धारावी पुनर्विकास योजना पर गंभीर सवाल : इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट से खुलासा
50,000 से अधिक लोगों को विषैली लैंडफिल क्षेत्र में बसाने की योजना
इंसानियत बनाम कारोबार महत्वपूर्ण क्या !
धारावी पुनर्विकास परियोजना को लेकर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। इंडियन एक्सप्रेस की एक आरटीआई के माध्यम से की गई पड़ताल में सामने आया है कि धारावी की झुग्गियों में रहने वाले करीब 50,000 से 1 लाख लोगों को मुंबई के देवनार स्थित एक सक्रिय लैंडफिल क्षेत्र में पुनर्वासित करने की योजना बनाई जा रही है। यह इलाका वर्षों से शहर का प्रमुख कचरा निपटान स्थल है, जहां लगातार विषैली गैसें और लीचेट (ज़हरीला रिसाव) उत्पन्न हो रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, देवनार की जिस जमीन पर धारावी के निवासियों को बसाने की बात कही जा रही है, वह आज भी सक्रिय कचरा डंपिंग साइट है। विशेषज्ञों के अनुसार, यहां से निकलने वाले रासायनिक तत्व न सिर्फ हवा को जहरीला बना रहे हैं, बल्कि भूमिगत जल और मिट्टी को भी भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस स्थिति में हजारों लोगों को वहां बसाने का निर्णय मानवाधिकारों पर सीधा प्रहार माना जा रहा है।
सरकारी अधिकारियों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि मुंबई में ज़मीन की भारी कमी के चलते यह निर्णय लिया गया। हालांकि, मानवाधिकार कार्यकर्ता और शहरी नियोजन विशेषज्ञ इस तर्क को अस्वीकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि पुनर्वास का उद्देश्य जीवन स्तर में सुधार होना चाहिए, न कि लोगों को और खतरनाक परिस्थितियों में ढकेलना।
अदाणी ग्रुप की भूमिका पर सवाल
धारावी पुनर्विकास परियोजना का 80% हिस्सा अदाणी ग्रुप के पास है, जबकि शेष 20% महाराष्ट्र सरकार के अधीन है। इस परियोजना के निदेशक प्रणव अदाणी हैं। रिपोर्ट के अनुसार, जब इंडियन एक्सप्रेस ने इस विषय पर अदाणी समूह से प्रतिक्रिया मांगी, तो समूह ने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

इंसानियत बनाम कारोबार पर छिड़ी बहस
इस प्रकरण ने देश में ‘विकास बनाम मानवीय अधिकार’ की बहस को फिर से ज़िंदा कर दिया है। क्या झुग्गी में रहने वाले गरीबों को कचरे के ढेर पर बसाना ही विकास है? क्या ऐसे निर्णयों में इंसानी गरिमा का कोई स्थान नहीं?
धारावी पुनर्विकास परियोजना को लेकर जो तस्वीर सामने आई है, वह न सिर्फ प्रशासनिक सोच पर सवाल खड़े करती है, बल्कि कॉर्पोरेट और सरकार के गठजोड़ को भी कटघरे में लाती है। भविष्य में यह देखना अहम होगा कि इस रिपोर्ट के बाद सरकार और अदाणी समूह क्या स्पष्टीकरण देते हैं और क्या वाकई गरीबों की भलाई को प्राथमिकता दी जाती है।
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