भारत में मिनरल वाटर के नाम पर हो रही खुली लूट !
हाल के वर्षों तक भारत में मिनरल वाटर का प्रयोग सिर्फ अपनी सेहत के प्रति जागरुक एवं अमीर लोग ही किया करते थे। अब स्थिति ऐसी नहीं हैै अब मिनरल वाटर का प्रयोग छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, खास एवं सामान्य वर्ग भी करने लगा है। अंतर्राष्ट्रीय पैमाने पर मिनरल वाटर ऐसा पानी है जिसे उसके स्रोत पर ही पानी की बोतल में बंद किया जाता है।
कुछ स्थितियों को छोड़कर इस पानी के किसी भी तरह के उपचार की जरूरत नहीं पड़ती। कभी-कभी पानी में आयरन एवं सल्फर को निकालने के लिए इसे छाना जाता है। इसे शुद्ध करने के लिए अल्ट्रा वायलेट किरणों का प्रयोग किया जाता है इसके अतिरिक्त कोई रासायनिक विधि नहीं अपनाई जाती। इस जल को आपने भूमंडलीय स्रोत से निकलने के बाद उसके प्राकृतिक स्वरूप में भी कोई परिवर्तन नहीं किया जाता। 1996 में अमेरिकन और यूरोपीयन लोगों द्वारा निर्धारित किए गए बंद बोतल पानी के मानक के अनुसार मिनरल वाटर को कुछ श्रेणियों में बांटा गया है। हल्की श्रेणी के मिनरल वाटर में प्रति लीटर 500 ग्राम या उससे कर्म पूर्णत: धुलनशील खनिज होता है। मध्यम श्रेणी के मिनरल वाटर में धुलनशील खनिज पदार्थ 500 से 1500 मिली ग्राम की मात्रा में होता है। जबकि उच्चश्रेणी के मिनरल वाटर में धुलनशील खनिज पदार्थों की संख्या 1500 मिलीलीटर से 2000 तक होती है। हमारे देश में मिनरल वाटर शब्द का भरपूर दुरुपयोग किया जा रहा है।
भारत में लगभग सभी कम्पनियां बंद बोतल के पानी के ऊपर मिनरल वाटर का स्टीकर लगाकर लोगों को खुलेआम लूट रही है। सेवानिवृत्त खाद्य कंट्रोलर कंवलप्रीत सिंह का कहना है कि भारत में बंद बोतलों में बेचा जाने वाला पानी मिनरल वाटर न होकर संशोधित या प्रोसेस्ड पानी है। वहीं सिविल सर्जन का कहना है कि सभी तरीकों से मिनरल वाटर में अलग-अलग अनुपात से खनिज पाए जाते हैं यह अनुपात उस भू गर्भीय संरचना पर निर्भर करता है जहां से होकर पानी कई स्तरों से गुजरता है। उदारणत: चूने के पत्थरों पर से गुजरता पानी कैल्शियम की दृष्टि से समृद्ध होता है जबकि डोलोसाइड की वजह से पानी में मैग्नीशियम पाया जाता है। कई तरह के मिनरल वाटर में फ्लोराइड पाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है। इसके कारण दांत पीले पड़े जाते हैं। यह फजिल्का के साथ लगते क्षेत्र में अधिकतर पाया जाता है। शरीर के लिए मिनरल वाटर काफी लाभप्रद होता है परंतु विशेषज्ञों का मानना है कि मिनरल वाटर एक दवा नहीं न ही यह कोई मल्टीविटामिन है।
पानी का स्वाद बदल जाता है।पानी में खनिजों के संतुलन से पानी में नया स्वाद पैदा होता है। इन्हीं खनिजों की मात्रा में बदलाव से पानी-पानी के स्वाद में फर्क पैदा होता है। जिस पानी में कोई खनिज नहीं होता वह पानी स्वादहीन हो जाता है। यह आम कहावत है कि बिना रोटी खाए मनुष्य कई दिनों तक जीवित रह सकता है परंतु बिना पानी के 48 घंटे तक गुजारा करना भी मुश्किल हो जाता है। शरीर की सभी जैव रासायनिक क्रियाएं पानी पर निर्भर करती हैं। भारत में बोतल में भरा पानी मिनरल वाटर के नाम पर लोगों से खुली छूट से बेचा जा रहा है। गाडिय़ों में पानी बेचने वाले खाली बोतलों को पानी से पुन: भरकर लोगों को खूब लूट रहे हैं। यह आम पानी होता है। बड़े-बड़े जारों में बिकने वाले पानी की शुद्धता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े हो रहे हैं। जारों के पानी में जाले देखने को मिल रहे हैं। जबकि कोठियों में भरा पानी भी शुद्ध नहीं होता। कई-कई दिनों तक कैम्परों की सफाई ही नहीं की जाती अत: पानी में बदबू आने लगती है। स्वास्थ्य विभाग भी सफाई को लेकर गंभीरता नहीं दिखा रहा है। अधिकांश जगहों पर अशुद्ध पानी लोगों को सप्लाई किया जा रहा है। इस मामले में स्वास्थ्य विभाग को पहले से ज्यादा सक्रिय होने की जरूरत है।

Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!