भारत अमेरिका से डरता क्यों है ? जो उसके टैरिफ का विरोध नहीं कर पा रहा ?
प्रधानमंत्री जी देश की जनता टीवी चैनल पर रात के 8:00 बजे का कर रही है इंतजार कब आएंगे आप !
आप आकर के सिर्फ एक बार कह दीजिए अमेरिकी प्रोडक्ट का कर दो बहिष्कार फिर देखिए कैसे अमेरिका घुटनों के बल भारत के सामने झुकेगा
रीतेश माहेश्वरी
भारत और अमेरिका के संबंध वर्षों से आर्थिक और राजनीतिक जटिलताओं से भरे रहे हैं। एक ओर जहाँ अमेरिका वैश्विक महाशक्ति के रूप में अपने हितों को सर्वोपरि रखता है, वहीं दूसरी ओर भारत, दुनिया की सबसे बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक, कई बार ऐसे निर्णय लेता दिखाई देता है जो स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता के सिद्धांतों के विरुद्ध प्रतीत होते हैं। ताजा मामला अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए टैरिफ को लेकर उठा है । जहां अमेरिकी राष्ट्रपति लगातार सभी देशों को धमका रहे हैं वहीं भारत के लिए आत्म सम्मान बढ़ाने का यह मौका है और आत्मसम्मान के साथ-साथ आपदा में अवसर तलाशने का भी यही सही मौका है । और तो और अगर इतिहास में जाएं तो इतिहास से भी भारत सबक ले सकता है ।
इतिहास से सबक: गेहूं और आत्मगौरव
एक दौर था जब भारत को खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ा था। तब अमेरिका से ‘PL-480’ योजना के तहत गेहूं आयात किया गया था। यह गेहूं न केवल निम्न गुणवत्ता का था बल्कि इसमें कुछ ऐसी रासायनिक प्रक्रियाएँ की गई थीं जो भारत की कृषि-भूमि के लिए हानिकारक सिद्ध हुईं। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देशवासियों से अपील की कि वे सप्ताह में एक दिन उपवास रखें, ताकि आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम बढ़ाया जा सके। देशवासियों ने इस अपील को पूरे मन से स्वीकार किया, और यह एक ऐतिहासिक जनआंदोलन में बदल गया।
आज की स्थिति: टैरिफ और व्यापारिक असंतुलन
आज जब अमेरिका भारतीय उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाने जा रहा है ( बल्कि जब आप यह खबर पढ़ रहे होंगे तब शायद टैरिफ लग चुका होगा ) , भारत उसका ठोस प्रतिकार नहीं कर रहा। जबकि अमेरिका ने अपने बाज़ार में भारतीय स्टील, एल्यूमीनियम, फार्मा और अन्य उत्पादों पर सीमा शुल्क बढ़ा दिया है, भारत अब भी अमेरिकी कंपनियों के लिए अपने द्वार खुले रखे हुए है। अमेज़न, वॉलमार्ट, एप्पल, गूगल जैसे दिग्गज भारतीय बाज़ार में बेहिचक मुनाफा कमा रहे हैं।
प्रश्न यह है: भारत विरोध क्यों नहीं करता?
क्या यह आर्थिक निर्भरता का परिणाम है? या फिर कूटनीतिक दबावों का असर? भारत एक मजबूत लोकतंत्र है, जिसकी अपनी तकनीकी क्षमता, संसाधन और उपभोक्ता शक्ति है। ऐसे में यह सवाल लाज़मी है कि भारत अमेरिका की टैरिफ नीतियों का मुखर विरोध क्यों नहीं करता?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘मेक इन इंडिया’, ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहलों के माध्यम से देश को स्वदेशी उत्पादों की ओर प्रोत्साहित करने की बात तो करते हैं, लेकिन क्या वे राष्ट्र को यह नहीं कह सकते कि— “अमेरिकी सामान का बहिष्कार करें”?
उपभोक्ता शक्ति: भारत का असली हथियार
भारत में 140 करोड़ से अधिक की जनसंख्या है और यहाँ का मध्यवर्ग वैश्विक उपभोक्ता बाज़ार का एक बड़ा हिस्सा है। यदि भारतीय उपभोक्ता ठान लें कि वे अमेरिकी उत्पाद नहीं खरीदेंगे, तो इसका असर निश्चित ही अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। अमेरिका और अन्य पश्चिमी राष्ट्र भारत को एक बड़े बाज़ार के रूप में देखते हैं, और यह भारत की सबसे बड़ी शक्ति है।
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी
इस स्थिति में सरकार की भूमिका सबसे अहम है। यदि भारत अमेरिका की नीतियों का विरोध करना चाहता है तो उसे केवल डिप्लोमैटिक बयानों से काम नहीं चलेगा, उसे स्पष्ट रणनीति बनानी होगी। अमेरिका जिस तरह अपने नागरिकों और कंपनियों के हित में वैश्विक नीतियाँ बनाता है, क्या भारत भी अपनी जनता के हितों की रक्षा करने के लिए ऐसा कर सकता है?
प्रधानमंत्री जी आपके सिर्फ एक बार कहने पर कोरोना में देश की जनता ने ताली ताली और दीपक जलाए थे !
प्रधानमंत्री जी देश ने आपके एक आह्वान पर कोरोना काल में ताली , थाली दीपक जलाए थे तो यही मौका है कि आप एक बार फिर रात में 8:00 बजे देशवासियों को संबोधित करने के लिए आए क्योंकि देशवासी आपका बहुत लंबे समय से रात के 8:00 बजे का इंतजार कर रहे हैं आप रात के 8:00 बजे एक बार फिर नेशनल टीवी पर आए और देशवासियों से आह्वान करें कि आज से अमेरिकी सामान खरीदना बंद किया जाए । क्योंकि 140 करोड़ के देश में सारे नहीं तो 100 करोड लोग ( विपक्ष को छोड़ दिया जाए तो हालांकि विपक्ष भी कुछ नेता आपकी बात को सुनते भी हैं और मानते भी हैं ) तो आपकी बात को सुनते भी हैं । और मानते भी हैं । और तो और भाजपा का ही दावा है कि 80 करोड लोग तो भाजपा के सदस्य हैं तो 80 करोड लोग तो आपकी बात मानेंगे ही मानेंगे ।
और यही मौका भी है भारत के लिए सोशल मीडिया पर अपना वर्चस्व बनाएं
भारत के लिए यही एक मौका भी है कि जिस तरीके से भारत में गूगल और फेसबुक ने अपना सोशल मीडिया पर वर्चस्व से बना रखा है। जब आप इन कंपनियों पर बैन लगाएंगे तो कोई ना कोई भारतीय कंपनी आगे आएगी और सोशल मीडिया पर गूगल और फेसबुक जैसा प्लेटफार्म तैयार कर सकेगी इसके अलावा भारत सरकार के आधिकारिक आदेश को हम सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर पढ़ते हैं वह भी अमेरिका का ही है क्यों नहीं यह मौका है कि एक्स की छुट्टी भारत से कर दी जाए और भारत सरकार अपना सोशल मीडिया अकाउंट तैयार करें जिसका सर्वर भी भारत में हो । और भारत सरकार का वर्चस्व भी हो । क्योंकि प्रधानमंत्री जी आपका ही कहना है हम ( भारतीय ) आपदा में अवसर हमेशा ढूंढ लेते हैं ।
प्रधानमंत्री जी देशवासी एक बार फिर आपकी तरफ उम्मीद भरी नजर से देख रहे हैं कि जिस तरह आप कोविद काल में रात में 8:00 बजे नेशनल टीवी पर आकर लोगों का मनोबल बढ़ाते थे आज फिर एक बार वहीं मौका है देशवासी आपकी तरफ देख रहे हैं कि आप एक बार फिर रात में 8:00 बजे टीवी पर आए और देशवासियों से सिर्फ इतना कह दें कि आज से अमेरिकी सामान खरीदना बंद । बस फिर देखिए हमें दूसरे देशों की चिंता नहीं है हमें अपने देश की चिंता है भारत के लिए टैरिफ अमेरिका अपने आप काम करेगा।
वहीं दूसरी तरफ भारत को अमेरिका से डरने की नहीं, संवाद और दृढ़ता से पेश आने की ज़रूरत है। आत्मनिर्भरता केवल नारे से नहीं आती, वह ठोस निर्णयों से आती है। आज समय है कि भारत अपने स्वाभिमान की पुनः स्थापना करे—चाहे वह टैरिफ नीति हो, विदेशी कंपनियों की दखलअंदाज़ी हो या फिर उपभोक्ताओं के हित। जब देश की जनता खाद्यान्न संकट पर एक वक्त का व्रत रख सकती है तू यह तो अमेरिकी प्रोडक्ट का बहिष्कार करने की ही बात है ।
भारत को तय करना होगा कि वह इतिहास से सीखेगा या दबावों में झुका रहेगा ।
रितेश महेश्वरी ,चंडीगढ़
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