सावन में कब न करें रुद्राभिषेक? जानें शास्त्र सम्मत नियम, वरना हो सकता है अनर्थ
श्रावण मास में भगवान शिव की आराधना विशेष फलदायी मानी जाती है। इस पवित्र माह में भक्तगण शिवलिंग पर जलाभिषेक और रुद्राभिषेक कर भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। लेकिन शास्त्रों में रुद्राभिषेक को लेकर कुछ विशेष नियम भी बताए गए हैं, जिनकी अनदेखी भक्त के लिए दुर्भाग्य का कारण बन सकती है।
सावन में रुद्राभिषेक का महत्व
श्रद्धा और नियमपूर्वक सावन में रुद्राभिषेक करने से सभी प्रकार के रोग, शारीरिक कष्ट, मानसिक तनाव, शत्रु बाधा, कालसर्प दोष जैसी समस्याएं दूर होती हैं। साथ ही, भक्त को दीर्घायु, संतान सुख, दांपत्य शांति, और आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है। सावन के सोमवार को विशेष रूप से रुद्राभिषेक करना अत्यंत शुभ माना गया है।
रुद्राभिषेक के लिए शुभ समय
शास्त्रों के अनुसार रुद्राभिषेक करने का सबसे उपयुक्त समय ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः 4:00 से 5:30 बजे तक), प्रदोष काल (संध्या से पूर्व) या अमृत काल (सुबह 7:30 से 9:00 बजे तक) माना गया है। इन तीनों समयों में की गई शिव पूजा सर्वोत्तम फल प्रदान करती है।
कब न करें रुद्राभिषेक?
- राहुकाल में कभी भी रुद्राभिषेक नहीं करना चाहिए।
- दोपहर के समय इस पूजा से परहेज करना चाहिए।
- अपवित्र या अशुद्ध अवस्था में भी रुद्राभिषेक करना वर्जित है।
शुभ तिथियां रुद्राभिषेक के लिए (सावन 2025)
- 14 जुलाई – चतुर्थी
- 15 जुलाई – पंचमी
- 18 जुलाई – अष्टमी
- 21 जुलाई – एकादशी
- 22 जुलाई – द्वादशी
- 23 जुलाई – चतुर्दशी
- 24 जुलाई – अमावस्या
- 26 जुलाई – द्वितीया
- 29 जुलाई – पंचमी
- 30 जुलाई – षष्ठी
- 6 अगस्त – द्वादशी
- 7 अगस्त – त्रयोदशी
महत्वपूर्ण सुझाव
रुद्राभिषेक करते समय पूजा सामग्री शुद्ध हो, मन एकाग्र हो और विधि-विधान से पूजन हो—तभी इसका पूर्ण लाभ मिलता है। साथ ही, योग्य ब्राह्मणों की सलाह लेकर ही मुहूर्त का निर्धारण करें।
(नोट: यह जानकारी धार्मिक ग्रंथों और लोक परंपराओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल जागरूकता फैलाना है।)
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