खरी-अखरी: दुश्मन का दोस्त दुश्मन – अब तो मुंह खोलो नरेन्दर बाबू
नाउ भाई कै बार, बाबू अगवै आई
नरेन्द्र मोदी सोच रहे होंगे कि काहे लगाये थे मैंने अबकी बार फिर से ट्रम्प सरकार के नारे । इससे अच्छे तो जो बाइडन ही थे। हमसे दोस्ती नहीं थी तो दुश्मनी भी नहीं रखते थे। मोदी को ध्यान रखना चाहिए था कि कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिनसे दोस्ती कर ली जाय तो किसी दूसरे को दुश्मन बनाने की जरूरत नहीं होती वह व्यक्ति ही समय आने पर दुश्मन की भूमिका निभा देता है और डोनाल्ड ट्रम्प को उसी कतार में खड़ा किया जा सकता है। भोजपुरी में एक कहावत है “नाऊ भाई कै बार, बाबू अगवै आई” मतलब कौन कितने पानी में है, किसमें कितना कलेजा है, किसकी कितनी औकात है, किसकी कितनी हैसियत है, किसमें कितनी हिम्मत है, किसकी छाती का क्या साइज है समय आने पर सब कुछ सामने आ ही जाता है। कायर व्यक्ति को कितना भी उकसाइये वह कायर का कायर ही रहेगा।
भारत के खिलाफ अमेरिका ने ट्रेड वार से आगे का कदम उठाते हुए 25 फीसदी टेरिफ और पेनाल्टी लगाने का ऐलान किया जो 31 जुलाई की रात को 12 बजते ही यानी 1 अगस्त से लागू होना था लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी आदत के मुताबिक यू टर्न लेते हुए इसे अब 7 अगस्त से लागू करने की बात कही है, मगर यह 7 अगस्त से लागू हो ही जायेगा संदेहास्पद है । अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जिस तरह से एक के बाद एक हरकत कर रहे हैं उससे बहुत साफ नजर आ रहा है कि वे भारत की घेराबंदी करके बाजार को खत्म करने का इरादा रखते हैं। और सबसे बड़ी बात यह है कि वे पाकिस्तान के साथ खड़े होकर पींगे लड़ाने की बातें भी कर रहे हैं। अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ डील फाइनल कर ली है और अब वे पाकिस्तान में मिले तेल भंडारों का विकास करेंगे और भविष्य में पाकिस्तान भारत को तेल बेचेगा। ट्रंप ने यहां तक कह दिया कि भारत की इकोनॉमी मर चुकी है। डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल ट्रूथ पर लिखा है We are very busy in the White House today working on Trade Deals. I have spoken to the leaders of many countries, all of whom want to make the United States “extremely happy” I will be meeting with the South Korean Trade Delegation this afternoon. South Korea is right now at a 25% Tariff, but they have an offer to buy down those Tariffs. I will be interested in hearing what that offer is. We have just concluded a Deal with the country of Pakistan, whereby Pakistan and the United States will work together on developing their massive Oil Reserves. We are in the process of choosing the oil company that will lead this partnership. Who knows, may be they’ll be selling oil to India someday !
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल ट्रूथ पर जो साझा किया उससे तो अब पीएम मोदी की आंखों पर वो चश्मा तो उतर जाना चाहिए कि डोनाल्ड ट्रम्प अब तो खुले तौर पर पाकिस्तान के पाले में जाकर न केवल खड़े हो चले हैं बल्कि अब उसे आर्थिक और सामरिक रूप से सशक्त बनाने पर भी आमदा हो चुके हैं। पाकिस्तान ने चीन के साथ मिलकर अपनी समुद्री सीमा में तीन साल तक सर्वे किया और पिछले बरस सितम्बर के महीने में इस बात का ऐलान किया कि तेल – गैस रिजर्व की मौजूदगी है और अब जब अमेरिका के साथ डील साइन हो गई तो अमेरिका ने कहा कि यहां पर दुनिया का सबसे बड़ा चौथे नंबर का तेल और गैस भंडार होगा तो इसको पूरी तरह से विकसित करने पर तकरीबन 42 हजार करोड़ रुपये का खर्च आयेगा। इस खर्च को या तो अपने बूते अमेरिका वहन करेगा या फिर जो टीम होगी या फिर कोई कंपनी होगी उसके जरिए कामकाज किया जायेगा जिसमें करीबन 5 साल लगेंगे। लेकिन अमेरिका जिस लहजे से पकिस्तान को खड़ा कर रहा है यह भारत के लिए चिंतापूर्ण से आगे की सबसे बड़ी चुनौती है। अमेरिका का पकिस्तान के साथ खड़ा होने तथा सवाल तेल और गैस का है तो ये भी महत्वपूर्ण है कि अभी हाल में ही गुजरात की एक कंपनी नायरा पर यूरोपीय यूनियन ने प्रतिबंध लगाया है और दो दिन पहले ही अमेरिकी कंपनी माइक्रोसाॅफ्ट ने नायरा के साथ फिलहाल टेम्परेरी तलाक ले लिया है। तो अब वह अंतरराष्ट्रीय तौर पर व्यापारिक समझौते नहीं कर सकता है। हाल ही में अमेरिका ने भी ईरान से तेल खरीदने वाली 6 भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया है, हालांकि दुनिया भर की 25 कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया हुआ है जिसमें तुर्की, चीन, इंडोनेशिया, संयुक्त अरब अमीरात आदि देशों की छोटी-बड़ी कंपनियां शामिल है मगर उसमें प्रतिबंध से बचने की गुंजाइश यह लिखते हुए की गई है प्रतिबंधित देश अमेरिकी ट्रेजरी विभाग से प्रतिबंध हटाने की गुजारिश करे।
भारत को रशिया से व्यापारिक रिश्तों को खत्म करने के लिए यह कह कर दबाव बनाया जा रहा है कि रशिया उसी मुनाफे का उपयोग यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध में कर रहा है। ठीक वही आरोप ईरान से तेल और गैस खरीदने वाली कंपनियों पर भी लगा रहा है कि उस मुनाफे से ईरान उससे पूरे मिडिल ईस्ट में अस्थिरता फैला रहा है, सक्रिय आतंकवादी संगठनों की मदद कर रहा है। तो क्या प्रतिबंधित भारतीय कंपनियों की सम्पत्ति अमेरिका में है वह जप्त कर ली जायेगी। विदेशी बैंक उन्हें कर्जा नहीं देंगे। डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल ट्रूथ पर खुले तौर पर लिखा है कि रशिया और भारत की इकोनॉमी मर चुकी है। I don’t care what India does with Russia. They can take their dead economies down together, for all I care. We have done very little business with India, their Tariffs are too high, among the highest in the world. Likewise Russia and the USA do almost no business together. Let’s keep it that way and tell Medvedev, the failed former president of Russia, who THINKS he’s still president, to watch his words. HE’S entering very dangerous territory !.
लेकिन भारत की तरफ से अभी तक स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। देशवासियों की सोच को सच साबित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वनिर्मित परंपरा के मुताबिक मुंह नहीं खोला है। जबकि दुनिया के दूसरे देश चाइना, रशिया, ब्राजील, ईरान आदि ने खुलकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा घोषित किये एकतरफा, मनमाने टेरिफ का विरोध करते हुए इसे ट्रम्प की तानाशाही बताया है। ईरान ने ट्यूट करते हुए लिखा है The United States continues to weaponize the economy and use # sanctions as tools to dictate its will on independent nations such as Iran and India and impede their growth and development. These coercive discriminatory actions violate the principles of international law and national sovereignty, representing a modern from of economic imperialism. Resisting such policies is a stand for a more powerful emerging non Western-led multilateral world order and a stronger Global South.
आज जिन हालातों से देश गुजर रहा है उसके लिए केवल और केवल नरेन्द्र मोदी, बीजेपी और आरएसएस की विघटनकारी और नफरती राजनीति जिम्मेदार है जो 11बरस से देश में फैलाई गई है। इतिहास गवाह है कि श्रीमती इंदिरा गांधी और अटलबिहारी बाजपेई के प्रधानमंत्रित्व काल में जब अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगाया था तब विपक्ष सरकार के साथ खड़ा था और संकट से उबरने के बाद सरकार ने बकायदा पार्लियामेंट के भीतर विपक्ष के सहयोग को सराहा था लेकिन नरेन्द्र मोदी ने 11बरस में एकला चलो की राह पर चलकर विपक्ष को अलग – थलग कर दिया है। विपक्ष ने सहयोग भी दिया तो सफलता का सारा श्रेय मोदी ने खुद लेकर विपक्ष को थैंक्स तक नहीं कहा। देश दुनिया ने देखा कि पहलगाम की दुखद घटना के बाद विपक्ष एकजुट होकर सरकार के साथ खड़ा हुआ था और आपरेशन सिंदूर पर सीजफायर के बाद जब विपक्ष ने संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाने की मांग की तो मोदी सरकार ने वही अपनी फासीवाद सोच के चलते विपक्ष की मांग को ठुकरा दिया और विपक्ष के मन में कडवाहट को भर दिया। जिसका नजारा गत दिनों संसद के भीतर आपरेशन सिंदूर को लेकर चली 16 घंटे की चर्चा में खुलकर देखने को मिला, जहां विपक्ष लगातार सरकार को अखाड़े के भीतर घसीट रहा था और सरकार अखाड़े की सीमा से बाहर निकल कर जान बचाते भाग रही थी।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जब कहा कि भारत की इकोनॉमी डेड (मर) हो चुकी है तो लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए ट्रम्प की बात का समर्थन करते हुए कहा कि राष्ट्रपति ट्रम्प सही कह रहे हैं। मोदी सरकार ने भारतीय इकोनॉमी को डेड करके रखा हुआ है। राहुल ने यह भी कहा कि पिछले 11 बरस में भारत की विदेश नीति और कूटनीति फेल हो चुकी है। इसका अक्श भी आपरेशन सिंदूर के बाद खुलकर दिखाई दिया जब दुनिया का एक भी देश, पीएम नरेन्द्र मोदी की तकरीबन 60-70 फीसदी विदेश यात्राओं और उन देशों के सर्वोच्च सम्मान बटोरने के बाद भी, भारत के साथ खड़ा नहीं हुआ। अब तो वह अमेरिका भी, जिसकी सरपरस्ती करते-करते पीएम नरेन्द्र मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सामने लम्बवत हो गये, भारत के सबसे बड़े दुश्मन पाकिस्तान के साथ खड़ा हो गया है। जो इस बात का साफ-साफ इशारा कर रहा है कि जिस नरेन्द्र मोदी और बीजेपी को शुभंकर मानकर देशवासियों ने दिल्ली की सल्तनत सौंपी थी वो वह शुभंकर 11 बरस में अशुभंकर में तब्दील हो चुका है।
लगता तो यही है कि अमेरिका 25 फीसदी टेरिफ और पेनाल्टी के जरिए भारत को ब्रिक्स और रशिया के खिलाफ एक वैपन की तरह इस्तेमाल कर घेराबंदी करने का इरादा रखता है ! अमेरिका का इरादा टेरिफ वार का नहीं बल्कि इससे आगे का लगता है। 25 फीसदी टेरिफ और जुर्माना लगाये जाने का सबसे पहला असर तो शेयर बाजार पर ही पड़ा जहां से विदेशी निवेशकों ने पैसा निकालने की शुरुआत कर दी। सवाल यह है कि देश में ह्यूमन रिसोर्स और इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद होने के बाद भी क्या भारत अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बचा पायेगा ? अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में पहली बार इकोनॉमी को लेकर जब अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा होकर खुलेआम भारत को चुनौती दे रहा है और युद्ध के दौरान चाइना पाकिस्तान की मदद कर रहा है तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत कौन सी रणनीति अपनायेगा ? भारत की कूटनीति और विदेश नीति को लेकर जितने भी सवाल सवालों की दुनिया में तैर रहे हैं उन सवालों का अंत तब तक नहीं होगा जब तक भारत खुले तौर पर नेशनल इंट्रेस्ट से जनता को नहीं जोड़ेगा। क्योंकि जहां शेयर बाजार का 50 फीसदी मुनाफा कार्पोरेट कमाता है वहीं बमुश्किल 5 फीसदी मुनाफा भी आम आदमी की जेब में नहीं आता है। और पिछले 10 बरस में ये खाई बरस दर बरस बढ़ती चली गई है। तो फिर सवाल ये भी है क्या भारत अपनी इकोनॉमी पालिसी को आम जनों से जोड़कर बड़ा करेगा या फिर पूरे तरीके से उसी कार्पोरेट पर निर्भर होगा जिस कार्पोरेट के सामने ये चुनौती मुंह बाये खड़ी है कि वह किस रास्ते पर चले, क्या वह जाकर अमेरिका से माफी मांगे और अमेरिकी ट्रेजरी से कहे कि हम पर प्रतिबंध ना लगाये, हमारी संपत्तियों ना छीने ? नरेन्द्र मोदी के सामने भी चुनौती है देश को अमेरिका परस्ती से बाहर निकाल कर अपने पैरों पर खड़ा करने स्वावलंबी बनाने की। क्या वे ऐसा कर पायेंगे या फिर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सामने घुटने टेक कर उसी की शर्तों पर ट्रेड डील को फाइनल करेंगे.?
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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