खरी-अखरी: ना खुदा ही मिला ना विसाल-ए-सनम
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपनी सनक को सही साबित करने के लिए अपनों की ही रिपोर्टों को झुठलाने में लगे हुए हैं। ताजातरीन रिपोर्ट जो कि पेंटागन की खुफिया रिपोर्ट है, वह लीक होकर प्रतिष्ठित अखबार सीएनएन और न्यू यॉर्क टाइम्स में छपी है जिसने ट्रम्प सरकार के होश फाख्ता कर रखे हैं। इस रिपोर्ट का खंडन करने के बजाय राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प सहित व्हाइट हाउस प्रेस सेक्रेटरी कार्डलिन लेविट और डिफेंस सेक्रेटरी पेटे हेजेस्थ ने दोनों अखबारों पर फेक न्यूज प्रसारित करने का आरोप अपने द्वारा किए गए ट्यूट और बयानों के जरिए लगाया है। पेंटागन की खुफिया रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका ने अपने बी-2 बाॅम्बर बमों को गिरा कर ईरान के जिन तीन परमाणु ठिकानों को नेस्तनाबूद करने का दावा किया है वह पूरी तरह से सही नहीं है। राष्ट्रपति ट्रम्प का यह कहना भी सही नहीं है कि अब ईरान सालों साल उबर नहीं पायेगा। खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक ईरान कुछ ही सालों में अपनी यथास्थिति पर आ जायेगा। ईरान ने भी कहा है कि अमेरिका ने उसके जिन यूरेनियम सुरक्षित भंडारों पर हमला किया है वहां भारी नुकसान तो हुआ है मगर इतना भारी भी नहीं कि उसके यूरेनियम भंडार को क्षति पहुंची हो, हमारा यूरेनियम पूरी तरह सुरक्षित है। रही बात बिल्डिंग के खंडहर होने की तो उसे कुछ ही साल में फिर से खड़ा कर लिया जायेगा। वैसे राष्ट्रपति ट्रम्प इसके पहले भी तुलसी गवार्ड की उस रिपोर्ट को खारिज कर चुके हैं जिसमें कहा गया था कि ईरान के पास परमाणु हथियार नहीं है।
Executive – Early US Intel assessment suggests strikes on Iran did not destroy nuclear sites, sources say (CNN Politics) The US military strikes on three of Iran’s nuclear facilities last weekend did not destroy the core components of the country’s nuclear program and likely only set it back by months, according to an early US intelligence assessment that was described by three people brieted on it. The assessment, which has not been previously reported, was produced by the Defense Intelligence Agency, the Pentagon’s Intelligence arm. पेंटागन की लीक हुई इस खुफिया रिपोर्ट को प्रसारित करने को फेंक न्यूज करार देते हुए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ट्यूट किया है कि FAKE NEWS CNN, TOGETHER WITH THE FAILING NEW YORK TIMES, HAVE TEAMED UP IN AN ATTEMPT TO DEMEAN ONE OF THE MOST SUCCESSFUL MILITARY STRIKES IN HISTORY. THE NUCLEAR SITES IN IRAN ARE COMPLETELY DESTROYED ! BOTH THE TIMES AND CNN ARE GETTING SLAMMED BY THE PUBLIC. Kardline Leavitt, White House Prees Secretary – this alleged assessment is flat-out wrong and was classified as Top Secret but was still leaked to CNN by an anonymous, low level loser in the intelligence community. The leaking of this alleged assessment is a clear attempt to demean President Trump and discredit the brave fighter pilots who conducted a perfectly executed mission to obliterate Iran’s nuclear program. Everyone knows what happens when you drop fourteen 30000 Pound Bombs perfectly on their targets, total obliteration. (PETE HEGSETH, Defence Secretary) – Based on everything we have seen – and I’ve seen it all-over bombing campaign obliterated Iran’s ability to create nuclear weapons – our massive bombs hit exactly the right spot at each target and worked perfectly. The impact of those bombs is buried under a mountain of rubble in Iron. So anyone who says the bombs were not devastating is just trying to undermine the president and the successful mission.
अमेरिकी सरकार के मातहत आने वाली ऐजेंसियों द्वारा अपनी ही सरकार के दागदार चेहरे उजागर करने पर डोनाल्ड ट्रम्प उन्हें छुपाने के लिए उन पर परदा डालने के लिए मजबूर दिखाई दे रहे हैं। ईरान के सुप्रीम लीडर के हवाले से तो यह तक कहा जा रहा है कि अमेरिकी हवाई हमला होने के पहले ही यूरेनियम संग्रहित जगहों से हटाकर अन्यत्र रख दिया गया था। पेंटागन की रिपोर्ट और ईरान सुप्रीम लीडर का बयान अमेरिका और इजराइल सरकार के लिए मुश्किल हालात पैदा करने के लिए पर्याप्त है। खबर है कि युद्ध विराम होते ही ईरान ने अपने स्थगित हो चुके परमाणु कार्यक्रमों में फिर से तेजी लाना शुरू कर दिया है। ईरान ने तो अन्तरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा ऐजेंसी (IAEA) को अस्थाई तौर पर यह कहते हुए सहयोग नहीं करने का फैसला कर लिया है कि जब तक आईएईए ईरान को न्यूक्लियर साइड की सुरक्षा से जुड़ी गारंटी नहीं देगा तब तक उसे सुपरवाइज करने की अनुमति सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद यानी सुप्रीम लीडर द्वारा नहीं दी जायेगी । ईरानी जनता सडकों पर उतर कर नाच गा रही है। मतलब जहां ईरान के भीतर जश्न है तो वहीं अमेरिका के भीतर सवाल हैं।
यह भी एक संयोग ही कहा जा सकता है कि जिस दिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को नाटो देशों की बैठक में शामिल होने के लिए हेग जाना है ठीक उसके पहले पेंटागन की खुफिया रिपोर्ट सीएनएन के जरिए सामने आई है। नाटो देशों की बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि उसमें नाटो देशों की सुरक्षा और सुरक्षा पर होने वाले खर्च का पैसा और इन दोनों परिस्थितियों के बीच व्यापक तौर पर चल रहे युद्ध पर चर्चा होनी है। गाजा पर इजराइली हमला, रशिया और यूक्रेन के बीच चल रही लडाई वाले सवालों के बीच में सुरक्षित रह गये ईरान के परमाणु ठिकाने का सवाल भी नाटो देशों की मौजूदा बैठक में छाया रहेगा। नाटो देशों की सुरक्षा पर होने वाले खर्च का लगभग 66 फीसदी हिस्सा तो अमेरिका ही देता है जो 997 अरब डॉलर के आसपास होता है। इसके बाद जर्मनी लगभग 6 फीसदी 88.5 अरब डॉलर देता है। ब्रिटेन 5.4 फीसदी – 81.8 अरब डॉलर, फ्रांस 4.3 फीसदी – 47 अरब डॉलर, इटली 2.4 फीसदी 36 अरब डॉलर, कनाडा 2 फीसदी – 35 अरब डॉलर, स्पेन 1.4 फीसदी – 21.3 अरब डॉलर देते हैं। जो कि सभी देशों की जीडीपी का 2 फीसदी के आसपास होता है। अमेरिका ने कहा कि वर्तमान समय और परिस्थितियों के मद्देनजर सभी देशों को अपनी जीडीपी का 5 फीसदी देना चाहिए। जिसका स्पेन ने खुले तौर पर यह कहते हुए विरोध किया है कि एक तरफ अमेरिका दुनिया भर से युद्ध खत्म करने की बात कर रहा है और शायद इसीलिए अमेरिका ने ट्रेड वार की दिशा में कदम बढाये अब दूसरी ओर और ज्यादा सहयोग राशि देने का सुझाव ये दोनों परस्पर विरोधाभासी कथन हैं। नाटो का एक नियम यह भी है कि किसी भी सदस्य देश पर हमला होता है तो सब मिल कर उसका बचाव करेंगे। मगर ज्यादातर नाटो देशों के साथ टेरिफ को लेकर अमेरिका का विवाद चल रहा है।
अमेरिका के भीतर ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की विश्वसनीयता कम होती जा रही है क्योंकि अभी तक ट्रम्प ने जो कहा है उस पर खरे नहीं उतरे बल्कि अपने कहे के उलट ही काम किया है। सीएनएन और न्यू यॉर्क टाइम्स में छपी पेंटागन की खुफिया रिपोर्ट को अमेरिकी प्रशासन ने भले ही फेक न्यूज कहा है मगर यह सवाल तो अभी भी अनसुलझा है कि खुद पेंटागन की प्रतिक्रिया क्या है ? ईरान पर जो इजराइली और अमेरिकन हमला किया गया वह पूरे तरीके से अन्तरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर्ड का उल्लंघन था। आईएईए के दिशा निर्देशों के खिलाफ था। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प भले ही सीएनएन और न्यू यॉर्क टाइम्स में प्रकाशित पेंटागन की खुफिया रिपोर्ट को फेक न्यूज कह रहे हों लेकिन सच तो यह है कि ईरान को लेकर युद्ध के दौरान उन्होंने जो कुछ कहा अब उससे यू टर्न ले रहे हैं। यहां तक कि ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों पर भी ढिलाई बरती जाने लगी है। ईरान का तेल बाजार दुनिया के लिए खुल गया है। खमेनेई के नेतृत्व में ही ईरान ग्रेट बनेगा यानी ईरान में अब कोई सत्ता परिवर्तन नहीं होगा।
फिर भी कुछ सवाल तो हैं जो अमेरिका को परेशान कर रहे हैं। ट्रम्प युद्ध में नहीं कूदे, युद्ध में कूदे, कूदने के बाद जो सफलता मिली उस सफलता पर ही सवालिया निशान है। जिस लक्ष्य को लेकर इजराइल के पीछे खड़े होकर सारा तानाबाना बुना गया वो लक्ष्य तो पूरा नहीं हो पाया है। ट्रम्प के ढुलमुल रवैये का परिणाम यह हुआ कि चाइना और रशिया करीब आ गये हैं । दूसरे संगठनों ने भी बयानबाजी करनी शुरू कर दी है। खुलेआम कहा जा रहा है कि अमेरिका अन्तरराष्ट्रीय कानूनों को कोई अहमियत नहीं दे रहा है। उसे कोई सफलता भी नहीं मिल रही है। तो सवाल उठने लगे हैं कि क्या अब दुनिया के दूसरे ताकतवर देश अमेरिका को चुनौती देने की स्थिति में आ गए हैं या फिर अमेरिका अपनी ताकत को संजोकर नये सिरे से नाटो को एकजुट करने की दिशा में कदम बढ़ायेगा। डाॅलर के मुकाबले दूसरी करेंसी को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। अमेरिका के भीतर ही ट्रम्प की क्रिप्टो करेंसी को लेकर सवाल है कि इसके जरिए तो डाॅलर कमजोर होगा। यानी सवाल पेट्रो डाॅलर से निकल कर क्रिप्टो करेंसी, ब्रिक्स पर आकर खड़ा हो गया है। परिस्थितियां ईरान के तेल को बेचने तक आकर खड़ी हो गई है। अमेरिका में ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की साख को लेकर सवाल होने लगे हैं और डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थक ही इस सवाल को उठाने लगे हैं कि अमेरिका ट्रम्प की अगुवाई में अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पा रहा है जो आने वाले समय में और भी मुश्किल होता जायेगा तो क्या अपने लक्ष्य को पाने के लिए डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा दिया गया नारा “मेक अमेरिका अगेन ग्रेट” (MAKE AMERICA AGAIN GREAT) खोखला था। कहा जा सकता है कि ना घर के रहे ना घाट के।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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