पुरी में 11 जून को स्नान पूर्णिमा इसके बाद 15 दिन तक नहीं होंगे भगवान के दर्शन
108 स्वर्ण कलशों से स्नान करेंगे भगवान, 15 दिन रहेंगे ‘बीमार’, 27 जून को निकलेगी रथयात्रा
पुरी (ओडिशा): भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथयात्रा से पहले 11 जून को स्नान पूर्णिमा का पावन पर्व मनाया जाएगा। इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके भ्राता बलभद्र और बहन सुभद्रा को विशेष विधि से स्नान कराया जाता है। यह एकमात्र अवसर होता है जब श्रीमंदिर परिसर में स्थित स्वर्ण कुएं के जल से भगवानों का सार्वजनिक रूप से स्नान होता है। इस परंपरा को देव स्नान पूर्णिमा कहा जाता है।
इस बार स्नान अनुष्ठान में भगवानों को 108 स्वर्ण कलशों से नहलाया जाएगा। स्नान के पश्चात मान्यता अनुसार भगवानों को ज्वर (बुखार) हो जाता है और वे 11 जून से 25 जून तक दर्शन नहीं देते। इस अवधि को ‘अनवसर काल’ कहा जाता है। 26 जून को भगवान नवयौवन दर्शन में भक्तों को फिर से दर्शन देंगे और 27 जून को जगन्नाथ रथयात्रा की भव्य शुरुआत होगी।
स्नान विधि: सोने के कुएं का जल और 108 कलश
11 जून को प्रातः वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मंदिर परिसर में स्थित स्वर्ण कुएं का भारी ढक्कन खोला जाएगा। इस कुएं के जल को 108 स्वर्ण कलशों में भरा जाता है, जिनमें कस्तूरी, केसर, चंदन और अन्य औषधीय तत्व मिलाए जाते हैं।
- भगवान जगन्नाथ को 35 कलश,
- बलभद्र जी को 33 कलश,
- सुभद्रा जी को 22 कलश,
- और सुदर्शन जी को शेष 18 कलशों से स्नान कराया जाएगा।
भगवानों की काष्ठ-निर्मित मूर्तियों को सूती वस्त्रों से ढककर स्नान कराया जाता है, जिससे उनकी काया को जल से क्षति न पहुंचे।
क्यों होता है साल में एक बार स्नान?
पुजारियों के अनुसार भगवानों को रोजाना गर्भगृह में ही स्नान कराया जाता है लेकिन वह प्रत्यक्ष नहीं होता। शीशों में पड़ती छवि पर जल डालकर स्नान की परंपरा निभाई जाती है, ताकि प्रतिमा को कोई क्षति न पहुंचे। मान्यता है कि प्रति दिन स्नान से भगवान ‘बीमार’ पड़ सकते हैं, इसलिए वर्ष में केवल एक बार विशेष स्नान होता है।
भगवान की अनवसर पूजा: 15 दिन नहीं होते दर्शन
देवस्नान पूर्णिमा के बाद भगवान जगन्नाथ ‘बीमार’ हो जाते हैं। उन्हें 56 भोग की जगह औषधियों, दूध, शहद आदि से युक्त भोग अर्पित किए जाते हैं।
- भगवानों को सिंहासन से हटाकर बांस की कक्ष में विश्राम कराया जाता है।
- 16 जून को अनवसर पंचमी पर फुल्लरी तेल से विशेष मालिश की जाएगी।
- 20 जून को अनवसर दशमी पर भगवान सिंहासन पर लौटेंगे।
- 21 को खलि लागि नामक औषधीय अनुष्ठान होगा।
- 25 जून को भगवानों को सुसज्जित किया जाएगा।
27 जून को निकलेगी रथयात्रा
26 जून को नवयौवन दर्शन में भगवान को प्रथम दर्शन देंगे और रथयात्रा की अनुमति ली जाएगी।
इसके अगले दिन 27 जून को भगवान अपने भक्तों के साथ गुंडिचा मंदिर (मौसी का घर) की ओर रथयात्रा पर प्रस्थान करेंगे। इस दिन लाखों श्रद्धालु पुरी में भगवान के भव्य रूप को देखने के लिए एकत्रित होंगे।
स्वर्ण कुआं: आस्था और चमत्कार का संगम
जगन्नाथ मंदिर परिसर में स्थित यह कुआं लगभग 5 फीट चौड़ा और वर्गाकार है। मान्यता है कि इसमें सभी प्रमुख तीर्थों का जल समाहित है। कुएं की दीवारों में पांड्य वंशीय राजा इंद्रद्युम्न द्वारा स्वर्ण ईंटें लगवाई गई थीं। इसका ढक्कन लोहे और सीमेंट से बना है, जिसका वजन लगभग 2 टन होता है। इसमें एक छोटा छेद भी है, जिससे भक्त सोने की वस्तुएं कुएं में अर्पित करते हैं।
पुरी नहीं जा सकें तो करें आलारनाथ दर्शन
जब भगवान 15 दिनों तक ‘बीमार’ रहते हैं और दर्शन नहीं देते, तब श्रद्धालु 27 किलोमीटर दूर स्थित आलारनाथ मंदिर में दर्शन करते हैं। मान्यता है कि यहां भगवान के दर्शन से वही पुण्य प्राप्त होता है जो पुरी में होता है। आलारनाथ भगवान विष्णु के एक रूप हैं, जिन्हें जगन्नाथ जी का परम भक्त माना जाता है।
स्नान पूर्णिमा और रथयात्रा दोनों आयोजन धार्मिक आस्था के महत्वपूर्ण केंद्र हैं। श्रद्धालुओं से अनुरोध है कि दर्शन के दौरान व्यवस्था बनाए रखें और स्थानीय प्रशासन के दिशा-निर्देशों का पालन करें।
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!