खरी-अखरी: आगाज जब ऐसा है तो अंजाम कैसा होगा
राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति (राज्यसभा का सभापति), लोकसभा स्पीकर और प्रधानमंत्री देश का होता है न कि किसी पार्टी विशेष का। मगर जब ये पार्टी विशेष के होकर काम करते हैं तो उसे संविधान की हत्या के तौर पर देखा जाना चाहिए। ऐसे ही कुछ हालात विगत 11 बरसों से देश में दिखाई दे रहे हैं। हर सत्र में दोनों सदनों में देखने को मिलता है कि सदन के चेयरपर्सन द्वारा विपक्ष के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। विपक्षी सांसदों की यहां तक कि लीडर आफ अपोजीशन की आवाज भी पूरी निर्ममता के साथ रौंद दी जाती है। जिसका नजारा एक बार फिर मानसून सत्र के पहले दिन ही देखने को मिला। लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी ने प्रेस से बात करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री कुछ ही मिनट में सदन से भाग खड़े हुए। जो देश को शर्मसार करने के लिए पर्याप्त है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने जब पहलगाम आतंकी हमले और आपरेशन सिंदूर को लेकर रूल 267 के तहत दिये गये नोटिस का जिक्र करते हुए आतंकवादियों के अभी तक पकड़े नहीं जाने और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा 24वीं बार आपरेशन सिंदूर की कार्रवाई रोके जाने का श्रेय लिए की बात कही तो उस पर काउंटर करते हुए राज्यसभा सांसद सह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यह कहते हुए भारतीय सैन्य इतिहास के पन्नों पर कालिख पोत दी कि 1947 (आजादी के बाद) से लेकर आज तक ऐसा सैन्य आपरेशन नहीं हुआ है जैसा नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में आपरेशन सिंदूर हुआ है। ऐसा कहकर जेपी नड्डा ने न केवल जनरल मानेकशॉ, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और अटलबिहारी बाजपेई की छबि को कलंकित किया है बल्कि देश के गौरवशाली इतिहास तथा सेना के अतीत के पराक्रम को सबसे बड़ी गाली दी है। इतिहास को भला बुरा कहने की शुरुआत करने का श्रेय भी भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के खाते में जाता है। 144 करोड़ देशवासियों में चंद गिद्ध ऐसे हैं जो अपने स्वार्थ के लिए आर्मी को अपमानित करते रहते हैं लेकिन वो ये भूल जाते हैं कि वो आर्मी पर नहीं अपने मुंह पर ही थूक रहे हैं। क्योंकि देश की सैन्य शक्ति वंदनीय है, वंदनीय थी और सदा वंदनीय रहेगी। भारत की सैन्य शक्ति ने कभी भी भारत का सिर झुकने नहीं दिया, कभी भी सरहदों को असुरक्षित होने नहीं दिया तथा देशवासियों के मन में असुरक्षा का भाव जागने नहीं दिया। यह तो देश का दुर्भाग्य है कि कुछ कुपढ़ राजनीतिज्ञ सत्ता में हैं और आये दिन ठीक उसी तरह भौंकते रहते हैं जैसे कुत्ते किसी कार के पीछे भौंकते रहते हैं। 1962 में भले ही चीन के साथ हुई युद्ध में जीत हासिल नहीं हुई थी मगर भारतीय सेना पर कोई ऊंगली नहीं उठा सका। भारतीय सैनिकों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर चीनी सैनिकों को ठीक उसी प्रकार अपनी पोस्ट छोड़ कर भागने को मजबूर कर दिया था जैसे पाकिस्तानी सेना पोस्ट छोड़ कर भागी थी। जिनका खुद का कोई इतिहास नहीं है वो सेना के गौरवशाली इतिहास पर छींटाकशी कर रहे हैं। देशवासियों को यह समझना चाहिए कि नरेन्द्र मोदी केवल और केवल पालिटिकल लीडर हैं। पीएम मोदी की सरकार सेना नहीं है। नरेन्द्र मोदी की पार्टी बीजेपी सेना नहीं है। सेना का सर्वोच्च अधिकारी राष्ट्रपति होता है सेना उसी से आदेश लेती है। मगर देश के भीतर नरेन्द्र मोदी पर सवाल उठाने को देश पर सवाल उठाना, सेना पर सवाल उठाना यहां तक कि राम पर सवाल उठाना कहा जाने लगा है। तो फिर नरेन्द्र मोदी को ही एक बार देशवासियों को राष्ट्र के नाम संदेश के जरिए यह बता देना चाहिए कि वे ही देश हैं या सेना हैं या राम हैं या फिर तीनों हैं। किसी ने सही कहा है कि अगर देश गलत या फर्जी डिग्रीधारी को प्रधानमंत्री चुनेगा तो उसका खामियाजा भी तो उठाना पड़ेगा। सेना की वर्दी पहनकर और बड़े-बड़े पम्पलेट पोस्टर छपवाकर सेना का जितना अपमान मोदी ने किया है देश के भीतर किसी ने नहीं किया होगा। वैसे दूसरे नजरिए देखा जाय तो जेपी नड्डा ने सच्चाई बयां की है कि देश की आजादी के बाद कोई ऐसा आपरेशन नहीं हुआ है जिसे अमेरिका के कहने पर रोका गया हो।
स्पीकर द्वारा कहा जा रहा है कि सदन नियम, परंपरा और प्रक्रिया से चलेगा लेकिन देखा गया है कि उनके द्वारा हर सत्र में सत्ता पार्टी की सुविधानुसार हर बार नियम, परंपरा और प्रक्रिया की व्याख्या की जाती है। स्पीकर ओम बिरला सदन में जितनी बार नो नो शब्द का उच्चारण करते हैं अगर इतनी बार वो राम राम का उच्चारण करें तो बकौल गृहमंत्री अमित शाह उनकी पीछे और आगे की कई पीढ़ियों को मोक्ष मिल सकता है (अम्बेडकर की जगह राम का नाम लिया जाय तो)। बार – बार यह सुनने में आता है कि सदन चलाने की जिम्मेदारी विपक्ष की है। मगर ऐसा कहने वाले सत्ताधारियों को अपने गिरेबां में भी झांक देख लेना चाहिए कि जब वे विपक्ष में थे तो कहते थे कि सदन चलाना सरकार की जिम्मेदारी है। सदन का सत्र शुरू होने के पहले ऐसा नैरेटिव बनाया गया कि सरकार विपक्ष के सामने घुटनाटेक हो चुकी है। सरकार अब चर्चा करने को तैयार है, ठीक उसी तरह से जैसे दुल्हन का बाप लड़के के बाप से कहता है कि आप जिस पान मसाले से कहेंगे हम स्वागत करेंगे आप आइये तो एक बार बारात लेकर हमारे द्वार (फिर बतायेंगे कि हम क्या हैं)। चर्चा तो यह है कि ये सारा नैरेटिव विपक्ष को बदनाम करने और सदन न चलने का ठीकरा विपक्ष के सिर पर फोड़ने के लिए रचा गया और मीडिया के जरिए प्रचारित कराया गया। जबकि सरकार खुद दोनों सदनों के स्पीकर के जरिए सदन चलाना ही नहीं चाहती। वो तो संवैधानिक मजबूरी है सरकार की कि उसे सत्र बुलाने पड़ते हैं वरना दाग ढ़ूढ़ते रह जाओगे। फिलहाल कहा जा सकता है कि स्पीकर बिरला हों या सभापति धनखड़ किसी में इतना माद्दा नहीं है कि वे देश की आवाज को रौंद सकें और देश खामोशी से देखता रह जाय।
अश्वनी बडगैया
स्वतंत्र पत्रकार
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