पति घरेलू कामों में क्यों नहीं करते मदद? जानिए वजह और समाधान !
दांपत्य जीवन में साझेदारी की नई परिभाषा
आज की दुनिया तेज़ी से बदल रही है। महिलाएं शिक्षा, नौकरी, उद्यमिता और समाज सेवा में कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। लेकिन जब बात घर की ज़िम्मेदारियों की आती है, तो तस्वीर आज भी उतनी ही पारंपरिक दिखती है — जिसमें घरेलू कामों का बोझ अधिकतर महिलाओं के कंधों पर ही रहता है।
एक ओर महिलाएं ऑफिस का प्रेशर संभाल रही होती हैं, बच्चों की ज़िम्मेदारी निभा रही होती हैं, वहीं दूसरी ओर पुरुष अक्सर यह मानते हैं कि घर का काम उनकी भूमिका में शामिल नहीं है। सवाल उठता है — ऐसा क्यों?
1. पारंपरिक सोच की गहरी जड़ें
हमारा सामाजिक ढांचा अब भी उस सोच से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाया है, जिसमें घर संभालना महिला का और बाहर कमाना पुरुष का काम माना जाता था। लड़कियों को बचपन से ही “घर चलाना” सिखाया जाता है, जबकि लड़कों को “कमाने वाला” बनने की सीख दी जाती है। यही परवरिश उन्हें आगे चलकर यह सोचने पर मजबूर करती है कि खाना बनाना, बर्तन धोना या बच्चों को संभालना सिर्फ स्त्रियों का काम है।
2. पुरुषों के प्रति सामाजिक नजरिया
जब कोई पुरुष घर के कामों में हाथ बंटाता है, तो अक्सर समाज उसे ‘कमज़ोर’, ‘जोरू का गुलाम’ या ‘अहसान करने वाला’ मान लेता है। घर के बड़े-बुज़ुर्ग से लेकर दोस्त तक, इस काम को पुरुष की कमजोरी के तौर पर देखते हैं। इस मानसिकता का बोझ इतना भारी हो सकता है कि कई बार पुरुष मदद करना चाहते हुए भी पीछे हट जाते हैं।
3. जागरूकता की कमी
घरेलू कार्यों को ‘काम’ ही नहीं समझा जाता। पुरुष यह महसूस ही नहीं करते कि झाड़ू-पोंछा, खाना पकाना या बच्चों की देखभाल मानसिक और शारीरिक रूप से कितना थकाने वाला हो सकता है। इसकी मुख्य वजह यह है कि बचपन से उन्हें इन कार्यों की अहमियत नहीं सिखाई गई। अगर बचपन से ही लड़के-लड़कियों दोनों को बराबरी से घर के कामों में शामिल किया जाए, तो भविष्य में यह असमानता खुद-ब-खुद मिट सकती है।
4. महिलाओं का असहज रवैया
कई बार महिलाएं खुद भी अनजाने में ऐसी सोच को बढ़ावा देती हैं। जब पुरुष कोई घरेलू कार्य करते हैं और उसमें त्रुटि हो जाए, तो उन्हें डांट दिया जाता है या उनका मज़ाक बना दिया जाता है। इससे पुरुषों का आत्मविश्वास कम होता है और वे सोचते हैं कि “करेंगे तो भी बुरा ही सुनना है।” इस स्थिति से बचने का उपाय है कि काम को ‘सही या गलत’ के बजाय ‘मिलजुल कर निभाने’ के नजरिये से देखा जाए।
5. ‘थकावट’ और ‘समय की कमी’ का बहाना
अक्सर पुरुष यह तर्क देते हैं कि वे ऑफिस से थक कर आते हैं, उनके पास समय नहीं है। लेकिन यह सोच सिर्फ बहाना बन जाती है जब उसी पुरुष को दोस्तों से मिलने या मोबाइल पर समय बिताने के लिए ऊर्जा मिल जाती है। असल बात यह है कि घरेलू कामों को प्राथमिकता में नहीं रखा जाता। जबकि दांपत्य जीवन में साझेदारी का मतलब सिर्फ खर्च साझा करना नहीं, ज़िम्मेदारियाँ भी साझा करना होता है।
✅ समाधान क्या है?
- समानता की शिक्षा बचपन से दें: बेटियों के साथ बेटों को भी खाना बनाना, कपड़े धोना और घर की सफाई सिखाएं।
- एक-दूसरे को सम्मान दें: कोई भी काम छोटा नहीं होता। साथ मिलकर काम करने से रिश्ते और मज़बूत होते हैं।
- रोल मॉडल बनें: जब बच्चे देखेंगे कि उनके पिता भी घर के कामों में मदद करते हैं, तो वे भी यही व्यवहार सीखेंगे।
- संवाद करें, टोकें नहीं: अगर कोई काम ठीक से न हो, तो आलोचना करने की बजाय सिखाएं, और उत्साह बढ़ाएं।
घर एक साझा जीवन का केंद्र है। इसे सजाना-संवारना, समय पर भोजन बनाना, बच्चों की देखभाल करना — यह सब सिर्फ एक की नहीं, दोनों की ज़िम्मेदारी है। जब पति और पत्नी दोनों मिलकर घर की ज़िम्मेदारियाँ निभाते हैं, तभी परिवार का संतुलन और दांपत्य जीवन की खुशी टिकाऊ बनती है।
अब समय आ गया है कि ‘घर के काम’ को महिला का फर्ज़ नहीं, परिवार की साझी ज़िम्मेदारी माना जाए।
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