खरी-खरी : आर्थिक आपातकाल की दहलीज पर भारत
2014 में अच्छे दिनों का सपना दिखाकर दिल्ली की कुर्सी हथियाने वाली पार्टी के लीडर ने आगे चलकर कुर्सी बरकरार रखने के लिए जो भी ईमोशनल ब्लैकमेलिंग जिस भी स्तर पर की जा सकती थी की। करोना काल में ताली – थाली – दिया – बाती कराने से बाज नहीं आये। सारे आवाम का जबरिया टीकाकरण करवा दिया। टीकाकरण के सर्टिफिकेट पर अपनी फोटो छपवाने से परहेज नहीं किया, मगर अब जब लगातार युवाओं की मौतों का ठीकरा करोना टीकाकरण के माथे फोड़ा जाने लगा तो बड़ी बेशर्मी के साथ कह दिया गया कि टीकाकरण के लिए कोई जोर जबरदस्ती नहीं की गई और रातों रात करोना टीकाकरण के सर्टिफिकेट की छाती पर चिपकी फोटो को हटा दिया गया।
आज जब अवतारी पुरुष का दोस्त भारत में आर्थिक महामारी फैला रहा है तो उस महामानव में इतना साहस नहीं बचा है कि वह दुनिया के डान के सामने सीना तान कर तो छोडिए घिघिया कर भी यह कह दे कि भारत को तो बक्स दो माई-बाप। अब तो उसकी इतनी हैसियत भी नहीं है कि वह अचानक रात के आठ बजे दूरदर्शन पर अवतरित होकर आकाशवाणी के जरिए जनता से यह कह सके कि डरने की जरूरत नहीं है। वैसे साहब को पता है कि हम भारत के किसानों के खून की एक – एक बूंद निचोड़ लेंगे तब भी भारत का किसान अपने देश की जनता को भूखे मरने नहीं देगा। किसान सरकार के सारे जुल्मों सितम को सह कर अभी भी देश के 80 करोड़ लोगों का पेट भर रहा है 5 किलो मुफ्त अनाज देकर।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की टेरिफ जंग से भारत सहित पूरा विश्व प्रभावित हो रहा है। चीन सहित कुछ देशों ने अमेरिका की दादागिरी को चुनौती देना शूरू कर दिया है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्ति चाइना ने तो जैसे को तैसा फार्मूला अपनाते हुए अमेरिका के ऊपर भी टेरिफ वार करना शुरू कर दिया है। मगर भारत अभी मुंह पर दही जमाये बैठा है। दिल्ली का रायसीना हिल्स जहां भारत के सबसे बड़े ताकतवर लोग बैठकर नीतियां बनाते हैं आज उस रायसीना की सांसे फूली हुई हैं। सरकारी मुखिया ने उन्हीं सांसों को थामने के लिए देश के आर्थिक मंत्री को हफ्ते भर के लिए यूनाइटेड किंगडम यानी ब्रिटेन यानी पुराने मालिक के दरबार में भेज दिया है। कितनी विडंबना है कि जब देश पर शेयर बाजार, बैंकिंग प्रणाली, मंहगाई, मंदी का बोझ बढने वाला है उस दौर में देश की वित्त मंत्री देश से बाहर हैं। जब क्रूड आइल सबसे निचली कीमत पर है तब पेट्रोल और डीजल पर दो रुपए की एक्साइज ड्यूटी बढा दी गई इतना ही नहीं गैस के दामों में भी पचास रुपये सिलेंडर बढा दिए गए हैं।
भारत सरकार अपने गिरेबां में झांकने के बजाय पड़ोसी की कालर देख रही है। देश के भीतर रोजगार पाने वालों की इतनी बड़ी तादाद हो चुकी है कि उसके भीतर यूरोप के कई देश समाहित हो सकते हैं। हकीकत तो यह है कि दुनिया के मानचित्र पर भारत की हैसियत एक बड़े बाजार से ज्यादा कुछ भी नहीं है। आये दिन विश्व गुरु का ढिंढोरा पीटने वाले भारत का दूसरे देशों से तुलनात्मक अध्ययन करें तो पता चलता है कि जहां अमेरिका की जीडीपी 27.72 ट्रिलियन डॉलर, यूरो जोन की जीडीपी 15.78 ट्रिलियन डॉलर है जबकि भारत की जीडीपी 4 ट्रिलियन डॉलर भी नहीं है। अमेरिका में औसत मजदूरी 80150 डाॅलर तो भारत में 6-7-8 सौ डाॅलर के आसपास है। 2023 की जीडीपी के हिसाब से परकैपिटल इनकम को देखें तो अमेरिका में यह 82769 डाॅलर, जापान में 33767 डाॅलर, फ्रांस में 44691 डाॅलर, ब्रिटेन में 49464 डाॅलर, मिसीसिपी जैसे देश में भी 51335 डाॅलर है और भारत में तकरीबन 2000 डाॅलर ही है। देश के रिजर्व बैंक ने पिछली 4 तारीख को बताया था कि भारत के खजाने में 665 विलियन डाॅलर है जबकि केवल बाहरी कर्ज़ 717 विलियन डाॅलर का है (आंतरिक उधार तो भूल जाइए)। आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया यानी कर्जा लेकर घी पी रही है सरकार।
शेयर मार्केट में जिस तरह से नामी-गिरामी कंपनियों के शेयर गोते लगा रहे हैं उससे तो यही लगता है कि भारत की अपनी कोई ताकत है नहीं जो वह चाइना की तरह अमेरिका में टेरिफ को लेकर पलटवार कर सके। चाइना ने भी 34 फीसदी का अतिरिक्त टेरिफ बढाकर अमेरिका को चेतावनी दे दी है कि जैसे को तैसा। चीन ने अमेरिका को यह भी कह दिया है कि अब हम डिजिटल तरीके यानी शिप्ट और डाॅलर के आसरे व्यापार नहीं करेंगे। मीडिया रिपोर्ट्स ने जब ट्रंप से गिरते हुए शेयर मार्केट पर प्रतिक्रिया जाननी चाही तो ट्रंप का कहना था कि क्या वाकई देश की इकोनॉमी शेयर मार्केट से चलती है? और अगर चलती है तो इसको कुछ दवा तो देनी पड़ेगी। अमेरिका या कहें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को समझ में आ गया है कि अमेरिका ग्रेट तभी हो सकता है जब वह दुनिया भर के बाजार से अपने लिए पैसों की उगाही करे।
यही कारण है कि अमेरिका अपनी ताकत का अह्सास दुनिया को ट्रेड वार के जरिए करा रहा है कि अब दुनिया अमेरिका के बिना चल नहीं सकती है । ग्लोबल आर्डर बदल रहा है। जिस तरह से अमेरिका दुनिया के सामने अपनी ताकत को नये तरीके से पारिभाषित कर रहा है उससे तो यही लगता है कि डब्लूटीओ के नियम कायदे खारिज कर एक फ्री ट्रेड लांच हो गया है।
इस दौर में भारत की मुश्किल यह है कि भारत में सबसे बड़ी तादाद बेरोजगारी है। 10 फीसदी पर रहने वाला मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर – 1, 1 से फीसदी से आगे बढ़ पा रहा है। एमएसएमई, स्टार्टअप का आधार ही खोखला नजर आता है। भारत की परिस्थिति कहीं ज्यादा नाजुक है। अभी तक जो कार्पोरेट का व्यापार देश की राजनीतिक सत्ता को लाभ दे रहा था और सरकार कार्पोरेट के आसरे देश की इकोनॉमी नेटवर्क को बढा चढा कर दिखाती थी अब वह डहडहा रहा है।
हवा हवाई उडान भर रही सरकार ने तो उस एग्रीकल्चर को भी सम्हालने की कोशिश नहीं की जिस एग्रीकल्चर को वह एमएसपी तक दे पाने की स्थिति में नहीं है। देश के सामने मंडरा रहे संकट का जवाब प्रोडक्शन, ह्यूमन रिसोर्स, मेकिंग इंडिया और इकोनॉमी के आसरे दे पाने में देश सक्षम नहीं हो पा रहा है। पीएम लाल दीवारों के कैद हैं। रायसीना हिल्स की सांसें उखड रही है। लाल दीवार के भीतर के सांसों की धडकनों को दुनिया ना सुन सके इसलिए उसे भी चाटुकारिता ने मुठ्ठी में जकड़ रखा है। अपनी कलम को सत्ता के पैरों में रख चुका मीडिया तो यह बताने से रहा कि भारत में भी इकोनॉमी इमर्जेंसी यानी आर्थिक आपातकाल की परिस्थिति आ चुकी है।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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