मानव और प्रकृति के बीच हों गूढ़ सह-संबंध 28 जुलाई विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर विशेष आलेख
पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण आज के समय में बहुत ही आवश्यक हो गया है, क्यों कि आज धरती से जंगल, वन्य जीव-जंतु, विभिन्न प्रजातियां लगातार कम होते चले जा रहे हैं और हमारा पर्यावरण लगातार विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों से ओतप्रोत होता चला जा रहा है। बढ़ते विकास, शहरीकरण, वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण आज ग्लोबल वार्मिंग, जैव-विविधता की हानि, पानी की कमी और जलवायु परिवर्तन जैसी अनेक समस्याएं पैदा हो गईं हैं।
प्रकृति संरक्षण दिवस व इसकी थीम –
स्थिर और स्वस्थ समाज को बनाए रखने के लिए आज पर्यावरण और इसके संसाधनों(पानी , हवा, मिट्टी, खनिज वन, सूर्य का प्रकाश, जीव-जंतु , जीवाश्म ईंधन आदि ) का संरक्षण बहुत आवश्यक है। इसी क्रम में हर वर्ष हम 28 जुलाई को ‘विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस’ मनाते हैं। यहां पाठकों को बताता चलूं कि 5 अक्टूबर 1948 को फ्रांस के एक छोटे से शहर फॉनटेनब्लियू में प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ की स्थापना की गई थी।वास्तव में यह दिवस हमारे धरती के पारिस्थितिक तंत्रों की सुरक्षा के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व पर बल देने के रूप में मनाया जाता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि यह एक आह्वान है जो आमजन, समुदायों और सरकारों से हमारे नीले ग्रह(धरती) की भलाई सुनिश्चित करने वाली स्थायी प्रथाओं की दिशा में सक्रिय कदम उठाने का आग्रह करता है।यदि हम प्रकृति, हमारी धरती, इसके पारिस्थितिकी तंत्र, जीव-जंतुओं, विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों, पेड़-पौधों, हमारे विभिन्न जल तंत्रों(नदियों , झीलों, तालाबों आदि) का समय रहते संरक्षण नहीं करेंगे तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी आने वाली पीढ़ियां हमें कोसेंगी और हमारे जीवन का आधार नहीं बचेगा। वास्तव में यह दिवस प्रकृति के संरक्षण और वर्तमान व भविष्य की पीढ़ियों की भलाई सुनिश्चित करने के बारे में जागरूकता बढ़ाने का दिवस है। संक्षेप में कहें तो यह दिवस ‘मानव और प्रकृति’ की परस्पर निर्भरता को स्वीकार करता है। हर साल इस दिवस की एक थीम या विषय रखा जाता है। मसलन, 2024 का थीम ‘लोगों और पौधों को जोड़ना, वन्यजीव संरक्षण में डिजिटल नवाचार की खोज करना’ रखी गई थी जबकि विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस 2025 का विषय-‘पुनर्स्थापना, लचीलापन और जिम्मेदारी’ रखा गया है।
संसाधन प्रबंधन, अपशिष्टों में कमी व पर्यावरण-अनुकूल प्रौद्योगिकी पर ध्यान:-
एक स्वस्थ समाज की नींव एक स्वस्थ वातावरण और हमारी प्रकृति है। सच तो यह है कि प्रकृति ही हमारे जीवन का प्रमुख आधार है। इसके बिना मनुष्य जीवित रहना नामुमकिन है। ऑक्सीजन, पानी और भोजन मानवीय जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं हैं, लेकिन ये हमें तब आसानी से प्राप्त होंगी जब हम प्रकृति का संरक्षण करेंगे, लेकिन मानव ने अपने स्वार्थ के लिए इसका विनाश करना जारी रखा है और इसका परिणाम वर्तमान में हमें भुगतना पड़ रहा है।अतः हमें यह चाहिए कि हम प्राकृतिक संसाधनों का सीमित व विवेकपूर्ण उपयोग करें और धरती के पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करने की दिशा में आवश्यक और जरूरी कदम उठाएं। हम प्रकृति के संरक्षण,इसके सर्वोत्तम उपयोग की नीतियां बनाएं और कृतसंकल्पित होकर काम करें। हमें यह चाहिए कि हम संरक्षण-उन्मुख परियोजनाओं, नीतिगत उपायों और संरक्षित क्षेत्रों का प्रचार और वित्तपोषण स्थापित करें , ताकि हम विभिन्न संवेदनशील प्रजातियों और आवासों को संरक्षित कर सकें। प्रकृति के संरक्षण के लिए हमारा व्यवहार हमेशा जिम्मेदाराना होना चाहिए। आज जरूरत इस बात की है कि हम धरती पर संकटग्रस्त प्रजातियों और प्राकृतिक आवासों के संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाएं।वनों, आर्द्रभूमियों(वैटलैंड्स) और मीठे पानी के आवासों जैसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों की बहाली और प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करें। आज पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों को बढ़ावा देने, हमारे उपभोग पैटर्न पर ध्यान देने, धरती से कार्बन उत्सर्जन को कम करने की जरूरत है। दूसरे शब्दों में कहें तो जलवायु परिवर्तन की समस्या से से निपटने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने और बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल ढलने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। प्राकृतिक संसाधनों की दीर्घकालिक व्यवहार्यता वास्तव में तभी सुनिश्चित की जा सकती है जब हम कृषि, वानिकी, मत्स्य पालन और उद्योग में स्थायी प्रथाओं को अपनायेंगे और ज़िम्मेदार संसाधन प्रबंधन, विभिन्न अपशिष्टों में कमी के साथ ही साथ पर्यावरण-अनुकूल प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना सुनिश्चित करेंगे। वृक्षारोपण अभियान, पुनर्वनीकरण, सार्वजनिक स्थानों की साफ-सफाई पर भी हमें ध्यान देना होगा। पर्यावरण संरक्षण पर कार्यशालाएँ और सेमिनार, स्कूल आउटरीच कार्यक्रम और संरक्षण विषयों को बढ़ावा देने वाले वेबिनार आयोजित किए जाने की आवश्यकता भी महत्ती है।
केवल प्रतीकात्मक उत्सव तक सीमित नहीं रहे प्रकृति संरक्षण दिवस:-
बढ़ती जनसंख्या , शहरीकरण, औधोगिकीकरण व विकास की गतिविधियों के कारण आज हमारे वन, आर्द्रभूमियां और घास के मैदान कृषि भूमि और शहरी बस्तियों में बदल रहे हैं, यह अत्यंत चिंताजनक बात है। हमें धरती पर से प्लास्टिक प्रदूषण को हर हाल में कम करना होगा, क्यों कि पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन प्लास्टिक ही है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि साल 2025 विश्व पर्यावरण दिवस की थीम ‘प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करना’ ही रखी गई थी। धरती को साफ और स्वच्छ बनाने के लिए हमें अपशिष्टों का सही प्रबंधन करना होगा। आज जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता ह्रास, वनों की कटाई, प्रदूषण और आवास विनाश न केवल वन्यजीवों और पारिस्थितिक तंत्रों के लिए, बल्कि मानव स्वास्थ्य, हमारी अर्थव्यवस्था और हमारे समग्र जीवन स्तर के लिए एक बड़ा व गंभीर खतरा है।हम प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और अपने पारिस्थितिक पदचिह्न को कम करके मानवता और पर्यावरण के बीच एक अधिक लचीला और सामंजस्यपूर्ण संबंध बना सकते हैं, लेकिन इसके लिए हमें पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता व सामूहिकता से काम करना होगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि संरक्षण एक सामूहिक प्रयास है, अकेला व्यक्ति, सरकार या कोई संस्था विशेष अकेले कुछ भी नहीं कर सकता है। वास्तव में, पर्यावरण/प्रकृति संरक्षण के लिए व्यक्तियों, समुदायों, व्यवसायों और सरकारों की सक्रिय भागीदारी बहुत ही आवश्यक व जरूरी है। शिक्षा, जागरूकता अभियान और समुदाय-आधारित संरक्षण जैसी पहलें ही लोगों को पर्यावरण संरक्षण संबंधी विभिन्न निर्णय लेने और सार्थक कार्रवाई करने के लिए सशक्त बनातीं हैं।अंत में यही कहूंगा कि ‘विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस’ हम सभी को इसमें शामिल होने और सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए प्रोत्साहित करता है। हमें यह चाहिए कि हम स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र, जैव-विविधता और पर्यावरणीय मुद्दों जैसे विषयों के बारे में अधिक से अधिक जानें और इस क्रम में जागरूकता बढ़ाने के लिए हम अपने ज्ञान को अपने सभी मित्रों, परिवारजनों और सहकर्मियों के साथ ज्यादा से ज्यादा साझा करें। हमें जल, ऊर्जा और प्रकृति के विभिन्न संसाधनों का संरक्षण करना चाहिए। कहना ग़लत नहीं होगा कि हमें सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने वाली नीतियों के लिए काम करना चाहिए। हमें वन्यजीव निगरानी कार्यक्रमों और अपने समुदाय में अन्य पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों में भाग लेना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक आम आदमी द्वारा की गई छोटी-छोटी पहलें हमारे पर्यावरण और प्रकृति के लिए लाभकारी साबित हो सकतीं हैं। इसमें क्रमश: प्लास्टिक बैग के उपयोग से बचना,पानी और बिजली का सावधानीपूर्वक और विवेकपूर्ण उपयोग करना, साइकिल चलाना, पैदल चलना या सार्वजनिक परिवहन जैसे पर्यावरण अनुकूल परिवहन साधनों को अपनाना तथा जहां भी संभव हो अपशिष्ट उत्पादों का पुनर्चक्रण और पृथक्करण आदि को शामिल किया जा सकता है। तो आइए ! इस विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस को हम एक उत्प्रेरक बनाएं। वास्तव में यह दिवस केवल प्रतीकात्मक उत्सव तक ही सीमित नहीं रहे,
बल्कि अगली पीढ़ियों के लिए एक हरित, अधिक सुंदर, स्वच्छ और साफ और अधिक टिकाऊ नीले ग्रह (पृथ्वी) की दिशा में वास्तविक, और मात्रात्मक प्रगति के लिए मनाया जाना चाहिए। तभी वास्तव में हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ पर्यावरण की सौगात दे पायेंगे।
सुनील कुमार महला,
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड
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