खरी खरी : फिल्मी डायलॉगबाजी छोड़ सीधे-सीधे सवालों का जबाब क्यों नहीं देते पीएम !
रगों में लहू बहे या सिंदूर या हलाहल कोई फरक नहीं पड़ता जनता को
आईंस्टीन ने सही कहा है कि बुध्दि की सीमा होती है लेकिन मूर्खता असीमित और अपरिमित होती है। कुदरत ने केवल 4 ब्लड ग्रुप वाले लोगों को ही पैदा किया है ओ, ए, बी और एबी प्लस एवं माइनस (O+, A+, B+, AB+, O-, A-, B-, AB-)। हाँ अब अगर कोई खुद को नानबायलाॅजिकल कहे तो फिर वह यह तो कह ही सकता है कि उसके खून का ग्रुप आम इंसान की तरह नहीं है। वह समय, परिस्थिति, काल के हिसाब से अपनी रगों में कभी पैसा तो कभी सिंदूर, तो कभी लोहा, सोना, चांदी और न जाने क्या-क्या, कुछ भी बहा सकता है। कभी कुछ अजीब तरह की घटना घट जाय तो वह अवतारी यह भी कह सकता है कि मेरी रगों में हलाहल बहता है या उबलता हुआ पानी दौड़ता है। अवतारी पुरुष का भौतिक शरीर तो उसका देश ही होता है। सिंदूर के बारे में सतही जानकारी ये है कि उसका मुख्य घटक मरक्यूरिक सल्फाइड (Hgs) होता है। इसे सिनावर भी कहा जाता है। मरक्यूरिक सल्फाइड (Hgs) में पारा (mercury) होता है। जो कि अत्यधिक भारी और विषैला है। इससे नर्वस सिस्टम, किडनी, त्वचा, पाचनतंत्र और प्रतिरक्षा पर विषाक्त प्रभाव होता है। सिंदूर में लेड आक्साइड यानी सीसा भी मिलाया जाता है और यह भी सेहत के लिए हानिकारक है। धोखे से भी अगर खून में सिंदूर मिल जाए तो खून जहरीला और खून की उल्टी होने लगती है। एक बात और समझ लेनी चाहिए कि देश की सियासत काल्पनिक दुनिया यानी फिल्मी डायलॉग से नहीं चलती है। इन सारी परिस्थितियों को भारत में बखूबी देखा जा सकता है।
नरेन्द्र मोदी खुद को नान बायोलॉजिकल कह ही चुके हैं। 2014 में नरेन्द्र मोदी ने टोक्यो में कहा था कि मैं गुजराती हूं और मेरी रगों में पैसा दौड़ता है (MERE BLOOD MAIN MONEY) । लेकिन 2025 में नरेन्द्र मोदी ने बीकानेर में बयान दिया है कि मोदी का दिमाग ठंडा लेकिन खून गरम है, अब मेरी नसों में सिंदूर बह रहा है। गोविंदा की एक पिक्चर आई थी राजा बाबू जिसमें वह हर किरदार की पोशाक पहनकर फोटो खिंचवाता है जबकि उसकी हकीकत निल बटे सन्नाटा होती है। यह रोल फिल्मी दुनिया में तो ठीक है मगर वास्तविक दुनिया में अगर कोई इसी तरीके की एक्टिंग करने लगे तो उसे विदूषक, सिरफिरा, पागल ही तो कहेंगे चाहे फिर वह राजा हो रंक। क्योंकि वो जमाने हवा हो गये जब कौन कहे राजा नंगा है। राजनीति में नेता इस विदूषकपने से वोट तो कबाड़ सकता है मगर जब विदूषकी उसकी पहचान बन जाती है तो फिर वह खुद कबाड़ बन जाता है। देश की जनता भले ही बोलती हो न बोलती हो मगर समझती सब है। आतंकी दर आतंकी हमले के बाद पैदा होने वाले सवालों से भागती सत्ता विदूषकी के जरिए जनता का ध्यान भटकाने की असफल कोशिश करती रहती है। जो कि सरकार और सरकार के मुखिया के चेहरे पर लगे मुखौटे को नोच कर अलग कर देती है।
एकबार फिर दिल्ली सल्तनत सवालों का जबाब देने के बजाय ऊलजलूल फिल्मी तर्ज पर डायलॉगबाजी कर रही है। कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुई आतंकी घटना जिसमें 26 पुरुष सैलानियों की हत्या कर दी गई थी (22 मई) को एक महीने से ज्यादा हो गया है लेकिन अभी तक घटना को अंजाम देने वाले चारों आतंकवादियों को पकड़ा नहीं जा सका है, उन्हें जमीन निगल या आसमान खा गया, यह बताने की स्थिति में सरकार नहीं है। सरकार का मुखिया अपने खोखले बयानों को फिल्मी डायलॉग की तर्ज पर देकर जनता का ध्यान भटकाने की असफल कोशिश कर रहा है। पहलगाम में मारे गए लोगों और उनके परिजनों को दरकिनार कर दिल्ली सल्तनत राज्यों में होने वाले चुनाव में पहलगाम में मारे गए लोगों के नाम पर वोट जुगाडने की तैयारी में लग गई है। पहलगाम घटना के पखवाडे़ बाद सरकार ने पाकिस्तानी क्षेत्र में बने आतंकवादियों के ठिकानों को नेस्तनाबूद करने के लिए हवाई कार्रवाई की लेकिन अमेरिका की चौधराहट ने चौथे दिन दो बिल्लियों के बीच बंदर की भूमिका निभाते हुए सीज फायर करा दिया वह भी अन कंडीशनल।
अब सत्ता पार्टी के प्रमुख घटक बीजेपी के द्वारा दिल्ली सल्तनत के सुलतान की फोटो चिपका कर देश के भीतर कुछ इस तरह से पेश किया जा रहा है जैसे कोई बहुत बड़ी जंग जीत ली हो। नौनिहाल बच्चों के बस्तों से लेकर रेलवे की टिकटों पर प्रचार किया जाने लगा है। प्रचारजीवी कम से कम इतना ही कर लेते कि सुलतान की फोटो के साथ शहीद हुए 26 सैलानियों और उनकी विधवाओं की भी फोटो प्रिंट करा देते। मगर ऐसा कुछ नहीं किया गया। इसे बेशर्मी की पराकाष्ठा ही कहा जाना चाहिए कि सत्ता प्रमुख द्वारा देश के भीतर कई सार्वजानिक कार्यक्रमों में भागीदारी की जा चुकी है लेकिन किसी सी सार्वजनिक कार्यक्रम में पहलगाम में असमय मारे गए लोगों का जिक्र तक नहीं किया गया न ही शोकसंतप्त परिजनों से मुलाकात की गई है। जिस तरह से आपरेशन सिंदूर का राजनीतिकरण दिखाई दे रहा है उससे तो यही लगता है कि आपरेशन सिंदूर पहलगाम में मारे गए सैलानियों का बदला लेने की आड़ में आने वाले चुनाव में राजनीतिक फायदा उठाने के लिए किया गया था।

भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने नीदरलैंड में न्यूज चैनल एनओएस को दिए इंटरव्यू में कहा है कि उन आतंकवादियों की पहचान कर ली गई है जिन्होंने पहलगाम में आतंकी वारदात को अंजाम दिया था। Jai Shankar said the terrorists have been identified by security agencies and The Resistance Front, an offshoot of Lashkar-e-Taiba has claimed responsibility for the attack. He added that the outfit has been on India’s radar for years and has also been brought to the attention of the UNSC (Hindustan Times) We Were able to identify who they (terrorists) were because there were pictures of them. There is a body which is called the Resistance Front which took responsibility for that. मगर 22 मई को पीटीआई के हवाले से The Hindu ने खबर छापी है कि अधिकारियों के अनुसार अभी तक उन आतंकवादियों को पकड़ा नहीं जा सका। Month after massacre of tourists, Phalgam locals count livelihood losses – Phalgam had not worn such a deserted look even at the peak of the early 1990’s insurgency said tour opeatator Nasir Ahmad. While several top terrorists have been killed in various operations launched after the deadly April 22, 2025 attack at Baisaran Meadows the Terrorists who carried out the massacre have eluded the Security forces official said on Thursday. (May 22 2025)
जहां तक भारत के मीडिया की बात है तो वह पहलगाम हमले को भूल ही चुका है। आतंकियों ने धर्म पूछ कर मारा वाला हेंडल बंद हो गया है। अब तो उसकी कोई बात ही नहीं कर रहा है। जिनको धर्म पूंछ कर मारा गया है उनके परिवार वालों ने कुछ सवाल भी पूछे हैं सरकार से। मसलन पहलगाम में आतंकवादी कैसे घुसे ? जब वहां हजारों सैलानियों का जमावड़ था तो वहां सुरक्षा के इंतजामात क्यों नहीं किए गए थे ? क्या वहां पहले सुरक्षा व्यवस्था होती थी, अगर हाँ, तो फिर सुरक्षा किसके आदेश पर हटाई गई थी? सुरक्षाकर्मियों को हटाने से पहले किन-किन लोगों ने हालात की समीक्षा की थी ? क्या सरकार ने इस पूरी प्रक्रिया से जुड़े किसी को भी जिम्मेदार पाया है ? किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई ? ये सारे सवाल तब भी मीडिया से गायब थे और आज भी गायब हैं। आपरेशन सिंदूर में उन चेहरों को आगे होना चाहिए था जिन्होंने अपनों को खोया है यानी उनकी जीवन संगिनी को मगर उन सबको दरकिनार कर दिया गया, इसी तरह उन सैनिकों को भी अंधेरी सुरंग में भेज दिया गया जिन्होंने अपनी बहादुरी दिखाई और नरेन्द्र मोदी के चेहरे को आगे कर दिया गया जिसने अपना अधन्ना भी नहीं खोया।
मोदी सरकार द्वारा कहा गया कि पहलगाम हमले और आपरेशन सिंदूर के नाम पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए मगर राजनीति की शुरुआत तो मोदी-शाह की बीजेपी ने नरेन्द्र मोदी के सैनिक लिबास वाली फोटो के विशालकाय बैनर पोस्टर और तिरंगा यात्रा निकाल कर शुरू कर दिया है। विपक्ष सवाल पूछता तो उसे राजनीति कहा जा रहा है और बीजेपी जो राजनीति कर रही है उसे राष्ट्र धर्म का नाम देकर प्रचारित – प्रसारित किया जा रहा है। आपरेशन सिंदूर का श्रेय मोदी से शुरू होकर मोदी पर खत्म किया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी की रगों में लहू बहे या सिंदूर बहे अथवा हलाहल या फिर और कुछ भारत की जनता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता उसे तो कमतर 4 सवालों के जवाब चाहिए वह भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जबानी (1) पहलगाम आतंकी घटना के हत्यारे अभी तक जिंदा क्यों हैं ? जबकि कुछ रिपोर्ट के अनुसार यही आतंकी गिरोह पिछले डेढ़ साल से पूंछ, गगनगीर और गुलमर्ग में हुए आतंकी हमले में शामिल था। (2) आपने अभी हुई दो सर्वदलीय बैठक में हिस्सा क्यों नहीं लिया ? (3) 22 फरवरी 1994 को संसद में सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव को दोहराने और आपरेशन सिंदूर के दौरान सामने आये पाकिस्तान – चीन गठजोड़ के मद्देनजर उसे वर्तमान परिस्थितियों के मुताबिक दुबारा तैयार करने के लिए संसद का विशेष सत्र क्यों नहीं बुलाया गया? (4) अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और विदेश मंत्री रूवियो जिस तरह से अमेरिकी भूमिका के दावे कर रहे हैं और आप लगातार चुप हैं आखिर क्यों ?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक पखवाडे़ के भीतर लगातार आठवीं बार दावा किया है कि उन्होंने ही पाकिस्तान और भारत के बीच सीज फायर कराया है। वे कह रहे हैं कि हम भारत से डील करने जा रहे हैं तो देश को यह जानने का हक है कि क्या कुछ ऐसा हुआ है जिसकी कीमत ट्रम्प बसूलने वाले हैं या उस डील की कीमत क्या हो सकती है जिसे बसूलने की बात ट्रम्प कर रहे हैं। उसे भारत किस तरह से चुकायेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पाकिस्तान का नाम भारत के साथ बराबरी पर लिये जा रहे हैं और भारत इसका कोई प्रतिकार नहीं कर रहा है। If you take a lovk at what we just did with Pakistan and INDIA we settled that whole thing and I think Settled it through trade. We’re doing a big deal with India, We’re doing a big deal with Pakistan and I said what are you guys doing…….
22 अप्रैल की पहलगाम घटना से एक माह के भीतर जहां भारत के प्रधानमंत्री की रगों में खून की जगह सिंदूर बहने लगा है वहीं हरियाणा में अशोक युनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर अली खान मेहमूदाबाद को जेल में डाल दिया गया। मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री विजय शाह पर हाईकोर्ट जबलपुर द्वारा दिए गए एफआईआर दर्ज करने के आदेश पर पुलिस ने मजबूर हो कर एफआईआर दर्ज तो कर ली मगर मोहन यादव की पुलिस मंत्री को गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। गायिका नेहा सिंह राठौर के खिलाफ 4 शिकायतें दर्ज की गई। 4 पीएम (4PM) यूट्यूब न्यूज चैनल को बंद कर दिया गया। गोदी मीडिया के द्वारा बेशर्मी के साथ परोसे गये झूठ फरेब से सने नफरती समाचारों से देश आहत होता रहा। देश की जनता ने हद दर्जे तक आक्रोश आने के बाद भी अपने होशो हवास को बनाये रखा। जनता छद्म राष्ट्रवाद के नाम पर खेले जाने वाले खेल को भलीभांति समझने लगी। उसे सेना के पराक्रम और मोदी-मीडिया के उपक्रम के बीच का फर्क बहुत कुछ हद तक समझ में आने लग गया।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!