज का कारण साइबरअटैक नहीं था, बल्कि कंपनी की आंतरिक कॉन्फ़िगरेशन त्रुटि थी और इसे तीन घंटे में हल कर लिया गया था। जानकारी के अनुसार समस्या 17:06 यूटीसी तक पूरी तरह हल कर दी गई। इसे 2019 के बाद क्लाउडफ्लेयर का सबसे गंभीर आउटेज माना गया है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि इंटरनेट अवसंरचना प्रदान करने वाली दिग्गज कंपनी क्लाउडफ्लेयर में आई हालिया तकनीकी गड़बड़ी को केवल एक सामान्य तकनीकी व्यवधान मानकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जैसा कि यह कंटेट डिलीवरी नेटवर्क दुनिया की 20 प्रतिशत वेबसाइट से सामग्री लेती और यूजर को देती है। वेबसाइट और यूजर के बीच ऐसे मध्यस्थ का काम करने वाले ऐसे प्लेटफार्म में, जिस पर दुनिया की हर पांचवी वेबसाइट आश्रित हो, इसी साल तीसरी बार बड़ी खराबी का होना, तथा उसे घंटों बने रहना बताता है कि दुनिया का डिजिटल ढांचा कितनी नाजुक रीढ़ पर टिका हुआ है। वास्तव में,भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए यह चाहिए कि कंपनी मजबूत सुरक्षा उपायों को अपनाये और इनमें क्रमशः फाइल साइज़ पर सख्त सीमा, क्रिटिकल अपडेट्स रोकने के लिए ग्लोबल किल स्विच और सिस्टम फेल होने की संभावनाओं का व्यापक विश्लेषण शामिल किए जाने चाहिए। वास्तव में, क्लाउडफ़्लेयर पर दिक्कतें न आएँ, इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि उसकी कॉन्फ़िगरेशन और डेटाबेस मैनेजमेंट को बेहद सावधानी से संभाला जाना चाहिए। दरअसल, किसी भी सिस्टम में बदलाव करने से पहले उसे टेस्ट करने के लिए एक अलग जगह (स्टेजिंग) होनी चाहिए, ताकि गलती पहले ही पकड़ में आ जाए। डेटाबेस में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि एक जैसी एंट्री दो बार न बन पाए और डाटा हमेशा सही रहे। सिस्टम पर नज़र रखने के लिए मॉनिटरिंग और अलर्ट ज़रूरी हैं, जिससे किसी भी गड़बड़ी का तुरंत पता चल सके। साथ ही, बैकअप और ज़रूरत पड़ने पर तुरंत पुराने संस्करण पर लौटने (रोलबैक) की सुविधा होनी चाहिए, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि , टीमों के बीच सही तालमेल और स्पष्ट नियम हों, ताकि किसी समस्या को जल्दी समझकर ठीक किया जा सके और सेवा बिना रुकावट चलती रहे।हाल फिलहाल, क्लाउडफ्लेयर में बार-बार गड़बड़ी होने की वजह यह है कि उनका सिस्टम बहुत बड़ा और जटिल है। दुनिया भर में फैले हजारों सर्वर और नेटवर्क पॉइंट्स एक साथ काम करते हैं, इसलिए छोटी-सी तकनीकी गलती भी तुरंत प्रभाव दिखा देती है। ऊपर से इंटरनेट पर बढ़ता ट्रैफिक और लगातार बदलते सुरक्षा खतरे क्लाउडफ्लेयर को अपने सिस्टम में बार-बार अपडेट करने मजबूर करते हैं। कभी-कभी इन अपडेट्स के दौरान कोई गड़बड़ी रह जाती है, जिससे वैश्विक स्तर पर रुकावटें देखने को मिलती हैं। संक्षेप में, विशाल सिस्टम और लगातार होने वाले बदलाव मिलकर समस्या का कारण बन जाते हैं। दुनिया को तेज और सुरक्षित इंटरनेट देने वाली कंपनी क्लाउडफ्लेयर में ही तकनीकी गड़बड़ी हो गई, और इसका असर पूरी दुनिया के इंटरनेट पर दिखा। यहां तक कि हमारा देश भारत भी इससे बच नहीं पाया। कई पेमेंट ऐप, खबरों की वेबसाइटें, ऑनलाइन खरीदारी वाले प्लेटफॉर्म, पढ़ाई से जुड़े पोर्टल और कई ऐप कुछ समय के लिए बंद हो गए। आज के समय में भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, ऐसे में इस तरह की रुकावटें सिर्फ थोड़ी परेशानी नहीं, बल्कि छोटा-मोटा आर्थिक नुकसान तक भी कर सकती हैं। अगर ऐसी समस्याएं बार-बार होने लगें, तो लोगों का डिजिटल पेमेंट, बैंकिंग और ऑनलाइन सेवाओं पर भरोसा कम हो सकता है। स्टार्टअप, आईटी कंपनियां और एआई पर काम करने वाले उद्योग भी असुरक्षित महसूस करेंगे और उनकी कामकाज की रफ्तार धीमी पड़ सकती है। अंत में यही कहूंगा कि जब इस तरह की तकनीकी दिक्कत होती है तो सिर्फ एआई प्लेटफॉर्म ही नहीं रुकते, बल्कि इंटरनेट की पूरी ‘रीढ़’ हिल जाती है। इसी पर अस्पतालों की ऑनलाइन सेवाएं, फ्लाइट बुकिंग, ऑनलाइन क्लास, आपदा प्रबंधन और सरकारी सेवाएं चलती हैं, इसलिए सब असर में आ जाते हैं। आम लोगों के पास बचने के ज्यादा तरीके नहीं होते। कभी-कभी वीपीएन या दूसरा नेटवर्क इस्तेमाल करने से थोड़ी राहत मिल सकती है, लेकिन असली समाधान कंपनियों के हाथ में है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि
वीपीएन यानी वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क इंटरनेट पर एक सुरक्षित और निजी सुरंग की तरह काम करता है, जो आपके डेटा को एन्क्रिप्ट करके किसी भी बाहरी व्यक्ति, हैकर या इंटरनेट प्रदाता से छिपा देता है। जब आप वीपीएन का उपयोग करते हैं, तो आपका असली स्थान छुप जाता है और इंटरनेट को ऐसा लगता है कि आप किसी दूसरे शहर या देश से ऑनलाइन हैं। यह न केवल आपकी गोपनीयता की रक्षा करता है, बल्कि पब्लिक वाई-फाई का इस्तेमाल करते समय सुरक्षा भी बढ़ाता है। इसके अलावा, यदि कोई वेबसाइट या ऐप आपके क्षेत्र में बंद है, तो वीपीएन उसे आसानी से खोलने में मदद कर सकता है। कुल मिलाकर, वीपीएन आपकी ऑनलाइन गतिविधियों को सुरक्षित, निजी और स्वतंत्र बनाता है। अतः कंपनियों को यह चाहिए कि वे सिर्फ एक ही नेटवर्क (जैसे क्लाउडफ्लेयर) पर निर्भर न रहें। साथ में दो-तीन बैकअप नेटवर्क भी रखें, ताकि एक बंद हो जाए तो दूसरा तुरंत काम संभाल ले। क्लाउडफ्लेयर को भी अपने सिस्टम में ज्यादा बैकअप, ज्यादा सुरक्षा और ऑटोमैटिक लोड-शिफ्टिंग जैसी तकनीकें मजबूत करनी होंगी, तभी ऐसी बड़ी गड़बड़ियां दोबारा नहीं होंगी।
सुनील कुमार महला,
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार,
उत्तराखंड




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